उ० प्र० पीजीटी शिक्षक इतिहास का सिलेबस | UP PGT Teacher History Syllabus

आज हम इस ब्लॉग में आपको उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड की ओर से आयोजित होने वाली शिक्षक भर्ती परीक्षा के लिए UP PGT इतिहास विषय का पूरा सिलेबस बताएँगे। इस सिलेबस की मदद से आप अपनी परीक्षा की तैयारी सही ढंग से कर पायेंगें। उ० प्र० पीजीटी शिक्षक इतिहास का सिलेबस -UP … Read more

चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय की उपलब्धियां तथा इतिहास

पुलकेशिन II, जिसे इम्मादी पुलकेशिन के नाम से भी जाना जाता है, चालुक्य वंश का एक प्रमुख शासक था जो 7वीं शताब्दी के दौरान भारत के दक्कन क्षेत्र में फला-फूला। वह 609 CE में सिंहासन पर चढ़ा और 642 CE तक तीन दशकों तक शासन किया। पुलकेशिन II अपने सैन्य कौशल, कूटनीतिक कौशल और प्रशासनिक कौशल के लिए जाने जाते थे। दक्षिण भारतीय राजनीति में चालुक्य शासकों का अपना एक विशेष महत्व है। इस वंश का सबसे प्रतापी शासक पुलकेशिन द्वितीय  था। इस ब्लॉग में हम ‘चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय की उपलब्धियां तथा इतिहास’ के बारे में जानेंगे। 


चालुक्य शासक पुलकेशिन-चालुक्य वंश का प्रारम्भिक इतिहास 

दक्षिणापथ पर छठी शताब्दी से लेकर आठवीं शताब्दी तक शासन करने वाले चालुक्य वंश का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है। उनका उत्कर्ष जिस स्थान से हुआ ( बादामी या वातापी ) उसी नाम से उन्हें पुकारा गया यानि बादामी या वातापी  चालुक्य। यह स्थल  वर्तमान में कर्नाटक राज्य के बीजापुर जिले में स्थित बादामी ( वातापी ) है। हर्षवर्धन और दक्षिण के पल्ल्वों के विरोध के बावजूद चालुक्यों ने दो शताब्दी तक अपना शासन चलाया।

बादामी के चालुक्य वंश का संस्थापक 

बादामी के चालुक्य वंश का संस्थापक पुलकेशिन प्रथम था। पुलकेशिन प्रथम ने वातापी में एक सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण कराया और उसे अपनी राजधानी बनाया। ऐहोल अभिलेख में उसकी विजयों और अश्वमेध यज्ञ करने का वर्णन है। पुलकेशिन प्रथम ने सत्याश्रय तथा रणविक्रम जैसी उपाधियाँ धारण की। पुलकेशिन प्रथम का विवाह बटपुर परिवार की कन्या दुर्लभदेवी से हुआ। पुलकेशिन प्रथम ने 535 ईस्वी से 566 ईस्वी  तक शासन किया। 

पुलकेशिन द्वितीय का इतिहास 

नाम पुलकेशिन द्वितीय
अन्य नाम इम्मादी पुलकेशिन, विष्णुवर्धन पुलकेशिन
पिता का नाम कीर्तिवर्मन प्रथम
पूर्ववर्ती मंगलेश
उत्तरवर्ती आदित्यवर्मन
शासनकाल 609-642 ईस्वी
वंश वातापी चालुक्य वंश
मुख्य उपलब्धि हर्ष वर्धन पर विजय
धर्म वैष्णव

पुलकेशिन द्वितीय का प्रारंभिक जीवन

पुलकेशिन II, जिसे विष्णुवर्धन पुलकेशिन के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण भारत में चालुक्य वंश का एक प्रमुख शासक था जिसने 610 से 642 CE तक शासन किया था। पुलकेशिन द्वितीय के प्रारंभिक जीवन के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है क्योंकि उस समय के ऐतिहासिक अभिलेख दुर्लभ हैं। हालाँकि, उपलब्ध जानकारी के आधार पर, यहाँ हम उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में जान सकते हैं:

पारिवारिक पृष्ठभूमि: पुलकेशिन II का जन्म चालुक्य वंश में हुआ था, जो प्राचीन और मध्यकालीन दक्षिण भारत के सबसे शक्तिशाली राजवंशों में से एक था। चालुक्य कला, साहित्य और वास्तुकला के संरक्षण के लिए जाने जाते थे, और दक्कन क्षेत्र के एक बड़े हिस्से पर शासन करते थे।

