लार्ड वैलेज़ली (1798-1805) और उसकी सहायक संधि

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सहायक संधि ऐसी नीति थी जिसने कंपनी को बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के धन और साम्राज्य दोनों प्रदान किये। लार्ड वैलेज़ली ने इस सहायक संधि का सहारा लेकर अनेक राज्यों को कंपनी के राज्य में मिलाया

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लार्ड वैलेज़ली (1798-1805) और उसकी सहायक संधि
IMAGE CREDIT-WIKIPEDIA

लार्ड वैलेज़ली का परिचय

लार्ड वैलेज़ली 1798 में सर जॉन शोर के बाद भारत का गवर्नर-जनरल बना। लार्ड वैलेज़ली का पूरा नाम ‘रिचर्ड कार्ले वैलेज़ली -मार्विक्स ऑफ वैलेज़ली था। भारत में आने से पूर्व वैलेज़ली इंग्लैंड के कोष का लार्ड और बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल का आयुक्त रह चुका था। जब वैलेज़ली भारत में गवर्नर जनरल बनकर आया तब उसकी आयु 37 वर्ष थी और वह युवावस्था से भरपूर था।

     वैलेज़ली इंग्लैंड में कुछ विशेष कार्य नहीं कर पाया था और उसके लिए वह क्षेत्र उपयुक्त नहीं था। एक समकालीन व्यक्ति ने उन्हें कहा था -“आपको और विस्तृत क्षेत्र चाहिए। आप घुटन से मर रहे हैं।” अतः लार्ड वैलेज़ली को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर भारत के विशाल राज्य में मिला।

भारत में लार्ड वैलेज़ली के उद्देश्य

भारत में वैलेज़ली के सामने निम्न उद्देश्य थे

1-वह कंपनी ( ईस्ट इंडिया कंपनी ) को भारत की सबसे बड़ी कंपनी बनाना चाहता था।
2-वह कंपनी के क्षेत्रों का विस्तार करना चाहता था।
3-वह भारत के सभी राज्यों को कंपनी के अधीन लाना चाहता था।
4-वैलेज़ली ने शांति तथा निष्पक्षता की नीति का त्याग कर युद्ध और सिर्फ युद्ध की नीति का पालन किया।
5-उसने भारतीय राज्यों के प्रति आक्रामक युद्ध की नीति अपनाई।
6-वैलेज़ली अपनी नीति को ‘न्याय तथा तर्कसंगत’ ‘परिमित और शांत’ कहता था।

सहायक संधि क्या थी?

वेलेजली ने भारतीय राज्यों को अंग्रेजी राज्य में लाने के लिए जिस नीति का पालन किया उसे ‘सहायक संधि’ कहा जाता है। इस प्रणाली से वैलेज़ली ने न सिर्फ भारतीय राज्यों को अंग्रेजी राज्य में मिलाया बल्कि फ्रांसीसी आक्रमण के भय को भी टाल दिया। इस प्रणाली ने विस्तृत अंग्रेजी साम्राज्य के निर्माण विशेष भूमिका निभाई और कंपनी के हाथ विशाल साम्राज्य लगा।

अल्फ्रैड लायल के अनुसार कम्पनी के भारतीय युद्धों में भाग लेने की चार स्थितियां थीं –
1-कंपनी ने मित्र राज्यों को युद्धों में सहायता के लिए अपनी सेना किराये पर दी। जिसके अनुसार 1768 में निजाम से संधि की गई।
2- कंपनी ने स्वयं अपने मित्रों की सहायता से युद्धों में भाग लिया।
3-भारतीय राजाओं ने सैनिकों के स्थान पर धन दिया। इस धन से कंपनी ने सेना को प्रशिक्षण और साज-सामान का इंतज़ाम किया ( हैदराबाद की संधि 1798 ).
4-कंपनी ने भारतीय राजाओं को रक्षा की गारंटी के बदले प्रदेश का भाग प्राप्त किया जैसा कि निजाम से 1800 की संधि से हुआ।

सहायक संधि का अविष्कार किसने किया?

   सहायक संधि का अविष्कार लार्ड वैलेज़ली ने नहीं किया बल्कि भारत में सबसे पहले इसका अविष्कार फ्रांसीसी गवर्नर डूप्ले ने किया था। डूप्ले ही वो पहला व्यक्ति था जिसने अपनी सेना भारतीय राजाओं को किराये पर दी। और इसके बदले धन प्राप्त किया। वैलेज़ली इस प्रणाली का विस्तार कर इसे सभी कम्पनी के अधीन भारतीय राजाओं के साथ लागू किया।

प्रथम सहायक संधि किसके साथ की गई?

प्रथम सहायक संधि 1765 में ( इलाहबाद की संधि ) अवध के साथ की गई थी जब कम्पनी ने निश्चित धन के बदले धन के बदले उसक सीमाओं की रक्षा का वचन दिया गया। इसके अतिरिक्त अवध ने एक अंग्रेजी रेजीडेंट को लखनऊ में रखना स्वीकार किया।

इसी प्रकार 1787 में कंपनी ने कर्नाटक के नवाब से यह अनुरोध किया कि वह किसी अन्य विदेशी शक्ति से संबंध नहीं रखेगा। 21 जनवरी 1798 को सर जॉन शोर ने अवध से संधि की शर्तों को आगे बढ़ाते हुए नवाब से कहा कि वह किसी अन्य यूरोपीय वयक्ति को सेवा में नहीं रखेगा।

सहायक संधि की प्रमुख शर्तें क्या थीं?

