चाणक्य कौन था | who was Chanakya

चाणक्य कौन था | who was Chanakya

Share This Post With Friends

Last updated on April 20th, 2023 at 06:50 pm

चन्द्रगुप्त मौर्य को एक साधारण बालक से भारत के चक्रवर्ती सम्राट के रूप में स्थापित करने वाला एक ही व्यक्ति है जिसे हम इतिहास में कई नामों से जानते हैं —चाणक्य, कौटिल्य अथवा विष्णु गुप्त। यद्पि चाणक्य के विषय में ठोस ऐतिहासिक जानकारी का आभाव में।  ब्राह्मण तथा बौद्ध ग्रंथों में उसके विषय में जो सूचनाएं मिलती हैं उन्ही को आधार मानकर उसके जीवन के विषय में कहा गया है कि वह तक्षशिला के एक ब्राह्मण  परिवार में पैदा हुआ था। 

चाणक्य कौन था | who was Chanakya

चाणक्य कौन था

चाणक्य वेदों और शास्त्रों का ज्ञाता तथा तक्षशिला का मुख्य आचार्य था।  वह अपने रूढ़िवादी और क्रोधी स्वाभाव के लिए जाना जाता था। पुराणों में उसे “द्विजर्षभ” ( श्रेष्ठ ब्राह्मण ) कहा गया है।  कहा जाता है कि एक बार मगध के सम्राट धनानंद ने अपनी यज्ञशाला में अपनानित किया जिससे क्रोधित होकर उसने नन्द वंश को समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा ले डाली और चन्द्रगुप्त मौर्य को अपना अस्त्र बनाकर उसने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।

चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य

चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य ने मिलकर नन्द राजा को हराकर मगध पर अधिकार किया।  चन्द्रगुप्त मौर्य भारत का एकछत्र सम्राट बना और चाणक्य / कौटिल्य मुख्य पुरोहित और प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुआ।  जैन ग्रंथों से प्राप्त जानकारी से सिद्ध होता है कि कौटिल्य चन्द्रगुप्त की मृत्यु के बाद बिंदुसार के समय में भी कुछ समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहा।

कौटिल्य  का सन्यासी जीवन

बिन्दुसार के शासनकाल में कौटिल्य ने प्रधानमंत्री पद और राजनीति  से सन्यास ग्रहण कर लिया।  उसके बाद वह वनों में तपस्या करने चले गए वहीँ उन्होंने अपने जीवन  के अंतिम दिन व्यतीत किये।  वह राजनीतिशास्त्र के प्रकांड पंडित थे और राजनीति से संबंधित प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘अर्थशास्त्र’ की रचना की।  यह हिन्दू शासन से संबंधित प्राचीनतम उपलब्ध रचना है।

क्या अर्थशास्त्र कौटिल्य की रचना है ?

ऐतिहासिक रूप से अर्थशास्त्र और उसके रचनाकार के विषय में जानकारी का आभाव है।  इस विषय में विद्वान एकमत नहीं हैं कि अर्थशास्त्र कौटिल्य की रचना है। जाली, कीथ, विंटरनित्ज जैसे कुछ विद्वान इसे कौटिल्य की रचना नहीं मानते।  वहीँ एक वर्ग ऐसा है जो अर्थशास्त्र को कौटिल्य की रचना मानता है जिनमें प्रमुख रूप से शाम शास्त्री, जैकोबी, स्मिथ, कशी प्रसाद जायसवाल अदि हैं।

जो विद्वान अर्थशास्त्र को कौटिल्य की रचना नहीं मानते वह होने समर्थन में निम्नलिखित तर्क  प्रस्तुत करते हैं —–


1- अर्थशास्त्र में मौर्य साम्राज्य तथा शासनतंत्र का कोई उल्लेख   जबकि यूनानी साक्ष्य इसके विषय में विस्तार से प्रकाश डालते हैं।

2- यह नगर प्रशासन तथा सैनिक प्रशासन की परिषदों का कोई उल्लेख  नहीं मिलता।  इससे विदेशी नागरिकों के आचरण तथा उनकी देखरेख के लिए भी कोई नियम निर्धारित किये गए हैं। 