शिक्षा और प्रशिक्षण: शाही परिवार के एक सदस्य के रूप में, पुलकेशिन II को भविष्य के राजा के लिए एक व्यापक शिक्षा और प्रशिक्षण प्राप्त हुआ था। उन्हें एक शासक के रूप में अपनी भूमिका के लिए तैयार करने के लिए प्रशासन, युद्ध, कूटनीति और शासन कला जैसे विभिन्न विषयों में प्रशिक्षित किया गया होगा।

उत्तराधिकार: पुलकेशिन द्वितीय अपने पिता, राजा कीर्तिवर्मन प्रथम की मृत्यु के बाद चालुक्य वंश के सिंहासन पर बैठा। उसे राज्य और जिम्मेदारियाँ विरासत में मिलीं, जो कम उम्र में उसके साथ आईं, और स्थापित करने के लिए शासन की कला को जल्दी से सीखना पड़ा।

हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात कन्नौज के लिए त्रिकोणआत्मक संघर्ष

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इस्लाम का उदय कब हुआ ? The Rise Of Islam In Hindi

इस्लाम धर्म अथवा रेगिस्तान का धर्म जिस प्रकार उभरा वह आश्चर्यजनक तो था ही लेकिन उससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक उसका तेजी से संसार में फैलना था। प्रसिद्ध इतिहासकार सर वुल्जले हेग ने ठीक ही कहा है कि इस्लाम का उदय इतिहास के चमत्कारों में से एक है। इस ब्लॉग के माध्यम से हम ‘इस्लाम का उदय कब हुआ, विषय के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।

इस्लाम का उदय कब हुआ ? The Rise Of Islam In Hindi

इस्लाम का उदय

इस्लाम एक अभिव्यक्ति धर्म है जो 7वीं सदी में मुहम्मद नामक एक नबी द्वारा स्थापित किया गया था। इस्लाम के अनुयायी मुसलमान कहलाते हैं। इस्लाम का मतलब है “समर्पण” या “आत्मसमर्पण” जो आलोचनात्मक ध्यान के विरुद्ध होता है। इस्लाम धर्म में एक ईश्वर होता है, जिसे अल्लाह कहा जाता है।

622 ईसवी में एक पैगंबर ने मक्का को छोड़कर मदीना की शरण ली, और फिर उसके एक शताब्दी बार उसके उत्तराधिकारियों और उसके अनुयायियों ने एक ऐसे विशाल साम्राज्य पर शासन करना शुरू किया जिसका विस्तार प्रशांत महासागर से सिंधु तक और कैस्पियन से नील तक था।  क्या यह सब कुछ अचानक हुआ? यह सब कुछ कैसे हुआ? यह एक शिक्षाप्रद कहानी है। परंतु उस कहानी हो जानने से पहले हमें यह जानना उचित होगा वह कौन-से स्रोत हैं जिनसे हमें इस्लाम के साथ-साथ दिल्ली सल्तनत का इतिहास जानने में भी सहायता मिलेगी।

मध्यकालीन भारत का इतिहास जानने के प्रमुख स्रोत कौन-कौन से हैं

मध्यकालीन भारत का इतिहास जानने के लिए हमारे पास बहुत अधिक संख्या में मौलिक पुस्तके हैं जिनसे हमें महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। हमें ईलियट और डौसन के अनुवादों से ऐसी सामग्री भरपूर मात्रा में मिल सकती है।

1-चाचनामा-  

चाचनामा आरंभ में अरबी भाषा में लिखा गया ग्रन्थ है। मुहम्मद अली बिन अबूबकर कुफी ने बाद में नसिरुद्दीन कुबाचा के समय में उसका फारसी में अनुवाद किया।  डॉक्टर दाऊद पोता ने उसे संपादित करके प्रकाशित किया है। यह पुस्तक अरबों द्वारा सिंध की विजय का इतिहास बताती है।  यह हमारे ज्ञान का मुख्य साधन होने की अधिकारिणी है।

2 -तवकात-ए-नासरी-  

तबकात-ए-नासिरी का लेखक मिनहाज-उस-सिराज था। राबर्टी ने उसका अंग्रेजी में अनुवाद किया । यह एक समकालीन रचना है और 1260 ईस्वी में यह रचना पूर्ण हुई। दिल्ली सल्तनत का 1620 ईस्वी तक का इतिहास और मोहम्मद गौरी कि भारत विजय का प्रत्यक्ष वर्णन इस पुस्तक में मिलता है।  इस पर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मिनहाज-उस-सिराज एक पक्षपात रहित लेखक ने था उसका झुकाव मुहम्मद गौरी, इल्तुतमिश और बलबन की ओर अधिक था। 