सहायक संधि स्वीकार करने वाले भारतीय शासकों को निन्मलिखित शर्तों को स्वीकार करना पड़ता था —-

1- भारतीय शासकों के विदेशी संबंध कम्पनी के अधिकार में रहेंगे। भारतीय शासक कोई युद्ध अथवा संधि नहीं करेंगे, केवल कंपनी राज्यों से बातचीत कर सकती थी।

2-बड़े-बड़े राज्यों को एक ऐसी सेना रखनी होती थी जिसकी कमान अंग्रेजी अधिकरियों के हाथ में होती थी। और इसका उद्देश्य सार्वजानिक शांति बनाये रखना होता था। इसके लिए उन्हें “पूर्ण प्रभुसत्ता युक्त प्रदेश” कंपनी को देना होगा। छोटे राज्यों को कंपनी को नगद धन देना होता था।

3-सहायक संधि स्वीकार करने वाले राज्यों को एक अंग्रेजी रेजीडेंट अपनी राजधानी में रखना होता था।

4-कंपनी की अनुमति के बिना राज्य किसी यूरोपीय व्यक्ति को अपने यहाँ नौकरी पर नहीं रखेंगे।

5-कम्पनी राज्यों के आंतरिक मामलों से दूर रहेगी।

6-कम्पनी राज्यों की सभी प्रकार के शत्रुओं से रक्षा करेगी।

लार्ड वैलेज़ली के अधीन सहायक संधि स्वीकार करने वाले राज्य

  • हैदराबाद -सितम्बर 1798 तथा 1800
  • मैसूर – 1799
  • तंजोर – अक्टूबर 1799
  • अवध – नवम्बर 1801
  • पेशवा – दिसम्बर 1801
  • बराड़ के भोंसले- दिसम्बर 1803
  • सिंधिया -फरवरी 1804
  • जोधपुर –
  • जयपुर
  • मच्छेड़ी
  • भरतपुर

सहायक संधि से कम्पनी को क्या लाभ हुए?

1- सहायक संधि प्रणाली साम्राज्य निर्माण में एक भेदिये शत्रु की भूमिका निभाने लगी। भारतीय राज्य शक्तिहीन होकर निरस्त्र हो गए क्योंकि अब उन्हें कम्पनी का संरक्षण प्राप्त हो गया। अब भारतीय राज्य कोई संघ नहीं बना सकते विशेषकर कंपनी विरुद्ध।

2-कंपनी को बिना खर्च किये एक विशाल सेना मिल गई। जैसा वैलेज़ली ने स्वयं लिखा -“अपनी सहायक सेनाएं हैदराबाद, पूना, गायकवाड़, दौलतराव सिंधिया तथा गोहद के राणा के यहाँ रखने से हम 22,000 वयक्तियों की एक दक्ष सेना जिसका व्यय विदेशी ( भारतीय राज्य ) से रहे हैं, विदेशी राज्यों के भीतर अथवा उनकी सीमाओं पर रखने में समर्थ हो गए हैं। यह सेना पूर्णरूपेण दक्ष है तथा अल्पमत सूचना पर किसी भी दिशा में किसी भी समय लड़ने में दक्ष है। कंपनी के अधिकृत क्षेत्रों की शांति भंग किये बिना अथवा भारत सरकार पर बिना किसी अतरिक्त बोझ के इन्हें किसी भी भारतीय राजा के विरुद्ध प्रयोग किया जा सकता है।”

3-भारतीय राजाओं की राजधानी में कंपनी की सेना रखने से कम्पनी का सामरिक महत्व पर नियंत्रण हो गया तथा शेष यूरोपीय शक्तिओं को भी ईर्ष्या का अवसर नहीं मिला।

4-सहायक संधि से कंपनी की सेना उसकी राजनीतिक सीमाओं से चली गई। इस प्रकार युद्ध का भार और युद्ध क्षेत्र दोनों ही देशी राजाओं के थे।

5-इस संधि से कम्पनी भारत में सर्वेसर्वा हो गई क्योंकि कोई भी शासक बिना कम्पनी की अनुमति के किसी भी यूरोपीय शक्ति से संबंध नहीं रख सकती थी।

6-अब कंपनी भारतीय राजाओं के बीच विवादों में मध्यस्थ थी।

7-देशी राजाओं के यहाँ रहने वाला अंग्रेज रेजीडेंट आगे चलकर शक्तिशाली हो गए।

8-कंपनी को बहुत सा प्रभुतासम्पन्न प्रदेश प्राप्त हुआ। 1792 और 1799 में मैसूर प्राप्त हुआ और 1800 में पूर्ण अधिकार हो गया। इसी प्रकार 1801 में रुहेलखंड तथा दक्षिणी दोआब प्राप्त प्राप्त हो गया।

भारतीय शासकों को सहायक संधि से हानि

1-भारतीय शासक अब सिर्फ नाम के शासक रह गए। वे अपना सम्मान और राष्ट्रीयता कंपनी को गिरवीं रख चुके थे।
2-अंग्रेज रेजिडेंट ने अत्यधिक हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया।
3-अंग्रेजों ने भारतीय राजाओं की रक्षा की मगर जनता की स्थिति पर कोई ध्यान नहीं दिया।
4-सहायक संधि स्वीकार करने वाले शासक शीघ्र ही दिवालिया हो गए। अंग्रेज रेजीडेंट और सेना के भार ने उनके राजकोष को खाली कर दिया।

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