3- इस ग्रंथ कौटिल्य के विचार अन्य पुरुष – ‘इति कौटिल्य’ – में व्यक्त किये गए हैं।  यदि कौटिल्य स्वयं इस ग्रंथ का रचयिता होता तो इस प्रकार लिखने की  कोई आवश्यकता नहीं थी। 

4- कौटिल्य के नाम का उल्लेख मेगस्थनीज नहीं करता जो चन्द्रगुप्त मौर्य के  दरबार में रहा था।  इस प्रकार उसकी ऐतिहासिकता  ही संदिग्ध है। पतंजलि ने भी, जो मौर्य शासन से परिचित थे, उसका नामोल्लेख नहीं किया है।

उपर्यक्त तर्कों के अध्ययन के पश्चात् कुछ विद्वान इनके विपक्ष में अपने तर्क प्रस्तुत करते हुए कुछ तर्क प्रस्तुत करते हैं जिनका विवरण इस प्रकार है —-


1- अर्थशास्त्र एक धर्मनिरपेक्ष रचना है जिसका मुख्य विषय सामन्य राज्य एवं उसके शासनतंत्र का विवरण प्रस्तुत करना है।  इसमें चक्रवर्ती सम्राट का अधिकार-क्षेत्र हिमालय से लेकर समुद्र-तट तक बताया गया है जो इस बात की सूचक है कि कौटिल्य विस्तृत सम्रज्ट से परिचित था। 

2- अर्थशास्त्र मुख्तयः विभागीय अध्यक्षों का वर्णन करता है।  नगर तथा सेना की परिषदों का अशासकीय होने के कारण इसमें उल्लेख नहीं है। 

3- भारतीय लेखकों में अपने नाम का उल्लेख अन्य पुरुष में करने की प्रथा  रही है। अतः यदि अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने अपना उल्लेख अन्य पुरषों में किया  है तो इसका यह अर्थ नहीं कि वह स्वयं इस ग्रन्थ का रचयिता नहीं था।

4- मेगस्थनीज  का सम्पूर्ण विवरण हमें उपलब्ध नहीं है।  संभव है कौटिल्य का उल्लेख उन अंशों में नहीं हुआ हो जो प्राप्त हैं।  पतंजलि ने अशोक और बिन्दुसार का भी उल्लेख नही किया है। तो क्या इन दोनों को अनैतिहासिक माना जा सकता है। उनका उद्देश्य पाणिनि तथा कात्यान के सूत्रों की व्याख्या करना था, न कि इतिहास लिखना।       

5- कौटिल्य जिस समाज का चित्रण करता है उसमें नियोग प्रथा, विधवा विवाह आदि का प्रचलन था।  यह प्रथा मौर्ययुगीन समाज में थी।  उसने ‘युक्त’ शब्द का प्रयोग अधिकारी  के रूप में किया है।  यही शब्द  अशोक के लेखों में भी आया है। इसमें मद्र, कम्बोज, लिच्छवि, मॉल आदि गणराज्यों का भी उल्लेख हुआ है जो इस बात के सूचक हैं  कि यह ग्रन्थ मौर्य युग के प्रारम्भ में लिखा गया था। 

इसी प्रकार अर्थशास्त्र में बौद्धों के प्रति भी बहुत काम सम्मान प्रदर्शित किया गया तथा लोगों को अपने परिवार के पोषण की व्यवस्था किये बिना सन्यास ग्रहण करने से रोका गया है। इससे यही सूचित होता है कि बौद्ध धर्म के लोकप्रिय होने से पूर्व ही यह ग्रन्थ लिखा गया था। 

6- यहाँ उल्लेखनीय है कि कौटिल्य तथा मेगस्थनीज के विवरणों में कई समानताएं भी हैं। मेगस्थनीज के समान कौटिल्य  भी लिखता है कि जब चन्द्रगुप्त आखेट के लिए निकलता था तो उसके साथ राजकीय जुलुस चलता था तथा सड़कों की कड़ी सुरक्षा रखी जाती थी। दोनों हमें बताते हैं कि सम्राट की अंगरक्षक महिलाऐं होती थीं तथा वह अपने शरीर की मालिश करवाता था।

