आधुनिक भारत - History in Hindi

रूसी क्रांति का भारत पर प्रभाव: क्रांतिकारियों, महिलाओं और साहित्यकारों पर प्रभाव

Share this Post

1917 की रूसी क्रांति से पूर्व अन्य सभी क्रांतियों में शोषक वर्ग की ही विजय हुई। इन क्रांतियों में एक शोषक वर्ग का स्थान दूसरे शोषक वर्ग ने ग्रहण कर लिया, किंतु 1917 की रूसी क्रांति के परिणामस्वरूप एक नया मजदूर वर्ग शासक के रूप में उभर कर आया, जिसने उत्पादन के साधनों को अपने … Read more

Share this Post

बंगाल में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना | प्लासी, बक्सर का युद्ध

Share this Post
बंगाल भारत का सबसे समृद्ध राज्य था जो अपने समुद्री व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। औपनिवेशिक शासकों ने बंगाल के आर्थिक महत्व को समझा और बंगाल अपने व्यापार की जड़ें जमाई। बंगाल से शुरू हुआ हुआ ये व्यापार का खेल कब सत्ता के खेल में बदल गया भारतीय शासक समझने में विफल रहे। आज इस लेख में हम ‘बंगाल में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना’ शीर्षक के अंतर्गत प्लासी और बक्सर युद्धों के साथ इलाहबाद की संधि के महत्व और उनकी पृस्ठभूमि को को भी समझेंगे। यह लेख पूर्णतया ऐतिहासिक विवरणों और प्रामाणिक पुस्तकों की सहायता से तैयार किया गया है। कृपया लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
बंगाल में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना | बंगाल में ब्रिटिश शक्ति का उदय,प्लासी, बक्सर का युद्ध

         

बंगाल में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना

अंग्रेजों की प्रारम्भिक स्थिति और नीतियों को देखकर कह सकते हैं कि बंगाल में अंग्रेजी शक्ति का उदय आकस्मिक और परिस्थितिजन्य घटनाओं के कारण हुआ था। तत्कालीन बंगाल के नवाब (सिराजुद्दौला) और उसकी कमजोरी के कारण बंगाल में अंग्रेजों को पैर जमाने का अवसर प्राप्त हो गया, जिसका उन्होंने भरपूर लाभ उठाया। भारत की गुलामी की दास्तां बंगाल से ही शुरू हुई। इस ब्लॉग के माध्यम से हम बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी के उदय और बंगाल की गुलामी के विषय में जानेंगे।

बंगाल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-

बंगाल में अंग्रेजों के आने से पूर्व की स्थिति को जानना आवश्यक है ताकि औपनिवेशिक शासकों की नीतियों को आसानी से समझा सके।

समकालीन बंगाल में आधुनिक पश्चिमी बंगाल प्रांत, संपूर्ण बांग्लादेश, बिहार और उड़ीसा सम्मिलित थे। बंगाल मुगलकालीन भारत का सबसे संपन्न राज्य था। 18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में जहां शेष भारत में हर तरफ पतन, पराजय और दिवालिएपन के बादल मंडरा रहे थे अकेला बंगाल प्रांत ही ऐसा था जहाँ साधन संपन्नता और समृद्धि की झलक दिखाई पड़ती थी और मुगल शासन के लिए यही एकमात्र चांदी की खान रह गया था। सौभाग्य से बंगाल को योग्यतम शासक मिले.


1700 ई० में मुर्शिद कुली खां बंगाल का दीवान नियुक्त हुआ और मृत्युपर्यंत (1727 ईस्वी तक) बंगाल की बागडोर संभाले रहा। इसके बाद उसके दामाद शुजा ने 14 वर्ष तक बंगाल पर शासन किया। इसके पश्चात 1 वर्ष के अल्प समय के लिए शासन मुर्शिद कुली खां के निकम्मे बेटे के हाथ में आ गया लेकिन शीघ्र ही अलीवर्दी खाँ ने उसका तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली और 1756 तक बंगाल पर शासन किया। ये तीनों ही शासक बड़े समर्थ और सबल थे, इनके शासनकाल में बंगाल इतना अधिक समृद्ध हो गया था कि इसे बंगाल, स्वर्ग कहा जाने लगा।

कुशल प्रशासन के अतिरिक्त बंगाल को अन्य लाभ भी थे– एक ओर जहां शेष भारत सीमावर्ती युद्धों,मराठा आक्रमणों और जाट विद्रोह से ग्रस्त था और उत्तरी भारत नादिरशाह और अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों से विनष्ट हो चुका था, वहीं बंगाल में कुल मिलाकर शांति बनी रही। यहां व्यापार, वाणिज्य, उद्योग धंधे और कृषि, सभी पर्याप्त रूप से समृद्ध थे।

कोलकाता की आबादी, 1706 में 15,000 थी, 1750 में बढ़कर एक लाख तक पहुंच गई और ढाका तथा मुर्शिदाबाद घनी आबादी वाले नगर बन गए लेकिन समृद्धि की जगमगाहट के पीछे की दशा इतनी अधिक निराशाजनक और नाजुक थी कि ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह समृद्धि कच्ची-ईंटों की दीवार की भांति है जो तूफान के एक छोटे से झोंके से भरभराकर गिरकर समुद्र में विलीन हो जाएगी। बंगाल के अहंकारी नवाब शासक और अरसे से शोषित उनकी प्रजा अभी भी एक-दूसरे के माया जाल से बंधे रहने के लिए अभिशप्त थे।

  • 1690 में जॉन चारनॉक ने अंग्रेज बस्ती के रूप में कोलकाता की स्थापना की।
  • 1697 में फोर्ट विलियम नाम से एक किलेबन्द फैक्ट्री बनाई जिसने एक नए प्रांत का रुप ले लिया। और 1700 में इसे औपचारिक रूप से बंगाल में फोर्ट विलियम प्रांत (प्रेसीडेंसी) कहा गया।
  • सुतनौती, कलिकाता और गेाविन्दपुर को मिलाकर आधुनिक नगर कलकत्ता(कोलकता) का विकास हुआ।

बंगाल में अंग्रेजों का आगमन

बंगाल में अंग्रेजों की बस्तियों की स्थापना से पूर्व का इतिहास अनेक सुस्पष्ट चरणों में विभाजित है।
सन 1633 से 1663 ईसवी के मध्य बंगाल में अंग्रेजों की बस्तियों और फैक्ट्रियों की स्थापना मुगल शासन के अधीन केवल शांतिपूर्वक व्यापार करने के लक्ष्य को लेकर की गई थी। उस समय उनका कोई अन्य लक्ष्य नहीं था।
1633 से पूर्व अंग्रेजों का आगमन उस समय हुआ जब उड़ीसा के मुगल सूबेदार ने उन्हें हरिहरपुर (महानदी के मुहाने के समीप) और उत्तर में बालासोर में अपनी फैक्ट्रियाँ खोलने की अनुमति दी और अंग्रेजों ने उड़ीसा में 1641 में अपनी बस्तियाँ स्थापित कीं। 
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी ने जड़ें जमाने से पूर्व भारत के सबसे समृद्ध राज्य बंगाल में अपनी प्रथम कोठी 1651ई० में तत्कालीन बंगाल के सूबेदार शाह जहान के दूसरे पुत्र शाहशुजा की अनुमति से बनाई। उसी वर्ष एक राजवंश की स्त्री की डॉक्टर बौटन (Dr.Boughton) द्वारा चिकित्सा करने पर उसने अंग्रेजों को RS-3000 वार्षिक में बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में मुक्त व्यापार की अनुमति दे दी। शीघ्र ही अंग्रेजों कासिम बाजार, पटना तथा अन्य स्थान पर कोठियां बना लीं।
1698 में सूबेदार अजीमुशान ने उन्हें सूतानती, कालीघाट तथा गोविंदपुर ( जहाँ आज कोलकाता बसा है) की जमींदारी दे दी जिसके बदले उन्हें केवल RS-1200 पुराने मालिकों को देने पड़े। 1717 में सम्राट फर्रूखसियर ने पुराने  सूबेदारों द्वारा दी गई व्यापारिक रियायतों की पुनः पुष्टि कर दी तथा उन्हें कोलकाता के आस-पास के अन्य क्षेत्रों को भी किराए पर लेने की अनुमति दे दी।

1741 में बिहार का नायब सूबेदार अलीबर्दी खाँ बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा के नायब सरफराज खाँ से विद्रोह कर, उसे युद्ध में मार कर स्वयं इस समस्त प्रदेश का नवाब बन गया। अपनी स्थिति को और भी सुदृढ़ करने के लिए उसने सम्राट मुहम्मद शाह से बहुत से धन के बदले एक पुष्टि पत्र (confermation) प्राप्त कर लिया। परंतु उसी समय मराठा आक्रमणों ने विकट रूप धारण कर लिया तथा अलीवर्दी खां के शेष 15 वर्ष उनसे भिड़ने में व्यतीत हो गए।
मराठा आक्रमण से बचने के लिए अंग्रेजों ने नवाब की अनुमति से अपनी कोठी जिसे अब फोर्टविलियम की संज्ञा दे दी गई थी, के चारों ओर एक गहरी खाई (moat) बना ली। अलीवर्दी खां का ध्यान कर्नाटक की घटनाओं की ओर आकर्षित किया गया जहां विदेशी कंपनियों ने समस्त सत्ता हथिया ली थी। अंग्रेज बंगाल में जड़ न पकड़ लें, इस डर से उसे कहा गया कि वह अंग्रेजों को बंगाल से पूर्णरूपेण निष्कासित कर दे।
नवाब ने यूरोपियों को मधुमक्खियों की उपमा दी थी। कि यदि उन्हें छेड़ा जाए  तो वे शहद देंगी और यदि छेड़ा जाए तो काट-काट कर मार डालेंगी। शीघ्र ही यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हो गई।
Share this Post

भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद: कृषि पर प्रभाव, शिक्षा पर प्रभाव, आर्थिक प्रभाव , सामाजिक प्रभाव और राजनीतिक प्रभाव

Share this Post

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में प्रवेश मुख्यत: व्यापार के लिए किया था, लेकिन भारत की परिस्थितियों ने उन्हें इस देश का मालिक बना दिया। उन्होंने अपनी नीतियों के द्वारा भारत के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया इस ब्लॉग के माध्यम से हम उन क्षेत्रों का अध्ययन करेंगे जहां पर उपनिवेशीकरण का प्रभाव अत्याधिक … Read more

Share this Post

साम्राज्यवाद और उसके सिद्धांत-Part 1

Share this Post

साम्राज्यवाद एक सामाजिक सिद्धांत है जो एक व्यक्ति या समूह को एक शक्तिशाली राजा, सम्राट, या शासक द्वारा नियंत्रित करने की धारणा पर आधारित है। इस विचारधारा में, सत्ता और शक्ति की सीमा शासक द्वारा निर्धारित होती है और वे राज्य के सभी क्षेत्रों पर नियंत्रण रखते हैं। साम्राज्यवाद में शासक को सर्वोच्च अधिकार, प्राधिकार और प्रभुत्व होता है और वे राज्य की सुप्रीम अधिकारी होते हैं।

साम्राज्यवाद और उसके सिद्धांत-Part 1

साम्राज्यवाद और उसके सिद्धांत

साम्राज्यवाद ऐतिहासिक रूप से विभिन्न समयों और स्थानों पर प्राप्त हुआ है। ऐसे शासक और सम्राट जैसे ऐतिहासिक व्यक्तित्व थे जो विशाल राज्यों को नियंत्रित करते थे, जैसे कि रोमन साम्राज्य, मौर्य साम्राज्य, ब्रिटिश साम्राज्य, और मुग़ल साम्राज्य। साम्राज्यवाद का उदय धर्म, समाज, और आर्थिक परिवेश के विभिन्न प्रकारों पर निर्भर करता है और विभिन्न धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक तांत्रिक विचारधाराओं को समर्थित करता है।

साम्राज्यवाद क्या है

 साम्राज्यवाद के मूल स्वरूप को समझने में दो बाधाएं हैं– पहली बाधा तो यह है कि एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका के विभिन्न देशों को स्वतंत्र हुए काफी समय बीत चुका है। अतः वहां के लोगों के प्रत्यक्ष औपनिवेशिक अनुभव और आज की प्रबल राष्ट्रीय भावना के बीच एक लंबा फासला आ गया है। एशिया तथा अमेरिका के देशों में स्वतंत्र होने के बाद जो शासन पद्धतियां अपनायी उन्होंने अपने देशवासियों में यह भावना भरने की कोशिश की कि साम्राज्यवाद तो बीते युग की चीज है।

उदाहरण के लिए भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद एक पूरी नई पीढ़ी का जन्म और विकास हो चुका है जिसका साम्राज्यवाद से कभी कोई सीधा संपर्क नहीं रहा। दूसरी बाधा औपनिवेशिक काल के बाद की विश्व परिस्थिति से उत्पन्न हुई है।

यूरोप की साम्राज्यवादी शक्तियों का विश्व-राजनीति पर प्रभाव कम होता गया है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र की स्थापना से विभिन्न राष्ट्रों के बीच पारस्परिक समानता का वातावरण उत्पन्न हुआ है। अतः कई लोगों के लिए यह समझ पाना कठिन है कि आज भी साम्राज्यवाद दूसरों पर आधिपत्य कायम करने की एक जीवंत प्रक्रिया बन सकता है।

 परंतु यह दोनों बाधाएं वस्तुस्थिति की भ्रामक समझ पर आधारित हैं। पहली बात तो यह है कि साम्राज्यवाद ने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका की समाज-व्यवस्था को ऐसे आधारभूत क्षति पहुंचाई है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कुछ दशकों में ही उसकी गहरी छाप को मिटा पाना असंभव है।

Read more

Share this Post

रेडक्लिफ सीमा रेखा: स्वतंत्रता और खूनी खेल

Share this Post

रैडक्लिफ़ सीमा रेखा, जिसे रैडक्लिफ़ रेखा के रूप में भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा विभाजन रेखा को संदर्भित करती है जिसे अगस्त 1947 में ब्रिटिश वकील सर सिरिल रैडक्लिफ़ द्वारा खींचा गया था। यह सीमा रेखा भारत और पाकिस्तान के विभाजन की प्रक्रिया के दौरान खींची गई थी। ब्रिटिश भारत, … Read more

Share this Post

आधुनिक भारत में किसान आंदोलन

Share this Post

आधुनिक भारत में किसान आंदोलन बहुत सी अहम घटनाओं को सम्मिलित करता है जो भारतीय किसानों द्वारा आवाज़ उठाने और अपने हक़ों की रक्षा करने के लिए हुए हैं। इन आंदोलनों ने भारतीय किसान समुदाय की समस्याओं के प्रकाश में लाने में मदद की है और उनकी मांगों पर ध्यान आकर्षित किया है। यहां कुछ आधुनिक भारत में हुए किसान आंदोलनों की एक संक्षेप में जानकारी दी गई है.

आधुनिक भारत में किसान आंदोलन


आधुनिक भारत में किसान आंदोलन 

वर्तमान समय में भारत में चल रहे किसान आंदोलन ने समस्त विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इस किसान आंदोलन को विश्व की तमाम हस्तियों का समर्थन मिल रहा है। लगभग पिछले 3 महीनों से किसानों ने वर्तमान सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ रखा है। इस आंदोलन का कारण 3 नए कृषि बिल हैं।

यद्यपि यह कोई पहली बार नहीं है जब किसानों ने सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ा है इससे पूर्व भी मध्यप्रदेश के मंदसौर में किसान आंदोलन चला जिसमें गोली चलने से कुछ किसानों की मृत्यु भी हुई। तेलंगाना के किसानों ने पैदल मार्च कर दिल्ली पहुंचते हुए अर्धनग्न होकर प्रदर्शन किया।

लेकिन यह कोई प्रथम बार नहीं है जब भारत में किसानों ने आंदोलन की राह पकड़ी है। औपनिवेशिक काल से लेकर वर्तमान काल तक किसानों ने अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए आंदोलन किए हैं।

 जिस समय ट्रेड यूनियनों के अंतर्गत विभिन्न संगठनों में कटु संघर्ष जारी था और जब किसी न किसी बहाने मजदूर राष्ट्रीय आंदोलन की ओर खिंचे चले आ रहे थे भारतीय किसान उस समय भी काफी हद तक उपेक्षित और असंगठित हालत में गांव में ही अपने दुख के दिन काट रहे थे। एक अल्प विकसित और औद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजरते हुए देश के संदर्भ में यह स्वाभाविक ही है कि वहां किसानों के बजाय मजदूरों पर अधिक ध्यान दिया दिया जाए और इस कार्य में शासक और उनके विरोधी दोनों ही समान रूप से शामिल हों।

इसका पहला कारण तो यह है कि ऐसे देश की अर्थव्यवस्था में उद्योग की बड़ी ही निर्णायक भूमिका होती है और इसलिए वहां औद्योगिक श्रम-शक्ति बहुत महत्वपूर्ण कारक होती है। औपनिवेशिक व्यवस्था में तो ऐसा और भी ज्यादा होता है। दूसरे अपने सामूहिक अस्तित्व की वजह से विविध संगठनों के प्रति, श्रम-शक्ति किसानों की अपेक्षा अधिक जिम्मेदार होती है क्योंकि अपनी सामाजिक स्थिति की वजह से किसानों का दृष्टिकोण पिछड़ा हुआ और व्यक्तिवादी होता है।

इसके बावजूद यह दलील उचित नहीं है कि किसानों को इसलिए संगठित नहीं किया जा सका कि मजदूरों को संगठित किया जा रहा था। बरहाल राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान किसानों की वास्तविक स्थिति यही थी और इससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि यह स्थिति आज भी उसी तरह चली आ रही है। किसानों की समस्या आज भी हल नहीं हो पायी है।

Read more

Share this Post

क्रिप्स मिशन भारत कब आया, उद्देश्य, प्रस्ताव और क्यों असफल रहा

Share this Post

क्रिप्स मिशन ब्रिटिश सरकार द्वारा मार्च 1942 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान ब्रिटिश राजनेता सर स्टैफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में भारत भेजा गया एक प्रतिनिधिमंडल था। मिशन को भारतीय नेताओं के साथ बातचीत करने और द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश युद्ध के प्रयासों के लिए समर्थन हासिल करने और भारतीय स्व-शासन की बढ़ती मांगों … Read more

Share this Post

भारत में सांप्रदायिकता का उदय और विकास

Share this Post

साम्प्रदायिकता को अक्सर लोग हिन्दू-मुस्लमान के बीच नफ़रत को समझते हैं, लेकिन सम्प्रद्यिकता धर्माधारित भेदभाव अथवा उससे उत्पन्न तनाव को सांप्रदायिकता के रूप में देखते हैं। आज इस लेख में हम जानेंगे कि भारत में साम्प्रदायिकता का उदय किस कारण हुआ, उसके लिए कौनसी परिस्थितियां जिम्मेदार थीं? लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें। भारत में … Read more

Share this Post