प्राचीन भारतीय मुद्रा-व्यवस्था ( सिक्का ढलाई ) प्रणाली- सिक्कों के नाम, बनावट और वजन

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प्राचीन भारत में सिक्का ढलाई का एक लम्बा इतिहास रहा है।  सबसे प्राचीन चांदी या ताम्बे के पंचमार्क ( ठप्पे लगाकर बनाए गए ) सिक्के थे।  इन सिक्कों पर कोई अभिलेख या मुद्रालेख नहीं होता था और इन्हें ठप्पे लगाकर सांचे में ढालकर तथा ठोक-पीटकर  बनाया जाता था। अभिलेखयुक्त प्रक्घिन सिक्के उज्जयिनी, कौशाम्बी, वाराणसी, महिष्मति, त्रिपुरी, एरण आदि नगरों से जारी किये गए थे और इन पर ब्राह्मी अक्षरों में मुद्रालेख अंकित होता था।  राजस्थान और पंजाब के यौधेय, वृष्णियों, औदुम्बरों, कलूतो आदि जनजातियों ने बड़ी संख्या में जनजातीय सिक्के जारी किये।

 

प्राचीन भारतीय मुद्रा-व्यवस्था ( सिक्का ढलाई ) प्रणाली- सिक्कों के नाम, बनावट और वजन

प्राचीन भारतीय मुद्रा-व्यवस्था

यूनानियों का आगमन और भारतीय सिक्कों में परिवर्तन


यूनानी बैक्ट्रियनों या भारतीय-यूनानियों के सत्ता में आने पर भारतीय सिक्का प्रणाली पूरी तरह परिवर्तित हो गई। सम्भवतः भारतीय-यूनानी शासकों ने सबसे पहले भारत में राजमुद्रा या शाही सिक्के जारी किये इन शासकों ने हेलेनिक ( 67.7 ) या परिवर्तित वजन ( 86.45 ) के मानक के अनुसार चंडी के सिक्के जारी किये। इन सिक्कों पर जारी करने वाले शासक के नाम और आकृति के साथ-साथ खरोष्ठी लिपि में प्राकृत और यूनानी भाषा एवं लिपि में मुद्रालेख लिखा होता था।

शक और कुषाण शासकों के सिक्के

‘शकों’ ने भी भारतीय-यूनानी सिक्कों के स्वरूप के अनुरूप शक सिक्के जारी किये। पहली ईस्वी में कुषाणों के सत्ता में आने के साथ भारतीय सिक्का प्रणाली में काफी सुधार हुआ। कुषाणों के सोने के सिक्कों पर विभिन्न भारतीय तथा गैर-भारतीय देवी-देवताओं की आकृतियां और नाम अंकित होते थे। दूसरी और चौथी शताब्दी ईस्वी में पश्चिम भारत पर राज करने वाले ‘शक’ राजाओं के चांदी के सिक्कों पर शक संवत के अनुसार  जारी करने का वर्ष लिखा होता था।

गुप्त सम्राटों के सिक्के

 ‘शक’ साम्राज्य को ध्वस्त करने वाले गुप्त वंश के सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने शक सिक्कों की अनुकृति वाले चांदी के सिक्के जारी किये। गुप्त काल के सोने  के सिक्के संस्कृत सुलेख और सूक्तियों के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इन सिक्कों पर कुछ घटनाओं, जैसे ‘अश्वमेध यज्ञ, के आयोजन और साथ ही जारी करने  वाले शासक के व्यक्तित्व का भी चित्रण किया गया है, जैसे वीणा बजाते समुद्रगुप्त की आकृति सिक्कों पर उत्कीर्ण है। इसीलिए गुप्तकालीन सिक्कों को कुछ इतिहासकारों ने प्रचार मुद्रा की संज्ञा दी है।

दक्षिण भारतीय सिक्के

दक्षिण में अनेक प्रकार  सिक्कों का  प्रचलन था। जैसा कि सिक्कों के नामों से संकेत मिलता है – मदै, कासु, अच्चु, और फणम सिक्कों का प्रचलन था।  इनके आलावा, भारी वजन का कलंजु सिक्का भी प्रचलित था।  दक्षिण के सातवाहन शासकों ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी ईस्वी तक अपने शासनकाल में सीसे हुए ताम्बे के सिक्के जारी किए। इन शासकों पश्चिमी शकों की तर्ज पर कुछ चांदी के सिक्के भी चलाये। दक्कन में  सातवाहनों के उत्तराधिकारियों ने अपने ताम्बे  के सिक्के जारी  किए। सुदूर दक्षिण में पल्ल्वों के सिक्के सांचे ढले सोने,चांदी और ताम्बे के थे। पाण्ड्य राजाओं के अधिकतर सिक्के ताम्बे के थे और  उन्होंने बहुत कम सोने के सिक्के जारी किये।

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 शक्तिशाली चोल नरेशों ने सोने,चांदी, ताम्बे और पीतल के सिक्के  जारी किये।  दक्षिण भारत में पाए गए प्रसिद्द विदेशी सिक्कों में रोमन का सोने का औरयस और चांदी का देनारियस सिक्के शामिल हैं जो ईसा काल की प्रारम्भिक शताब्दियों में प्रचलित थे। शिलालेख संबंधी स्रोतों से चीन के सिक्के चिनाक्कनम के प्रचलन का भी पता चलता है।

