इस बात में संदेह है कि क्या वित्त के संबंध में व्यापक संविधानिक शक्तियों के लिए आंदोलन इस प्रकार के तदर्थ (ad hoc ) उपायों से शांत हो जायेगा। बसु के ‘इट्रोडक्शन टू दि कांस्टिट्यूशन ऑफ़ इंडिया’ के ग्यारहवें संस्करण के पृष्ठ 61 में सुझाव दिया गया था कि —
सरकारिया आयोग
सरकारिया आयोग का गठन 9 जून 1983 को भारत सरकार द्वारा किया गया था। इसकी अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति रणजीत सिंह सरकारिया ने की थी। इसका कार्य भारत के केंद्र-राज्य संबंधों से संबंधित शक्ति संतुलन पर अपनी सिफारिशें देना था।
पृष्ठभूमि
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसआर बोम्मई ने 1989 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी सरकार की बर्खास्तगी को चुनौती दी और राज्य विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के लिए उनके अनुरोध को ठुकराने के राज्यपाल के फैसले पर सवाल उठाया। सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय बेंच ने मार्च 1994 में बोम्मई मामले में अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया और राज्यों में केंद्रीय शासन लागू करने के संबंध में सख्त दिशा-निर्देश दिए। इस मामले में आयोग ने 1988 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी और 247 सिफारिशें कीं। वह था. Sources:wikipedia
सरकारिया आयोग का गठन
“संविधान की पुनः समीक्षा और पुनर्निरीक्षण के लिए एक आयोग स्थापित करने की बात कही गयी ताकि इस समस्या का हल निकाला जा सके , जिससे संघ और राज्यों के उत्तरदायित्व के साथ ही साथ वित्त के प्रश्न पर भी व्यापक दृष्टिकोण से विचार किया जा सके।”
यह सुझाव स्वीकार कर लिया गया।
सरकारिया आयोग का गठन कब किया गया
सरकारिया आयोग का गठन नर्क 1983 ईस्वी में गठित किया गया।
सरकारिया आयोग के अध्यक्ष कौन थे
सरकारिया आयोग का अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट सेवानिवृत्त न्यायाधीश (न्यायमूर्ति रणजीत सिंह सरकारिया), (Shri B. Sivaraman and Dr. S.R. Sen as its members) थे।
सरकारिया आयोग क्यों गठित किया गया
इस आयोग का गठन केंद्र और राज्यों के संबंधों के विषय को स्पष्ट करने के लिए किया गया था। आयोग को केंद्र और राज्यों के बीच तत्कालीन व्यवस्था की समीक्षा के साथ ही केंद्र और राज्यों के मध्य शक्तियों और जिम्मेदारियों की समीक्षा कर ऐसी सिफारिश करना था कि दोनों के मध्य सांमजस्य स्थापित किया जा सके।
सरकारिया आयोग की सिफारिशें क्या थीं
- सरकारिया आयोग ने कई वर्षों तक गहन समीक्षा और अध्ययन करने के पश्चात् अपनी 1600 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की। सरकारिया आयोग ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट जनवरी 1988 में सरकार के समक्ष प्रस्तुत की।
- रिपोर्ट तैयार करते समय भारत की एकता और अखंडता का विशेष ध्यान रखा गया। इस रिपोर्ट को चतुराईपूर्वक तैयार किया गया ताकि लोगों के जनकल्याण की भावना को सर्वोपरि रखा जा सके। आयोग ने सामाजिक विकास और आर्थिक विकास को दृष्टिगत रखते हुए रिपोर्ट तैयार की थी।
- सरकारिया आयोग की विस्तृत रिपोर्ट में 19 अध्याय थे जिसमें कुल मिलकर 247 सिफारिशें की गयीं थीं।
अंतर्राज्यीय परिषद और उसके सचिवालय के संबंध में आयोग की मुख्य सिफारिशें थीं:
- परिषद को अनुच्छेद 263 के खंड (बी) और (सी) के सभी पहलुओं को शामिल करते हुए व्यापक रूप से कर्तव्यों का आरोप लगाया जाना चाहिए। परिषद को राज्यों के बीच विवादों की जांच करने और सलाह देने की शक्तियों से स्वयं को निहित होने से बचना चाहिए
- स्वतंत्र स्थायी सचिवालय के बिना परिषद् अपनी विश्वसनीयता स्थापित नहीं कर सकेगी। बैठकों की प्रकृति और प्रतिभागियों के स्तर को ध्यान में रखते हुए, परिषद के सचिवालय को उपयुक्त रूप से केंद्रीय कैबिनेट सचिवालय के अनुरूप बनाया जाना चाहिए।