द्वितीय विश्व युद्ध - History in Hindi

नागासाकी दिवस 9 अगस्त: इतिहास, प्रभाव महत्व और परमाणु अप्रसार संधि |  Nagasaki Day 9 August in Hindi

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नागासाकी दिवस नागासाकी दिवस, जिसे नागासाकी शांति स्मृति दिवस के रूप में भी जाना जाता है, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के शहर नागासाकी पर अमेरिका द्वारा की गई परमाणु बमबारी की याद में हर साल 9 अगस्त को मनाया जाता है। बमबारी 9 अगस्त, 1945 को हुई, जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने नागासाकी … Read more

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वेन. फुल्टन शीन: ‘स्वतंत्रता की घोषणा निर्भरता की घोषणा है’ | Ven. Fulton Sheen: ‘The Declaration of Independence Is a Declaration of Dependence’

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4 जुलाई को संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वतंत्रता की घोषणा का जश्न मनाया जाता है। आर्कबिशप फुल्टन शीन, जो अपने व्यावहारिक और भविष्यसूचक विचारों के लिए जाने जाते हैं, ने इस अवसर पर गहन अंतर्दृष्टि प्रदान की। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1941 में प्रकाशित ए डिक्लेरेशन ऑफ डिपेंडेंस नामक अपनी पुस्तक में शीन ने … Read more

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भारत छोड़ो आंदोलन: इतिहास, महत्व और क्यों असफल हुआ ?

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भारत छोड़ो आंदोलन, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 8 अगस्त, 1942 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा शुरू किया गया एक स्वाधीनता आंदोलन था, जिसमें भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को भारत से समाप्त करने की मांग की गई थी। भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी ने की थी, जिन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने के लिए बड़े पैमाने पर सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया था। आंदोलन को छात्रों, किसानों और श्रमिकों सहित समाज के सभी वर्गों से व्यापक समर्थन मिला।

भारत छोड़ो आंदोलन: इतिहास, महत्व और क्यों असफल हुआ ?

भारत छोड़ो आंदोलन

अंग्रेजों ने आंदोलन का कड़ा जवाब दिया और कई भारतीय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, जिनमें महात्मा गांधी भी शामिल थे, जिन्हें दो साल के लिए जेल में डाल दिया गया था। अंग्रेजों ने भी आंदोलन को दबाने के लिए हिंसा का सहारा लिया, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक विरोध और भारतीय प्रदर्शनकारियों और ब्रिटिश अधिकारियों के बीच झड़पें हुईं।

अंग्रेजों की भारी-भरकम प्रतिक्रिया के बावजूद, भारत छोड़ो आंदोलन ने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया। इसने नेताओं और कार्यकर्ताओं की एक नई पीढ़ी को प्रेरित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनमत बनाने में मदद की। अंत में, लगभग 200 वर्षों के ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के बाद, भारत ने 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त की।

असहयोग आंदोलन वह आंदोलन था जिसका भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यही वह आंदोलन था जब अहिंसा  पुजारी महात्मा गाँधी भी हिंसा के लिए तैयार हो गए, जब गाँधी जी ने नारा दिया ‘करो या मरो’ ( do or die ),  यदयपि यह प्रश्न अक्सर उठता है कि भारत छोड़ो आंदोलन क्यों असफल हुआ’। इस लेख मैं आपको भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े सभी प्रश्नों से परिचित कराऊंगा। यह लेख पूर्णतया  शोध करके तैयार किया गया है ताकि पाठकों के सम्मुख विश्वसनीय और शोधपरक जानकारी प्रस्तुत की जा सके।

भारत छोड़ो आंदोलन क्यों शुरू किया गया 

मानव इतिहास में सदा ही जालिम और विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा किये गए दमन तथा अत्याचार का विरोध होता रहा है।  जब-जब मानव का विरोध सफल हुआ, उसे स्वतंत्रता मिली। 1942 में होने वाला ‘भारत छोडो आंदोलन’ भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में एक ऐसी ही महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है। समस्त देश में फैलने वाले इस आंदोलन ने अंग्रेजों को भारतीय राष्ट्रवाद की शक्ति का परिचय दिया। इस आंदोलन के पीछे निम्नलिखित कारण थे —

1- क्रिप्स मिशन की विफलता से यह स्पष्ट हो गया था कि ब्रिटिश सरकार द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों की अनिच्छुक साझेदारी तो रखना चाहती थ, लेकिन किसी सम्मानजनक समझौते के लिए तैयार नहीं थी। नेहरू और गाँधी भी जो इस फ़ासिस्ट-विरोधी युद्ध को किसी तरह कमजोर करना नहीं चाहते थे, इस निष्कर्ष पर पहुंच गए थे कि और अधिक चुप रहना यह स्वीकार कर लेना होगा कि ब्रिटिश सरकार को भारतीय जनता की इच्छा जाने बिना भारत का भाग्य तय करने का अधिकार है। अतः कांग्रेस ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने को कहा। 

2- भारत छोडो आंदोलन के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण यह था कि विश्व युद्ध के कारण जरुरी सामान की कीमते बहुत बढ़ गयी थीं और आवश्यक वस्तुओं की बाजार में भारी कमी हो गई थी।बंगाल और उड़ीसा में सरकार ने नावों को इस संदेह में जब्त कर लिया कि कहीं इनका प्रयोग जापानियों द्वारा न किया जाये।सिंचाई की नहरों को सूखा दिया गया जिससे फसलें सूखने लगीं। सिंगापुर और रंगून पर जापानियों के कब्जे के बाद कलकत्ता पर बम बरसाए गए जिससे हजारों लोग शहर छोड़कर फ़ाग गए। 

3- मलाया और वर्मा को ब्रिटिश सरकार ने जिस तरह खाली किया, यानि सिर्फ गोरे लोगों को सुरक्षित निकला गया और स्थानीय जनता को उसके भाग्य पर छोड़ दिया गया।भारतीय जनता भी अब यही सोचकर परेशान थी कि यदि जापानियों का भारत पर हमला हुआ तो अंग्रेज यहाँ भी ऐसा ही करेंगे। अतः राष्ट्रिय आंदोलन के नेताओं ने जनता में विश्वास पैदा करने के लिए संघर्ष छेड़ने का निश्चय किया। 

4- विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार की स्थिति देखकर जनता का विश्वास घट गया था लोग बैंकों और डाकघरों से जमा पैसा निकलने लगे थे और उस पैसे को सोने चांदी में निवेश करने लगे थे।अनाज की जमाखोरी अचानक बहुत बढ़ गयी थी। 

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5- गाँधी जी को लगने लगा था कि अब देर करना सही नहीं होगा।  उन्होंने कांग्रेस को चुनौती दे डाली थी कि अगर उसने संघर्ष का उनका प्रस्ताव अस्वीकार किया तो “मैं देश की बालू से ही कांग्रेस से भी बड़ा आंदोलन खड़ा कर दूंगा”। इसका असर यह हुआ कि कांग्रेस कार्यसमिति ने वर्धा की अपनी बैठक ( 14 जुलाई 1942 ) में संघर्ष के निर्णय को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। 

गाँधी जी ने ‘हरिजन’ पत्रिका में अंग्रेजों को भारत छोड़ने की मांग करते हुए कहा “भारत को भगवान के भरोसे छोड़ दो और यदि वह असम्भव हो तो उसे अराजकता के भँवर में छोड़ दो” । 

गाँधी जी ने 5 जुलाई 1942 को ‘हरिजन’ में लिखा अंग्रेजों भारत को जपनके लिए मत छोड़ो बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ”

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