वर्तमान में राजनीतिक दलों और उनके समर्थकों का नैतिक स्तर कितना गिर चुका है वह इसी बात से पता चलता कि ऐसे अनेक लोग आपको मिल जायेंगे जो कहते हैं कि जवाहर लाल नेहरू के पूर्वज मुसलमान थे ! ये लोग एक दल विशेष के समर्थक होते हैं जो व्हाट्सप्प और फेसबुक यूनिवर्सिटी से प्राप्त उस प्रायोजित षड्यंत्र को इतिहास के साथ जोड़ते हैं जिसका सिर्फ एक ही अर्थ है कि अमुक खानदान या व्यक्ति की छबि को किस प्रकार धूमिल किया जाये। आज इस ब्लॉग में हम निष्पक्ष रूप से ऐतिहासिक तथ्यों की पड़ताल करेंगे कि नेहरू शब्द कैसे उनके नाम के साथ जुड़ गया और क्या नेहरू के पूर्वज मुसलमान थे।
फोटो स्रोत – विकिपीडिया |
मोतीलाल नेहरू की पारिवारिक पृष्ठभूमि
मोतीलाल नेहरू का जन्म 6 मई, 1861 को आगरा, भारत में एक वकील गंगाधर नेहरू और उनकी पत्नी जीवनरानी के यहाँ हुआ था। वह एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से संबंधित थे, जो दिल्ली में बस गया था। उनके दादा, लक्ष्मी नारायण नेहरू, मुगल काल के दौरान दिल्ली में एक कोतवाल (पुलिस प्रमुख) थे।
मोतीलाल नेहरू के पिता, गंगाधर नेहरू, एक प्रमुख वकील और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सदस्य थे। गंगाधर नेहरू का निधन तब हुआ जब मोतीलाल केवल सात वर्ष के थे, और उनका पालन-पोषण उनकी माँ जीवनरानी ने किया, जो स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रूप से शामिल थीं।
मोतीलाल नेहरू के दो भाई, नंदलाल और बंसीधर थे। नंदलाल नेहरू एक वकील और राजनीतिज्ञ थे, जबकि बंसीधर नेहरू एक व्यापारी थे।
मोतीलाल नेहरू की पारिवारिक पृष्ठभूमि और परवरिश ने उनके राजनीतिक विचारों और स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे अपने पिता की सक्रियता और अपनी माँ के दृढ़ संकल्प से बहुत प्रभावित थे, और उन्होंने जवाहरलाल नेहरू सहित अपने बच्चों को इन मूल्यों को पारित किया।
क्या जवाहर लाल नेहरू के पूर्वज मुसलमान थे ?
क्या जवाहर लाल नेहरू के पूर्वज मुसलमान थे ? यह सबसे प्रमुख रूप से उठाया जाना वाला प्रश्न है। इस भ्रामक या सत्य प्रश्न का उत्तर हमें जवाहर लाल नेहरू की आत्मकथा ( toward freedom 1936 – जो नेहरू की आत्मकथा के नाम भी जानी जाती है ) के प्रथम पृष्ठ पर ही बहुत से संशयों का उत्तर है। नेहरू ने अपनी आत्मकथा 1934-1935 के बीच लिखी थी, जब बे अंग्रेजों की कैद में थे।
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नेहरू की आत्मकथा में मिलता है नेहरू शब्द का इतिहास
इस आत्मकथा के प्रथम पृष्ठ पर वे लिखते हैं कि वह कश्मीरी हैं और उनके पूर्वज अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में धन और प्रसिद्धि पाने के उद्देश्य से कश्मीर के तराई में स्थित उपजाऊ मैदानों में आये थे। यह वहीँ काल था जो मुग़ल काल के पतन का लगभग प्रारम्भ था।
मुग़ल सम्राट फर्रुखसियर जिसे घ्रणित कायर भी कहा जाता है के समय में कश्मीर की तराई में आने वाले नेहरू के प्रथम पूर्वज थे राज कौल। राज कौल कश्मीर के उन प्रसिद्ध विद्वानों में शामिल थे जिन्हें संस्कृत और फ़ारसी का उच्चकोटि का ज्ञान था। आत्मकथा में वर्णित वाक्यांश के अनुसार फर्रुखशियर की कश्मीर यात्रा के दौरान उनकी भेंट राज कौल से हुई। मुग़ल बादशाह के कहने पर राज कौल परिवार सहित दिल्ली आ गए।