मेगस्थनीज के ओवरसियर्स अर्थशास्त्र के गुप्तचर हैं। इसी प्रकार मेगस्थनीज द्वारा उल्लिखित कुछ अधिकारी अर्थशास्त्र के अध्यक्षों से मिलते-जुलते हैं। सामन्यतः हम कह सकते हैं कि दोनों के द्वारा प्रस्तुत प्रशासनिक एवं सामाजिक व्यवस्था का स्वरुप अधिकांश अंशों में समानता रखता है।

इस विवरण से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र मौर्य काल की रचना है तथा इसमें चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री कौटिल्य के ही विचार स्वयं उसी के द्वारा प्रस्तुत किये गए हैं। आगे चलकर अन्य लेखकों द्वारा इस ग्रंथ में कुछ प्रक्षिप्तांश (projections ) जोड़ दिए गए जिससे मूल ग्रंथ का स्वरूप परिवर्तित-सा हो गया। अतः मूल ग्रंथ को हम चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में रख सकते हैं। 

 इस ग्रंथ की एक महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्रंथ के अंत में कहा गया है कि इसकी रचना उस व्यक्ति द्वारा की गयी जिसने क्रोधित होकर शस्त्र, शास्त्र तथा नंदराज के हाथ में गयी हुयी पृथ्वी का शीघ्र उद्धार किया।

           “येन शस्त्र च शास्त्र च नंदराजगता च भू: । 

            अमर्षेणोद्धतान्याशु तेन शास्त्रमिद कृत्रम

कौटिल्य द्वारा नंदों का विनाश एक ऐसी ऐतिहासिक परम्परा है जिसकी हम उपेक्षा नहीं कर सकते। अतः अर्थशास्त्र को उसकी रचना मानने में किसी प्रकार के संदेह की गुंजाइश नहीं है।

अर्थशास्त्र में वर्णित विषय 

  • अर्थशास्त्र में 15 अधिकरण तथा 180 प्रकरण हैं। 
  • इस ग्रंथ में इसके कुल श्लोकों की संख्या 4000 के लगभग बताई गई है। 
  • प्रथम अधिकरण में राजस्व संबंधी विविध विषयों का वर्णन है। 
  • द्वितीय अधिकरण में नागरिक प्रशासन की विशद विवेचना की गई है।
  • तृतीय तथा चतुर्थ अधिकरणों में दीवानी, फौजदारी तथा व्यक्तिगत कानूनों का उल्लेख है मिलता है।
  • पञ्चम अधिकरण में सम्राट के सभासदों एवं अनुचरों के कर्तव्यों एवं दायित्वों का उल्लेख है।
  • छठे अधिकरण में राज्य के सप्तांगों — स्वामी, अमात्य, राष्ट्र, दुर्ग, बल, कोष तथा मित्र के स्वरूप तथा कार्यों का वर्णन किया गया है।
  • अंतिम नौ अधिकरण राजा की परराष्ट्र नीति, विजय अभियान अथवा सैन्य अभियान, युद्ध में विजय के उपाय, शत्रुदेश में लोकप्रियता प्राप्त करने के उपाय, युद्ध तथा संधि के अवसर आदि विविध विषयों का विस्तारपूर्वक वर्णन प्रस्तुत करते हैं। 
  •  इस प्रकार अर्थशास्त्र मुख्यतः शासन की व्यवहारिक समस्याओं से संबंधित रचना है।

कौटिल्य के शासन का आदर्श बड़ा ही उदात्त था। उसने अपने ग्रंथ में जिस विस्तृत प्रशासनिक व्यवस्था का स्वरूप प्रस्तुत किया है उसमें प्रजा का हित ही राजा का चरम लक्ष्य है। वास्तव में यह ग्रंथ चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन-व्यवस्था के ज्ञान के लिए बहुमूल्य सामग्रियों का भंडार है।

कौटिल्य सिर्फ एक राजनीतिज्ञ बिशारद ही नहीं था अपितु वह राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र में एक नए सिद्धांत का प्रतिपादक भी था। बाद के लेखकों ने अत्यंत सम्मानपूर्वक उसके नाम का उल्लेख किया है।  राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र में अर्थशास्त्र का वही स्थान जो व्याकरण के क्षेत्र में पाणिनि की अष्टाध्याय का है। 


Share This Post With Friends

Leave a Comment

Discover more from 𝓗𝓲𝓼𝓽𝓸𝓻𝔂 𝓘𝓷 𝓗𝓲𝓷𝓭𝓲

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading