वॉरेन हेस्टिंग्ज -बंगाल के गवर्नर से बंगाल के गवर्नर जनरल तक- History 0f Warren Hastings

वॉरेन हेस्टिंग्ज -बंगाल के गवर्नर से बंगाल के गवर्नर जनरल तक- History 0f Warren Hastings

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वॉरेन हेस्टिंग्ज जिसने भारत में बंगाल के गवर्नर के रूप में न्युक्ति पायी थी और जिसने अपनी साम्राज्यवादी नीति से मुग़ल साम्राज्य के प्रभुत्व का मुखौटा तोड़ डाला। उसने वास्तविकता को पहचानते हुए बंगाल पर विजय के अधिकार से शासन करने का प्रयत्न किया। उसके सामने कठिन चुनौती थी बंगाल में एक कामचलाऊ प्रशासनिक व्यवस्था क़याम कर कम्पनी जो एक व्यापारिक इकाई मात्र थी, जो भारतीय रीती-रिवाजों से पूर्णतः अनभिज्ञ थी, को कुशल प्रशासनिक इकाई के रूप में बदलना। साथ ही कम्पनी की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाकर व्यापार को बढ़ाना भी एक चुनौती थी। आज हम बंगाल के अंतिम गवर्नर और भारत के प्रथम गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्ज के सुधारों और  वर्णन करेंगे।

वॉरेन हेस्टिंग्ज -बंगाल के गवर्नर से बंगाल के गवर्नर जनरल तक- History 0f Warren Hastings


वारेन हेस्टिंग्ज: संक्षिप्त परिचय 

नाम
वॉरेन हेस्टिंग्ज
जन्म
6 दिसम्बर 1732
जन्म स्थान
चर्चिल ऑक्सफोर्डशायर
शिक्षा
वेस्टमिंस्टर स्कूल
पिता
पेनीस्टोने हेस्टिंग्ज
माता
हेस्टर हेस्टिंग्ज
ईस्ट इंडिया कम्पनी  में प्रवेश
1750 में   क्लर्क के रूप में भर्ती
कासिम बाजार का रेजिडेंट
1752
कलकत्ता परिषद्  सदस्य
1769-72
बंगाल का गवर्नर
1772-74
बंगाल का गवर्नर जनरल
1774-85
महाभियोग  का मुकदमा 1788-1795 148 दिन की सुनवाई के बाद बरी
मत्यु     22 अगस्त 1818   डेल्सफोर्ड,ग्लूसेस्टरशायर 

वॉरेन हेस्टिंग्ज के प्रशासनिक सुधार – 

वॉरेन हेस्टिंग्ज के सामने बंगाल की दोहरी शासन व्यवस्था से उत्पन्न अव्यवस्था को दुरुस्त करके एक सुचारु प्रशासनिक व्यवस्था लागू करना था। इसके लिए उसने निम्नलिखित कदम उठाये—–

  • कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स ने 1772 में बंगाल की डोगरी शासन व्यवस्था को समाप्त करने का निर्णय लिया। 
  • कलकत्ता परिषद को स्वयं बंगाल, बिहार और उड़ीसा का प्रबंध अपने हाथ में लेने को कहा। 
  • मुहम्मद रजा खां और राजा शिताब राय जो दीवानी का कार्य देखते थे उन्हें वॉरेन हेस्टिंग्ज ने बर्खास्त कर दिया। 
  • परिषद तथा प्रधान को मिलाकर राजस्व बोर्ड का गठन किया गया और नए कर संग्राहक नियुक्त किये गए। 
  • कोष कलकत्ता से मुर्शिदाबाद को स्थानांतरित कर दिया गया। 
  • समस्त प्रशासन कम्पनी ने अपने हाथ में ले लिया और नवाब को सभी प्रकार की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया। 
  • मीरज़ाफर की विधवा मुन्नी बेगम ( अल्पवयस्क नवाब मुबारिकुद्दोला की संरक्षिका ) का भत्ता 32 लाख से घटाकर 16 लाख कर दिया गया। 
  • मुग़ल सम्राट को दिया जाने वाला वार्षिक 26 लाख रुपया ( 1765 में इलाहबाद की संधि के अनुसार ) बंद कर दिया गया। 
  • इलाहबाद तथा कारा के जिले मुग़ल सम्राट से लेकर अवध के नवाब को 50 लाख रूपये में दे दिए गया। 
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इस धन उगाही के पीछे का मकसद कम्पनी की वित्तीय स्थिति को सुधारना था जबकि मुग़ल सम्राट पर ार्प लगाया गया की वह मराठो से संरक्षण ले रहा है जो निराधार आरोप था। 