दिल्ली पहुँचने पर राज कौल को मुग़ल मुग़ल साम्राज्य की ओर से कुछ जागीर और एक मकान प्रदान किया गया। जवाहर लाल नेहरू लिखते हैं कि दिल्ली में उनका घर एक नहर के किनारे था इसीलिए उनके ख़ानदानी उपनाम ‘कौल’ के साथ नेहरू उपनाम जुड़ गया। इसके बाद उनका सरनेम कौल-नेहरू हो गया। इसके कुछ समय पश्चात् कौल शब्द बिलुप्त हो गया और सिर्फ नेहरू ही रह गया।
क्यों हुआ कौल से नेहरू सरनेम
मुग़ल काल के पतन के साथ नेहरू के कुटुंब का वैभव भी जाता रहा और जागीर भी समाप्त हो गयी। इसी क्रम को आगे बढ़ते हुए नेहरू ने लिखा कि उनके परदादा ‘लक्ष्मीनारायण नेहरू ‘ थे जो दिल्ली में मुग़ल बादशाह के दरबार में कम्पनी सरकार के पहले वकील नियुक्त हुए। नेहरू ने आगे लिखा कि उनके दादा और मोतीलाल नेहरू के पिता गंगाधर नेहरू की मृत्यु 34 वर्ष की अवस्था में हुयी। उनके दादा 1857 ईस्वी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय तक दिल्ली के कोतवाल थे।
कैसे पहुंचा नेहरू परिवार दिल्ली से आगरा और इलाहाबाद
तीन वर्ष तक मोतीलाल नेहरू ने कानपुर में वकालत का कार्य किया। उसके बाद वे इलाहबाद आ गए क्योंकि उच्च न्यायालय इलाहाबाद हो चुका था। अतः मोतीलाल नेहरू ने इलाहाबाद उच्च नयायालय में वकालत शुरू कर दी।
1857 गदर के दौरान मची भगदड़ में मोतीलाल नेहरू के परिवार के अनेक दस्ताबेज और घरवार लगभग नष्ट हो गया। अतः परिवार आगरा पहुँच गया। नेहरू कहते हैं कि उस समय तक उनके पिता का जन्म नहीं हुआ था। इस प्रकार मोतीलाल नेहरू का जन्म आगरा में ही 6 मई 1861 हो हुआ था। उनके ( मोतीलाल नेहरू के ) दो बड़े भाई भी थे बंशीधर नेहरू और नन्दलाल नेहरू।
बंशीधर को जवाहर लाल बड़े चाचा कहते थे। वंशीधर ब्रिटिश सरकार के न्याय विभाग में नौकरी करते थे। नन्दलाल ( नेहरू के छोटे चाचा ) राजपूता की छोटी सी रियासत में दीवान के रूप में काम करते थे।
नेहरू परिवार का आगरा से इलाहबाद प्रस्थान
नन्दलाल नेहरू ( जवाहर लाल के बड़े चाचा ) ने बैरिस्टर बनने के बाद आगरा में वकालत शुरू की और मोतीलाल नेहरू भी उनके साथ काम करने लगे। छोटे चाचा नन्दलाल भी हाईकोर्ट में काम करते थे। हाईकोर्ट इलाहबाद पहुँचने पर परिवार भी इलाहबाद आ बसा। अतः जवाहर लाल नेहरू का जन्म यहीं इलाहाबाद में हुआ।
मोतीलाल नेहरू ने अपनी स्कूलों और उच्च शिक्षा पूर्ण कर ली थे। तब तक उनके भाई एक जाने-माने प्रसिद्ध वकील के रूप में स्थापित हो चुके थे। गोल्डमेडलिस्ट मोतीलाल नेहरू ने भी कानपुर की जिला अदालतों से अपने वकालत के पेशे को प्रारम्भ किया।
कानपुर में तीन वर्ष तक वकील के रूप में कार्य करने के पश्चात् मोतीलाल नेहरू इलाहबाद आ गए। इलाहबाद आकर उन्होंने उच्च न्यायालय में वकालत प्रारम्भ कर दी। इसी बीच उनके बड़े भाई नन्दलाल नेहरू की मृत्यु हो जाती है और मोतीलाल नेहरू का भाग्य चमक जाता है क्योंकि बड़े भाई सारे केस उनकी झोली में आ गए। अब मोतीलाल नेहरू भी एक प्रसिद्ध वकील के रूप में प्रतिष्ठित हो गए तथा अपनी तेज तर्रार दलीलों से अपना एक अलग मुकाम बना लिया।
जवाहर लाल नेहरू का जन्म इलाहबाद में ही 14 नवंबर 1886 ईस्वी में हुआ था। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर आप स्वयं निर्णय लीजिये कि सच्चाई और झूठ में क्या फर्क है। लेकिन ऐसे लोगों को कुछ समझ नहीं आता जो एक नागरिक के तौर पर काम बल्कि एक राजनीतिक दल ले समर्थक बल्कि अन्ध समर्थक होकर सोचते और समझते हैं।
लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मेरा मनना है कि हम भले ही किसी दल के समर्थक हों लेकिन सत्य को अवश्य स्वीकार करना चाहिए। अतः नेहरू से संबंधित फैलाई जाने वाली अफवाह सिर्फ एक निजी हितों को साधने का प्रयास मात्र है।