ऋग्वेदिक आर्य-वर्ण, आर्य-अनार्य, आजीविका और दास-दासियाँ- RigVedic Arya

RigVedic Arya

भारत में (१२०० – १००० ईसा पूर्व ) के काल को मुख्य रूप से ऋग्वेद का काल माना जाता है। उस समय भारत में जातीयों का उल्लेख नहीं है लेकिन क्षेत्रीय अथवा रक्तधारित विशेषताओं के आधार पर उस समय चार जातियां मुख्य रूप से विद्यमान थीं- कोल या कोलारी ( निषाद, आस्ट्रिक ), ये सप्तसिंधु … Read more

वैदिककालीन साहित्य- वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक और उपनिषद

हड़प्पा सभ्यता के पतन के पश्चात् भारत में एक नवीन सभ्यता का उद्भव हुआ और इस सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहा जाता है। इस सभ्यता के बारे में सबसे ठोस जानकारी वेदों में मिलती है

हड़प्पा सभ्यता के पतन के पश्चात् भारत में एक नवीन सभ्यता का उद्भव हुआ और इस सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहा जाता है। इस सभ्यता के बारे में सबसे ठोस जानकारी वेदों में मिलती है जिसके कारण इसे वैदिक सभ्यता कहा जाता है। यद्यपि प्रारम्भ मरण वेद मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते … Read more

गुप्तकालीन प्रशासनिक व्यवस्था | Gupta Administrative System in Hindi

गुप्तकाल को भारत में ब्राह्मण धर्म और हुन्दुओं के उत्थान का काल माना जाता है। गुप्तकालीन शासक अपने अदम्य शौर्य और शक्तिशाली सैन्य व्यवस्था के साथ कुशल प्रशासनिक व्यवस्था के लिए भी प्रसिद्ध थे। इस लेख में हम गुप्तकालीन प्रशासनिक व्यवस्था के विषय में जानेंगे। लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

बौद्ध धर्म के विकास में बौद्ध संगीतियों की भूमिका- चार बौद्ध संगीतियाँ

बौद्ध संगीतियाँ

बौद्ध संगीतियाँ-भारतीय इतिहास में महात्मा बुद्ध और उनके द्वारा स्थापित बौद्ध धर्म सबसे प्रामाणिक और स्वीकार्य धर्म रहा है। तत्कालीन शासकों ने बौद्ध धर्म को राजकीय संरक्षण दिया और भारत सहित देश विदेशों में बौद्ध धर्म ने अपनी जड़ें जमाई। इसी क्रम में चार बौद्ध दंगीतियों के आयोजन ने बौद्ध धर्म के विकास में महत्वपूर्ण … Read more

Chalcolithic Culture In India | भारत में ताम्रपाषाण संस्कृति

ताम्रपाषाण संस्कृति

Chalcolithic Culture In India-नवपाषाण काल को दो भागों में विभाजित किया जाता है- प्रथम- गैरमृदभाण्ड और मृदभांड काल। जिस नवपाषाण काल में मृदभांड का प्रयोग हुआ उसके अंत में धातु का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। आपको बता दें कि आदिमानव या प्रागैतिहासिक मानव ने जिस प्रथम धातु का प्रयोग किया वह तांबा थी। इस चरण में … Read more

सती प्रथा क्या है- जानिए सती प्रथा के ऐतिहासिक पहलू

सती प्रथा क्या है- जानिए सती प्रथा के ऐतिहासिक पहलू

सती प्रथा का प्रारम्भ और उसके चलन की समस्या विवाह और पारिवारिक प्रणाली के इतिहास के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। सती प्रथा पितृसत्तात्मक वैवाहिक पद्धति का अभिन्न अंग थी। विवाह का सबंध व्यक्तियों से नहीं बल्कि संपूर्ण कुल या परिवार अथवा सामाजिक प्रणाली से था। अतएव सती प्रथा के स्वरूप को समझने के … Read more

Sutra Kaal in Hindi-सूत्र काल में सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन

Sutra Kaal in Hindi

उत्तर वैदिक काल के अंत तक वैदिक साहित्य का विस्तार हुआ साथ ही जटिलताएं भी बढ़ गईं। इसका परिणाम यह हुआ कि किसी एक व्यक्ति के लिए इन सबको कंठस्थ करना दुर्लभ कार्य था। इसलिए वैदिक साहित्य को अक्षुण्य रखने के लिए इसे संछिप्त करने की आवश्यकता महशुस हुई। सूत्र-साहित्य द्वारा इस आवश्यकता को पूरा … Read more

गुप्तों के पतन के बाद उत्तर भारत की राजनीतिक दशा

मौर्यकाल के पतन के बाद भारत में एक मजबूत राजनीतिक इकाई का अभाव हो गया, जिसे गुप्तकाल में पूरा किया गया। गुप्तकाल [ 319-467] में एक से बढ़कर एक महान शासक हुए और भारत को शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। गुप्तों के पतन के बाद एक बार फिर उत्तर भारत में शक्ति शून्य उभर गया। उसके बाद उत्तर भारत में राजनीतिक रूप से क्षेत्रीय शक्तियों का उदय हुआ। इस लेख में हम गुप्तकाल के बाद उत्तर भारत की राजनीतिक दशा का वर्णन करेंगे।

ब्राह्मी लिपि का ऐतिहासिक महत्व -विशेषताएं, उदय और विकास

ब्राह्मी लिपि सिंधु लिपि के बाद भारत में विकसित सबसे प्रारंभिक लेखन प्रणाली है। इसे हम सबसे प्रभावशाली लेखन प्रणालियों में से एक कह सकते हैं; क्योंकि सभी आधुनिक भारतीय लिपियाँ और दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया में पाई जाने वाली कई सौ लिपियाँ ब्राह्मी लिपि से ली गई हैं। ब्राह्मी लिपि का ऐतिहासिक महत्व … Read more

जैन न्याय शास्त्र  का विकास (Development of Jain Jurisprudence)

धर्म, दर्शन और न्याय-इन तीनों के सुमेल से ही व्यक्ति के आध्यात्मिक उन्नयन का भव्य प्रासाद खड़ा होता है। आचार का नाम धर्म है और विचार का नाम दर्शन है तथा युक्ति-प्रतियुक्ति रूप हेतु आदि से उस विचार को सुदृढ़ करना न्याय है। जैन दर्शन और न्याय के उद्गम बीज जैनश्रुत के बारहवें अंग दृष्टिवाद … Read more