3- तारीख-ए-फिरोजशाही-

तारीख-ए-फिरोजशाही का लेखक जियाउद्दीन बरनी था। यह लेखक गयासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद तुगलक और फीरोज तुगलक का समकालीन था। बरनी ने बलबन से लेकर फीरोज तुगलक तक का इतिहास लिखा है। उसने दास वंश, खिलजी वंश और तुगलक वंश के इतिहास का बहुत रोजक वर्णन किया है।

यह पुस्तक, जो अब बंगाल की एशियाटिक सोसायटी ने प्रकाशित की है, 1339 ईस्वी में पूर्ण हुई। यह पुस्तक इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक ऐसे व्यक्ति द्वारा लिखी गई है, जो शासन में उच्च पद पर नियुक्त था और जिसे शासन का वास्तविक ज्ञान था। लेखक ने भूमि-कर प्रबंध का विस्तार से वर्णन किया है। परन्तु बरनी भी एक पक्षपात रहित लेखक नहीं था इसके अतिरिक्त उसकी लेखनी बहुत गूढ़ है। 

4- तारीख-ए-फिरोजशाही- 

शम्मस-ए-सिराज अफीफ ने अपनी पुस्तक ‘तारीख-ए-फिरोजशाह’ में फीरोज तुगलक का इतिहास लिखा है। लेखक स्वयं फीरोज तुगलक के दरबार  सदस्य  था। निश्चित ही  यह एक उच्च कोटि की पुस्तक है। 

5- ताज-उल-मासिर-

     इस पुस्तक का लेखक हसन निजामी है।  इस पुस्तक में 1162-से- 1228 ईस्वी तक का दिल्ली सल्तनत का इतिहास वर्णित हैं। लेखक ने कुतुबुद्दीन ऐबक के जीवन और इल्तुतमिश के राज्य के प्रारम्भिक वर्षों का वर्णन किया है। एक समकालीन वृतांत होने के कारण यह उत्तम कोटि का ग्रन्थ है। 

6- कामिल-उत-तवारीख- 

शेख अब्दुल हसन ( जिसका उपनाम इब्नुल आमिर था ) ने ‘कामिल-उत-तवारीख’ की रचना की। इसकी रचना 1230 ईस्वी में हुई। इसमें मुहम्मद गौरी की विजय का वृतान्त मिलता है। यह भी एक समकालीन वर्णन है और यही इसके उपयोगी होने का कारण है।

पैगम्बर मुहम्मद साहब का जन्म कब हुआ

 इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगंबर मुहम्मद साहब थे। अरब के एक नगर मक्का में उनका जन्म 570 ईसवी में हुआ। दुर्भाग्य से उनके पिता की मृत्यु उनके जन्म से पूर्व ही हो गई और जब वह केवल 6 वर्ष की अवस्था के थे तब उनकी माता की भी मृत्यु हो गई।

मुहम्मद साहब का पालन पोषण किसने किया 

माता-पिता की मृत्यु के बाद मुहम्मद साहब का पालन पोषण उनके चाचा अबू तालिब ने किया। मुहम्मद साहब का बचपन अत्यंत गरीबी में गुजरा। उन्होंने भेड़ों के एक समूह की देख-भाल की व व्यापार कार्य में अपने चाचा का हाथ बटाया.

मुहम्मद साहब की पत्नी का क्या नाम था  

मुहम्मद साहब का वैवाहिक जीवन बहुत सरल और आदर्शवादी था। वे खुद एक आदर्श वैवाहिक जीवन जीते थे और लोगों को एक सुदृढ़ वैवाहिक सम्बन्ध बनाने के लिए प्रेरित किया था।

मुहम्मद साहब का पहला विवाह उनकी जवाहिर बिंते खुज़ैमा से हुआ था। उन्हें उससे बहुत प्यार था और वे उसे “खादीजा” के नाम से जानते थे। वे उम्र में मुहम्मद साहब से बहुत बड़ी थीं और उन्हें विधवा होने के बाद सम्बन्ध बनाने का विचार आया था। खादीजा के साथ मुहम्मद साहब के 25 साल तक के सुखद वैवाहिक जीवन का जीता जागता उदाहरण दिया जाता है।

उन्होंने खादीजा के बाद और भी कई वैवाहिक सम्बन्ध बनाए, जिनमें एक बेहतरीन सम्बन्ध था जो उनकी दूसरी पत्नी आइशा के साथ था। वे आइशा को अपनी आखिरी और सबसे प्यारी पत्नी मानते थे।