भूमि कर व्यवस्था 

      मुग़ल सम्राट औरंगजेब की मृत्यु (1707) के बाद अकबर द्वारा स्थापित मुगलकालीन भूमिकर व्यवस्था क्षीण हो चुकी थी। 

  • वॉरेन हेस्टिंग्ज जो एक प्रतिक्रियवादी व्यक्ति था और उसका मनना था कि समस्त भूमि शासक की है और जमींदार केवल एक बिचौलिया मात्र है। 
  • एक व्यवहारिक भूमि व्यवस्था स्थापित करने के लिए उसने परीक्षण तथा अशुद्धि ( trial एंड error ) का नियम प्रयोग किया। 
  • 1772 में भूमि कर संग्रहण के अधिकार ऊँची बोली लगाने वाले को 5 वर्ष के लिए दे दिया गया । 
  • 1773 में कुछ परिवर्तन करते हुए भ्रष्ट तथा निजी व्यापार में लगे कलेक्टरों को हटाकर उनके स्थान पर भारतीय दीवान नियुक्त  किये गए तथा कलकत्ता में स्थित राजस्व परिषद के अधीन क्र दिए गए। 
  • परन्तु यह 5 वर्षीय ठेकेदारी व्यवस्था सर्वथा असफल रही और भारतीय कृषकों को बहुत कष्ट हुआ। क्योंकि ठेकेदारों ने निर्धारित राजस्व से अधिक बसूली की और कृषकों को प्रताड़ित किया अतः अनेक किसानों ने खेती छोड़ दी। 
  • इस सबके परिणामस्वरूप 1776 में ५ वर्षीय ठेका प्रणाली समाप्त करके पुनः एक वर्षीय कर संग्रहण प्रणाली अपने गयी। 
  • जिलों नियुक्त प्रांतीय परिषदों को समाप्त करके पुनः कलेक्टरों की नियुक्ति की गयी। अतः हेस्टिंग्ज एक संतोषजनक कर प्रणालीलागू करने में पूर्णतः असफल रहा। 
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वॉरेन हेस्टिंग्ज के न्यायिक सुधार 

     वारेन हेस्टिंग्ज भूमि कर व्यवस्था में असफल रहा लेकिन उसके न्यायिक सुधार कहीं अधिक सफल रहे जो इस प्रकार हैं  —-

  • 1772 में प्रत्येक जिले में एक जिले में एक दीवानी तथा एक फौजदारी न्यायालय स्थापित किया गया, यह मुग़ल प्रणाली के आधार पर ही था। 
  •  कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायलय ( सुप्रीम कोर्ट ),(रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 द्वारा) की स्थापना की गयी। 
  • इस सर्वोच्च न्यायालय के अंतर्गत समस्त कलकत्ता के अंग्रेज तथा भारतीय थे। न्याय अंग्रेजी कानून से होता था। 
  • लार्ड इम्पे सुप्रीम कोर्ट के प्रथम मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किये गए। 
  • हेस्टिंग्ज ने हिन्दू तथा मुस्लिम विधियों को भी एक लिखित रूप देने का पर्यटन किया और 1776 में संस्कृत में एक पुस्तक ‘code of gentoo laws’ छपी।  
  • इसी प्रकार 1791 में विलियम जोन्स तथा कोलब्रुक की पुस्तक ‘Digest Of Hindu Laws’ छपी। 
  • फ़तवा-ए-नआलमगीरी का अंग्रेजी में अनुवाद कराया गया। 

वाणिज्य संबंधी सुधार 

 व्यापार को सुगम बनाने के लिए हेस्टिंग्ज ने 5 शुल्क गृह , कलकत्ता, हुगली, मुर्शिदाबाद, ढाका और पटना में रखे गए। बाकि जमीदारों के क्षेत्र में पड़ने वाले सभी शुल्क गृह बंद कर दिए गए। 

