फिरोज तुगलक, जिसे सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के नाम से भी जाना जाता है, 14वीं शताब्दी के दौरान भारत में तुगलक वंश का एक प्रमुख शासक था। वह 1351 ईस्वी में सिंहासन पर बैठा और 1388 ईस्वी तक शासन किया। फिरोज तुगलक को उनके प्रशासनिक सुधारों और उनके उदार शासन के लिए जाना जाता था, जो उनके विषयों के कल्याण पर केंद्रित था। उन्हें कला, वास्तुकला और साहित्य का संरक्षक माना जाता था, और उन्हें अपने राज्य में कई स्मारकों, मस्जिदों और महलों के निर्माण का श्रेय दिया जाता था।
फिरोज तुगलक का इतिहास
फिरोज तुगलक ने सिंचाई के लिए नहरों और जलाशयों के निर्माण सहित आर्थिक और कृषि क्षेत्रों में सुधार के लिए कई उपायों को भी लागू किया। उन्हें न्याय और निष्पक्षता के सख्त पालन के लिए जाना जाता था, और उनके लोगों द्वारा उनके दयालु और न्यायपूर्ण शासन के लिए बहुत सम्मान किया जाता था।
हालाँकि, उनका शासन चुनौतियों के बिना नहीं था, जिसमें रईसों द्वारा विद्रोह और आर्थिक संकट शामिल थे। इन चुनौतियों के बावजूद, फिरोज तुगलक ने एक शासक के रूप में एक स्थायी विरासत छोड़ी, जिसने अपने लोगों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया और अपने राज्य के सांस्कृतिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
नाम | फिरोज तुगलक |
पूरा नाम | सुल्तान फिरोज शाह तुगलक |
जन्म | 1309 ईस्वी |
जन्मस्थान | भारत |
पिता | रज्जब |
माता | नैला भाटी |
शासनकाल | 1351-1388 |
वंश | तुगलक वंश |
प्रसिद्ध | सिंचाई के लिए नहरों और जलाशयों के निर्मा के लिए |
मृत्यु | सितम्बर 1388 ई॰ |
मृत्यु का स्थान | दिल्ली |
मक़बरा | हौज़खास परिसर दिल्ली |
फिरोज तुगलक, जिसे सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के नाम से भी जाना जाता है, भारत में दिल्ली सल्तनत का मध्यकालीन शासक था। उनका जन्म 1309 ईस्वी में हुआ था, और उनके पिता गयासुद्दीन तुगलक के पुत्र रज्जब थे, जो तुगलक वंश के संस्थापक थे। फिरोज तुगलक के परिवार और प्रारंभिक जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है क्योंकि उस काल के ऐतिहासिक स्रोत सीमित हैं।
फ़ीरोज तुगलक का परिचय-
फ़ीरोज तुगलक का सिंहासनारोहण-
जब 20 मार्च 1351 ईस्वी को मुहम्मद तुगलक की मृत्यु हो गई, तो उस डेरे में पूर्ण अव्यवस्था व अशांति फैल गई जिसे सिंध के विद्रोहियों व मंगोल वेतनभोगी सैनिकों ने लूटा था व जिन्हें मुहम्मद तुगलक ने तगी के विरुद्ध संग्राम करने के लिए किराए पर रख लिया था। इन परिस्थितियों के अधीन ही 23 मार्च 1351 ईस्वी को भट्टा के निकट एक डेरे में फिरोज का सिंहासनारोहण हुआ।
फ़ीरोज तुगलक का विरोध ( Opposition of Firoz) –
एक अन्य विवाद ( An Other Controversy )–
जिन परिस्थितियों में फिरोजशाह तुगलक गद्दी पर बैठा था वे आने वाले समय का सूचक थीं। जियाउद्दीन बरनी का यह मानना है कि मुहम्मद तुगलक ने फिरोजशाह को सुल्तान के लिए नामजद ( Nomination) किया था तथा वही उसकी दृष्टि में इस पद के योग्य था सही प्रतीत नहीं होता।
सिंध में मुहम्मद तुगलक की मृत्यु के समय जो अमीर शाही खेमे में थे वे तय नहीं कर पाए थे कि गद्दी किसको मिलेगी। अंततः यह फैसला किया गया कि सेना दिल्ली की ओर प्रस्थान करे। जहां नया सुल्तान विधिवत नियुक्त होगा। इससे पता चलता है कि सुल्तान के कोई पुत्र नहीं था और ना ही उसने किसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।
कहते हैं कि इस परिस्थिति में उलेमा वर्ग के कुछ लोगों ने फिरोजशाह से धार्मिक रियायतों का वायदा ले लिया। इसके बाद अमीर तथा उलेमा वर्ग दोनों ने फिरोज तुगलक को सुल्तान बनाने का निर्णय स्वीकार कर लिया। सुल्तान ने सिंध से लेकर दिल्ली तक के मार्ग में आने वाली मस्जिद, दरगाह तथा खानकाह को दिल खोलकर धार्मिक अनुदान दिए।