शातकर्णि प्रथम की मृत्यु के पश्चात् सातवाहनों की शक्ति निर्बल पड़ने लगी। नानघाट के लेख में उसके दो पुत्रों – वेदश्री तथा शक्तिश्री का उल्लेख मिलता है। दोनों ही अवयस्क थे। अतः शातकर्णि प्रथम की पत्नी नायनिका ने संरक्षिका के रूप में शासन संभाला। इसके पश्चात् सातवाहनों का इतिहास अंधकारपूर्ण है। ‘सातवाहन शासक गौतमीपुत्र शातकर्णि का इतिहास : सातवाहनों का पुनरुद्धार’ सातवाहन शक्ति का पुनरुद्धार गौतमीपुत्र शातकर्णि के नेतृत्व में एक बार फिर से हुआ और सातवाहनों की शक्ति को चार्म पर पहुंचा दिया।आज इस ब्लॉग में में महान सातवाहन शासक गौतमीपुत्र शातकर्णि के विषय में जानेंगे। वह प्रथम शासक था जिसने अपने नाम के साथ अपनी माता के नाम का प्रयोग किया।
गौतमीपुत्र शातकर्णि
गौतमीपुत्र शातकर्णि प्रथम सातवाहन वंश के शासक थे और उनकी शासनकाल 106 ईस्वी से 130 ईस्वी तक माना जाता है। वे दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश के राजा थे और उन्होंने सातवाहन राज्य को मजबूत बनाया था। गौतमीपुत्र शातकर्णि प्रथम को सातवाहनों का सबसे महान शासक माना जाता है जिन्होंने विविध कला, संस्कृति और व्यापार को बढ़ावा दिया था।
पुराणों में गौतमीपुत्र शातकर्णि को सातवाहन वंश का तेईसवाँ शासक था। उसके पिता का नाम शिवस्वाति था, तथा माता का नाम गौतमी बलश्री था। सातवाहन कुल का वह महानतम सम्राट था। उसके तीन अभिलेख मिलते हैं। दो नासिक से तथा एक कार्ले से।
- नासिक का प्रथम अभिलेख उसके शासन के 18वें वर्ष का है। दूसरा नासिक अभिलेख 24वें वर्ष का है।
- कार्ले का अभिलेख सम्भवतः 18वे वर्ष का है।
गौतमीपुत्र शातकर्णि के अनेक सिक्के भी प्राप्त हुए हैं। उसकी उपलब्धियों के विषय में उसकी माता गौतमी बलश्री के नासिक प्रशस्ति तथा पुलुमावी के नासिक गुहालेख से भी सूचना मिलती है।
गौतमीपुत्र शातकर्णि प्रथम की सैनिक सफलताएं
सातवाहनों का महाराष्ट्र से शासन क्षहरातों के आक्रमण के कारण समाप्त हो गया था। अतः गौतमीपुत्र का प्रथम उद्देश्य सातवाहनों की शक्ति की पुनर्स्थापना कर अपना खोया राज्य वापस प्राप्त करना था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने अपने राज्यारोहण के पश्चात् 16 वर्षों तक सैनिक तैयारियां की। सातवें वर्ष में गौतमीपुत्र ने एक विशाल सेना के साथ क्षहरातों के राज्य पर आक्रमण किया।गौतमीपुत्र के इस सैनिक अभियान में क्षहरात नरेश नहपान तथा उषावदात पराजित हुए और मार डाले गए।
अपनी इस विजय के पश्चात् गौतमीपुत्र ने बौद्ध संघ को ‘अजकाकिय’ नामक क्षेत्र दान में दिया। इस समय उसने गोवर्धन के अमात्य को एक राजाज्ञा जारी कर स्वयं को ‘वेणाकटक स्वामी’ कहा। अतः ये स्पष्ट करता है कि उसने वेणाकटक ( वैनगंगा ) का तटवर्ती प्रदेश क्षत्रपों से विजित किया था। इसके पश्चात् उसने कार्ले के बौद्ध संघ को ‘करजक’ नामक ग्राम दान दिया।