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भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी- जीवन इतिहास कहानी हिंदी में | Lord Gautam Buddha Biography in Hindi

भगवान गौतम बुद्ध, जिन्हें सिद्धार्थ गौतम के नाम से भी जाना जाता है, एक आध्यात्मिक नेता और दार्शनिक थे जो प्राचीन भारत में रहते थे। उनका जन्म 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में लुंबिनी, वर्तमान नेपाल में एक शाही परिवार में एक राजकुमार के रूप में हुआ था। हालाँकि, उन्होंने ज्ञान प्राप्त करने और मानव पीड़ा को समाप्त करने का मार्ग खोजने के लिए अपने राजसी जीवन को त्याग दिया।

वर्षों के गहन ध्यान और आत्म-चिंतन के बाद, उन्होंने भारत के बोधगया में एक बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया और बुद्ध बन गए, जिसका अर्थ है “जागृत व्यक्ति।” उन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की, एक प्रमुख विश्व धर्म जो जन्म और मृत्यु के चक्र से आत्मज्ञान और मुक्ति प्राप्त करने के साधन के रूप में चार महान सत्य और आठ गुना पथ सिखाता है। बुद्ध की शिक्षाओं का दुनिया भर के लाखों लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा है और वे सत्य और आंतरिक शांति के चाहने वालों को प्रेरित करती रहती हैं।

Lord Gautam Buddha Biography Life History Story In Hindi
महात्मा बुद्ध

Lord Gautam Buddha Biography in Hindi-महात्मा बुद्ध का प्रारंभिक जीवन

 गौतम बुद्घ का जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व में कपिलवस्तु के समीप लुंबिनी वन (आधुनिक रूमिदेई अथवा रूमिन्देह) नामक स्थान में हुआ था। उनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु के शाक्यगण के मुखिया थे। उनकी माता का नाम मायादेवी था जो कोलिय गणराज्य की कन्या थी। गौतम के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनके जन्म के कुछ ही दिनों बाद उनकी माता माया का देहांत हो गया तथा उनका पालन पोषण उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया।

उनका पालन-पोषण राजसी ऐश्वर्य एवं वैभव के वातावरण में हुआ। उन्हें राजकुमारों के अनुरूप शिक्षा-दीक्षा दी गयी। परंतु बचपन से ही वे अत्यधिक चिंतनशील स्वभाव के थे। प्रायः एकांत स्थान में बैठकर वे जीवन-मरण सुख दु:ख आदि समस्याओं के ऊपर गंभीरतापूर्वक विचार किया करते थे।

नामगौतम बुद्ध
बचपन का नामसिद्धार्थ
जन्मलगभग 563 ईसा पूर्व
जन्म स्थानलुम्बिनी, नेपाल
वंशशाक्य (क्षत्रिय)
पिताराजा शुद्धोधन
मातारानी महामाया
पत्नीयशोधरा
पुत्रराहुल
मौसीमहाप्रजापति गोतमी
गृहत्याग29 वर्ष की आयु में, उन्होंने अपने महल और विलासी जीवन को छोड़कर बोधि प्राप्ति के लिए निवृत्त हो गए
पहला उपदेशसारनाथ, वाराणसी में हिरण्यवती मृगदेन का उपदेश
धर्म के प्रोत्साहकसिद्धार्थ गौतम, जिन्हें बुद्ध के रूप में जाना जाता है, बौद्ध धर्म के मुख्य प्रतीक हैं
मृत्युलगभग 483 ईसा पूर्व
मृत्यु स्थानकुशीनगर, भारत

महात्मा बुद्ध का विवाह

 महात्मा बुद्ध को इस प्रकार सांसारिक जीवन से विरक्त होते देख उनके पिता को गहरी चिंता हुई। उन्होंने बालक सिद्धार्थ को सांसारिक विषयभोगों में फंसाने की भरपूर कोशिश की। विलासिता की सामग्रियां उन्हें प्रदान की गयी। इसी उद्देश्य से 16 वर्ष की अल्पायु में ही उनके पिता ने उनका विवाह शाक्यकुल की एक अत्यंत रूपवती कन्या के साथ कर दिया। इस कन्या का नाम उत्तर कालीन बौद्ध ग्रंथों में यशोधरा, बिम्बा, गोपा, भद्कच्छना आदि दिया गया है।