तिब्बत तथा भूटान से व्यापार बढ़ने के पर्यटन किये गए। 

नन्द कुमार पर अभियोग 1775 

      वॉरेन हेस्टिंग्ज के कार्यकाल में नन्दकुमार अभियोग एक बदनुमा दाग की तरह है। नंदकुमार ब्नगल का एक धनी ब्राह्मण था। नन्द कुमार ने हेस्टिंग्ज पर यह आरोप लगाया था कि उसने मीर जज़र की विधवा मुन्नी बेगम से अल्पवयस्क नवाब मुबारिकउद्दौला की संरक्षिका बनाने के बदले 3.5 लाख रूपये की घूस ली है। उसने अपने इस आरोप को सिद्ध करने के लिए कलकत्ता परिषद के सम्मुख आने का प्रस्ताव किया। 

वॉरेन हेस्टिंग्ज नंदकुमार के इस आरोप का खंडन किया और कलकत्ता परिषद् को कहा की उसे उसका न्याय करने का अधिकार नहीं है साथ ही हेस्टिंग्ज ने नंदकुमार को झूठा, निकृष्टम मनुष्य की संज्ञा दी। हेस्टिंग्ज ने क्रोधावेश में आकर परिषद् को भांग कर दिया। 

हेस्टिंग्ज ने नन्दकुमार के विरुद्ध षड्यंत्र रचने शुरू किये और 19 अप्रैल को कमालुद्दीन नामक व्यक्ति ने कहा की अंडकुमार ने उस पर दबाव डालकर हेस्टिंग्ज तथा बारवैल के विरुद्ध प्राथना-पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। 

इसी तरह एक अन्य व्यक्ति मोहन प्रसाद ने नंदकुमार पर एक मृतक बुलाकी दास के रत्नों को जालसाज़ी करके हड़पने का आरोप लगाया। 

नंदकुमार को 6 मई 1775  को गिरफ्तार किया गया और जालसाजी के मुकदमें में उसे दिशि सिद्ध करके फांसी अपर लटकाया गया। 

आलोचकों ने इस मुकदमें में हुए फैसले को ‘न्याययिक हत्या’ की संज्ञा दी है। जबकि भारत में जालसाजी  के लिए मृत्युदंड का प्रवधान नहीं था।  सारा षड्यंत्र वॉरेन हेस्टिंग्ज और मुख्य न्यायाधीश इम्पे द्वारा रचा गया था। 

 वॉरेन हेस्टिंग्ज का मूल्यांकन 

वारेन हेस्टिंग्ज आधुनिक भारत के इतिहास में एक विवादस्पद चरित्र है। उसने भारत को बलपूर्वक लूटा। वह अपने पीछे अकाल और दुखों का एक लम्बा इतिहास छोड़ गया।  लेकिन वह एक विद्वान था और उसे साहित्य में रुचि थी। वह अरबी और फ़ारसी जनता था और बंगला बोल सकता था। 

  • हेस्टिंग्ज ने चार्ल्स विल्किन्स के गीता के अनुवाद की प्रस्तावना लिखी।
  • विल्किन्स ने फास्री तथा बांग्ला मुद्रण के लिए ढलाई के अक्षरों का अविष्कार किया। 
  • हेस्टिंग्स ने गीता तथा हितोपदेश का अनुवाद किया। 
  • हॉलहेड ने 1778 में संस्कृत व्याकरण प्रकाशित किया। 
  • सर विलियम जोन्स ने 1778 में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल की नींव राखी।

निष्कर्ष 

 इस प्रकार वॉरेन हेस्टिंग्स भारतीय इतिहास का प्रहला और अंतिम गवर्नर था जिस पर ब्रिटेन में महाभियोग का मुकदम चल;चलाया गया यद्पि वह उसमें निर्दोष पाया गया। हेस्टिंग जहाँ एक सुस्पष्ट भूमि कर व्यवस्था लागू करने में असफल हुआ तो न्यायिक क्षेत्र में उसने उल्लेखनीय काम किया। यद्पि रेग्युलेटिंग एक्ट के बाद बनाई गयी गवर्नर जनरल की परिषद जिसमें चार सदस्य थे से भी उसका विवाद रहा और उसके चरों सस्यों में से तीन ( क्लेवरिंग, फ्रांसिस तथा मानसन ) उसे बेईमान और भ्रष्ट समझते थे। नन्द कुमार को षड्यंत्र कर फांसी पर लटकाना भी हेस्टिंग्ज का अत्यंत घ्रणित कार्य था।

बर्क ने वारेन हेस्टिंग्ज को ‘चूहा और नेवला’, ‘एक झूठा बैलों का ठेकेदार’,  ‘अन्याय का मुखिया’ इत्यादि संज्ञाओं से सम्बोधित कहा है।


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