गिरमिटिया मजदूर किसे कहते हैं

गिरमिटिया मजदूर किसे कहते हैं-एक समय था जब ब्रिटिश राज में सूरज कभी अस्त नहीं होता था। इसका सबसे बड़ा कारण दुनिया के सभी देशों को गुलाम बनाना था। दूसरे शब्दों में, इसे उपनिवेशवाद कहा जाता था।

1800 में इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति शुरू हुई। ऐसे में ब्रिटेन ने एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में उपनिवेशवाद शुरू किया। इन सभी देशों में बड़ी संख्या में श्रमिकों की आवश्यकता महसूस की गई। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए अंग्रेज शासक अविभाजित भारत से मेहनती, ईमानदार मजदूरों को ले जाते थे। बाद में ये मजदूर ‘गिरमिटिया मजदूर’ कहलाने लगे।

गिरमिटिया मजदूर किसे कहते हैं
Image Credit-quora

गिरमिटिया मजदूर

एक समय था जब भारत के लोग गरीबी, लाचारी, बेरोजगारी और भुखमरी से पीड़ित एक शांतिपूर्ण जीवन चाहते थे। उनके लिए शांति का मतलब सिर्फ एक छत, दो वक्त की रोटी और शरीर पर कपड़े थे। गुलाम देश की स्थिति इतनी खराब थी कि उस समय के भारतीय भी नहीं पा सके थे। ऐसे में चतुर अंग्रेज उन्हें समझौते पर काम कराने के बहाने अपने देश से दूर अज्ञात देशों में ले जाते थे।

वो मुल्क ऐसा हुआ करता था, जहां कोई अपना नहीं होता। अपनों से दूर होने के गम में ये मजदूर इतना टूट जाते थे कि कई दिनों तक सो नहीं पाते थे। वह रोता था, रोता था और चुप हो जाता था। समझौते के कारण वे घर भी नहीं लौट सके। यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा।

अंतत: इन मजदूरों को परदेश को अपना बनाना पड़ा। उन्होंने सब कुछ खो दिया था, लेकिन अपनी संस्कृति को अपने दिलों में रखें। अब ये गिरमिटिया मजदूर नहीं रहे, बल्कि मालिक बन गए हैं। वे न केवल अपना विकास करते हैं, बल्कि भारत के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। आइए अब पूरी कहानी विस्तार से बताते हैं।

सत्रहवीं शताब्दी में आए अंग्रेजों ने एक रोटी से आम भारतीयों को मोहित कर लिया। फिर वे लोगों को गुलामी की शर्त पर विदेश भेजने लगे। इन मजदूरों को गिरमिटिया कहा जाता था।

ALSO READ-1859-60 के नील विद्रोह के कारणों की विवेचना कीजिए

गिरमिटिया मजदूर किसे कहते हैं

‘गिरमिट’ शब्द को अंग्रेजी के ‘एग्रीमेंट’ शब्द की व्युत्पत्ति कहा गया है। जिस कागज़ पर हर साल हज़ारों मज़दूरों को उनके अंगूठे के निशान से दक्षिण अफ्रीका या अन्य देशों में भेजा जाता था, उसे मज़दूर और मालिक ‘गिरमिट’ कहते थे।

इस दस्तावेज़ के आधार पर, श्रमिकों को गिरमिटिया कहा जाता था। हर साल 10 से 15 हजार मजदूरों को गिरमिटिया बनाकर फिजी, ब्रिटिश गयाना, डच गयाना, त्रिनिदाद, टोबैगो, नेटाल (दक्षिण अफ्रीका) आदि ले जाया जाता था। यह सब सरकारी शासन के अधीन था। इस प्रकार के व्यवसाय करने वाले लोगों को सरकारी सुरक्षा प्राप्त थी।

1834 में अंग्रेजों द्वारा गिरमिटिया प्रथा शुरू की गई थी और 1917 में इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था।

Read more