यहाँ हम प्रमुख सिक्कों  के विषय में जानेंगे —

अक्कू -सिक्के  का तमिल नाम।
औरियस- रोम का सोने का सिक्का।
काकिनी– 20 कौड़ी के बराबर।
कलंजु- 10 मंजदीस-32 रत्ती ( या करीब 52 दाने ) के  सिक्के का तमिल नाम।
कनम – सोने के सिक्के या वजन का तमिल नाम।
कपरद – सिक्के के रूप में प्रयुक्त कौड़ी।
कर्ष- 80 रत्ती के बराबर वजन का नाम।
कार्षापण – 32 रत्ती वजन का चांदी  का सिक्का जिसे पण भी कहा जाता था। मौर्यकाल में मुख्यतः प्रचलित।
कासु- ताम्बे के एक सिक्के का नाम।
कोवै – सोने के सिक्के का तमिल नाम।
कृषनल – रत्ती या गुंज की तरह ही।
कुमार गद्यानाक – एक कर या सिक्के का नाम।
गधिया – शक शासकों द्वारा जारी सिक्कों की अनुकृति पर बना ताम्बे का सिक्का, जो प्रारम्भिक या पूर्व मध्यकाल में गुजरात और राजस्थान में प्रचलित था।
गद्यानाक-  सोने का सिक्का या वजन जिसे आमतौर पर 16 रत्ती माना जाता था। कीर्तिवर्मन के पट्टदाकल अभिलेख ( 754 ईस्वी ) में इस सिक्के का उल्लेख किया गया है।

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गण्ड – 4 कौड़ियों के बराबर।
गुलिका -गोल आकार का एक छोटा सा सिक्का।
गुंज – रत्ती या रत्तिका की ही भांति का सिक्का।
घुड़सवार तथा बैल आकृति वाले सिक्के -चांदी के ये सिक्के ओहिन्द और काबुल के ‘शाही’ राजाओं  ने जारी किये।
तनका – एक सिक्के का नाम, चांदी  का सिक्का जिसका वजन 1 तोला था।
तत्तरीय दिरहम– पश्चिम भारत में प्रयुक्त होने वाला सिक्का।
अरब यात्रियों द्वारा इसका वर्णन किया गया।
दीनारियस – ईसाकाल की प्रारम्भिक शताब्दियों के रोम के सोने के सिक्के जो बड़ी संख्या में दक्षिण भारत में पाए गए।
दीनार – सोने के सिक्के का नाम जो चांदी के रूपक नामक 16 सिक्कों के बराबर था।
द्रचमा – एक चांदी का सिक्का जिससे भारतीय सिक्के द्रम की उत्पत्ति हुई।
द्रम- एक स्वर्ण निष्क के 16वे भाग के बराबर का चांदी का सिक्का। यह नाम सबसे सिक्कों पर लिखा गया।
धानक –  चांदी का सिक्का, 12 धानक एक स्वर्ण के बराबर थे।
धरन या धारण – 32 रत्ती का चांदी का पुराना सिक्का।
निवर्तन – भूमि (  क्षेत्रफल निश्चित नहीं ) .
नान- कुषाणकालीन सिक्के, जिन पर पश्चिम एशियाई देवी-नान-चीनी ( धन संपत्ति की देवी ) की आकृति अंकित रहती थी।
पैकमु- तेलगु, सोने का एक छोटा सिक्का।
पल- 300 रत्तियों के वजन वाला वाट।
पदव्रत- पश्चिम भारत में प्रयोग होने वाला भूमि का एक माप-शायद 10,000 फुट।
पण- ताम्बे के कार्षापण की तरह ही; मनु के अनुसार वजन में 80 रत्ती।
पुरुथथ – ताम्बे के 8 द्रमों के बराबर का चांदी का सिक्का।
पोन- सोने के मेडल की तरह  का सिक्का।

पंचमार्क सिक्केयह नाम बहुलांश: उन उपलब्ध प्राचीनतम भारतीय चांदी और ताम्बे के सिक्कों को दिया गया है जो ठप्पा लगाकर बनाए जाते थे जबकि सांचे में ढालकर और पीटकर बनाए जानेवाले सिक्कों में ऐसा नहीं था।  इन सिक्कों  पर  किसी का नाम या मुद्रालेख नहीं होता था अपितु कोई आकृति या प्रतीक चिन्ह का ठप्पा लगा होता था।


पुराण- चांदी का सिक्का जिसे धरण या कार्षापण भी कहा जाता था, वजन 32 रत्ती।
बलोत्रा – पूर्व मध्यकाल के मुसलमान इतिवृत्तकारों द्वारा चांदी के एक भारतीय सिक्के को दिया गया नाम।
मंजादि – 5.5 ग्रेन वजन का सिक्का।
मद- तेलगु सोने या चांदी का 40 रत्ती का सिक्का।
मासा – 5 रत्ती वजन का वाट या इतने ही रत्ती वजन का सिक्का।
रुद्रदमक – पश्चिम भारत  के शक राजाओं द्वारा जारी चांदी का सिक्का।
रूपक – चांदी का सिक्का; 16 रूपक एक स्वर्ण दीनार  थे।
लोहडिया- 20 पविसों या 100 कौड़ियों के समतुल्य का सिक्का।
वर्तिक – सिक्कों के रूप में प्रयुक्त कौड़ियां।
विनिसोपक – 20 रत्ती के चांदी  के सिक्के का 1/20 भाग।
वोदि – इसे वेदिका या वोद्री भी कहा जाता था, कभी-कभी कौड़ियां भी सिक्कों के रूप में प्रयुक्त होती थीं; लेकिन वास्तव में 1 वोदि 5 गंड के बराबर और 5 गंड 20 कौड़ियों के बराबर थे।
शतमान- 320 रत्ती का वजन का वाट और ताम्बे के एक सिक्के का नाम।
सलगे – दक्षिण के एक सिक्के का नाम।
सन- 40 रत्ती का सिक्का।
स्वर्ण – 16 ‘मासा’ का वजन।  

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