कालांतर में उनका यशोधरा नाम ही सर्वप्रचलित हुआ। यशोधरा से सिद्धार्थ को एक पुत्र भी उत्पन्न हुआ जिसका नाम ‘राहुल’पड़ा। तीनों ऋतुओं में आराम के लिए अलग-अलग आवास बनवाये गए तथा इस बात की पूरी व्यवस्था की गई कि वे सांसारिक दु:खों के दर्शन न कर सकें।

बुद्ध द्वारा गृह त्याग

 परंतु सिद्धार्थ सांसारिक विषय भोगों में वास्तविक संतोष नहीं पा सके। भ्रमण के लिए जाते हुए उन्होंने प्रथम बार वृद्ध, द्वितीय बार व्याधिग्रस्त मनुष्य, तृतीय बार एक मृतक तथा अंततः एक प्रसन्नचित संन्यासीको देखा। उनका हृदय मानवता को दु:ख में फंसा हुआ देखकर अत्यधिक खिन्न हो उठा।

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मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण | क्या अशोक मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए जिम्मेदार था

मौर्य साम्राज्य प्राचीन भारत में सबसे महत्वपूर्ण साम्राज्यों में से एक था, जिसकी स्थापना 322 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने की थी और 268 ईसा पूर्व में सम्राट अशोक के शासनकाल में अपने चरम पर पहुंच गया था। हालाँकि, पूरे इतिहास में कई अन्य महान साम्राज्यों की तरह, >मौर्य साम्राज्य ने भी गिरावट का अनुभव किया जिसके कारण उसका पतन हुआ। मौर्य साम्राज्य के पतन में योगदान देने वाले कई प्रमुख कारक थे:

मौर्य सामराज्य के पतन के कारण”

लगभग तीन शताब्दियों के उत्थान के त्पश्चात शक्तिशाली मौर्य-सम्राज्य अशोक की मृत्यु के पश्चात विघटित होने लगा और विघटन की यह गति संगठन की अपेक्षा अधिक तेज थी। अंततोगत्वा 184 ईसा पूर्व के लगभग अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की उसके अपने ही सेनापति पुष्यमित्र द्वारा हत्या के साथ इस विशाल साम्राज्य का पतन हो गया।

सामान्य तौर पर अनेक विद्वान अशोक की अहिंसक नीति को मौर्य साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण मानते हैं। परंतु मौर्य साम्राज्य का पतन किसी कारण विशेष का परिणाम नहीं था, अपितु विभिन्न कारणों ने इस दिशा में योगदान दिया। सामान्य तौर से हम इस साम्राज्य के विघटन तथा पतन के लिए निम्नलिखित कारणों को उत्तरदायी ठहरा सकते हैं—

मौर्य साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारण

सम्राट अशोक की  के पश्चात अयोग्य तथा निर्वल उत्तराधिकारी

मौर्य साम्राज्य के पतन का तात्कालिक कारण यह था कि अशोक की मृत्यु के पश्चात उसके उत्तराधिकारी नितांत अयोग्य तथा निर्बल हुये। उनमें शासन के संगठन एवं संचालन की योग्यता का अभाव था। विभिन्न साहित्यिक साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि उन्होंने साम्राज्य का विभाजन भी कर लिया था। राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि कश्मीर में जालौक नें स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया।

तारानाथ के विवरण से पता चलता है कि वीरसेन ने गंधार प्रदेश में स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली। कालिदास के मालविकाग्निमित्र के अनुसार विदर्भ भी एक स्वतंत्र राज्य हो गया था। परवर्ती मौर्य शासकों में कोई भी इतना सक्षम नहीं था कि वह अपने समस्त राज्यों को एकछत्र शासन-व्यवस्था के अंतर्गत संगठित करता। विभाजन की इस स्थिति में यवनों का सामना संगठित रूप से नहीं हो सका और साम्राज्य का पतन अवश्यम्भावी था।

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सम्राट अशोक की जीवनी: प्राम्भिक जीवन 273-236 ईसा पूर्व, कलिंग युद्ध, बौद्ध धर्म, धम्म का प्रचार, प्रशासनिक व्यवस्था और मूल्यांकन

सम्राट अशोक, प्राचीन भारत में मौर्य साम्राज्य के एक महानतम शासक थे। वह 268 ईसा पूर्व में सिंहासन पर चढ़े और उनका शासन लगभग 40 वर्षों तक चला। अशोक को भारत के महानतम राजाओं में से एक और विश्व इतिहास में एक उल्लेखनीय व्यक्ति माना जाता है। आज इस लेख में हम का अध्ययन करेंगे, … Read more