पुलुमावी के नासिक गुहालेख में गौतमीपुत्र शातकर्णि को ‘शक, यवन, तथा पह्लवों का विनाश करने वाला, तथा क्षहरात कुल का उन्मूलन करने वाला कहा गया है।
नहपान की राजधानी भरुकच्छ थी।
नासिक गुहालेख में गौतमीपुत्र शातकर्णि की विजयों का उल्लेख है —
- ऋषिक ( कृष्ण नदी का तटीय क्षेत्र )
- अस्मक ( गोदावरी का तटीय प्रदेश )
- मूलक ( पैठन का समीपवर्ती भाग )
- सुराष्ट्र ( दक्षिणी काठियावाड़ )
- कुकुर ( पश्चिमी राजपुताना )
- अपरान्त ( उत्तरी कोंकण )
- अनूप ( नर्मदा घाटी )
- विदर्भ ( बरार )
- आकर ( पूर्वी मालवा )
- अवन्ति (पश्चिमी मालवा )
इस प्रकार गौतमीपुत्र शातकर्णि का साम्राज्य उत्तर में मालवा तथा काठियावाड़ से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक तथा पूर्व में विदर्भ से लेकर पश्चिम में कोकण तक विस्तृत था।गौतमीपुत्र ने नासिक जिले में वेणाकटक नामक एक नगर की स्थापना की।
गौतमीपुत्र ने क्षत्रियों के दर्प को कुचलकर ‘राजराज’, महाराज , स्वामी, आदि महान उपाधियाँ ग्रहण कीं।
शासन प्रबन्ध
गौतमीपुत्र एक महान शासक था और उसनेअपने साम्राज्य का शान प्रबंध अत्यंत कुशलता और योग्यता के साथ संचालित किया।उसने गरीबों और निर्बलों, दुखी लोगों की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने वर्णाश्रम व्यवस्थानुसार समाज का गठन किया और करों का भार कम रखा।
उसने सम्पूर्ण साम्राज्य को ‘आहारों’ में विभाजित किया। प्रत्येक आहार एक अमात्य के अधीन होता था। अपने राज्यकाल के अंत में अपनी माता के साथ मिलकर शासन का संचालन किया।
धार्मिक नीति
गौतमीपुत्र ब्राह्मण ( वैदिक ) धर्म का अनुयायी था और उसका काल ब्राह्मण धर्म का पुरुत्थान का कल कहा जाता है जिसने दक्षिण में एक बार फिर से ब्राह्मण धर्म की प्रतिष्ठा को स्थापित किया। यद्यपि वह ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था परन्तु वह एक धर्मसहिष्णु शासक था। वह बौद्धों के प्रति उदार था तथा बौद्ध भिक्षुओं को ग्राम तथा भूमि दान दी।
व्यक्तित्व एवं चरित्र
गौतमीपुत्र वहुमुखी प्रतिभा का धनी था और उसमें सम्पूर्ण शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त की थी। वह एक मातृभक्त था और दयालु प्रवृत्ति का था। वह अपराधियों को भी क्षमादान दे देता था। उस्का चरित्र उज्ज्वल था तथा वह एक धर्मपरायण व्यक्ति था।
शासनकाल
गौतमीपुत्र शातकर्णि का शासनकाल 106 ईस्वी से 130 ईस्वी तक माना जाता है।
निष्कर्ष
इस प्रकार गौतमीपुत्र शातकर्णि ने अपने कुल की कोई शक्ति को पुनर्स्थापित करके एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया और अम्पूर्ण महाराष्ट्र मालवा सहित दक्षिण में कृष्ण नदी तक अपना साम्राज्य विस्तृत किया। वह शातवाहन वंश का सबसे शक्तिशली सम्राट था।