स्वतंत्रता दिवस पर हिंदी में भाषण 2023-जो निश्चित ही श्रोताओं को ताली बजाने पर मजबूर कर देगा
दोस्तों भारत अपना 76वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। हमारी आज़ादी को 76 वर्ष पूरे हो रहे हैं। वर्षों की गुलामी के बाद मिली यह आज़ादी बहुत ही महत्वपूर्ण थी। हम आज़ादी के इस जश्न में अपने शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों को याद करके उनके बलिदान को सम्मान और श्रद्धांजलि देने एकत्र होते हैं। आज इस लेख में में मैं आपको स्वतंत्रता दिवस पर एक शानदार और प्रभावी भाषण तैयार करके दे रहा हूँ जो निश्चित ही श्रोताओं को ताली बजाने पर मजबूर कर देगा। लेकिन शर्त यह है कि वास्तव में आपको धर्मनिरपेक्ष और वास्तविक देशभक्त होना पड़ेगा और इस लेख की महत्ता आपको समझ आएगी।

स्वतंत्रता दिवस पर हिंदी में भाषण
प्रतिवर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस हर्षोल्लास से मनाया जाता है। साल 1947 में यही वह दिन था जब भारत ब्रटिश गुलामी से स्वतंत्र हुआ था। इसी दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर राष्ट्र ध्वज तिरंगा फहराया था. तब से प्रतिवर्ष 15 अगस्त को प्रधानमंत्री लाल किले से देश को संबोधित करते हैं.
भारत को आज़ादी कैसे मिली?
दोस्तों हम हर स्वातंबत्रत दिवस पर यह अवश्य सुनते हैं कि भारत को आज़ादी कैसे मिली या किस प्रकार मिली? पर मेरा सवाल सबसे पहले यह है कि भारत को गुलामी कैसे मिली? हमें सबसे पहले यह अवश्य सोचना चाहिए कि भारत जो विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या तब भी रहा जब यह गुलाम हुआ। एक व्यापारी के रूप में आये यूरोप के लोग कैसे इस देश के सर्वेसर्वा बन गए? प्रश्न हैं तो उत्तर भी खोजने होंगे।
अंतिम शक्तिशाली मुग़ल सम्राट औरंगजेब की 1707 में मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य कुछ ही समय में छिन्न-भिन्न हो गया। अनेक छोटे-छोटे राज्य बन गए और एक विशाल भारत अब एक भौगोलिक शक्ति मात्र रह गया। छोटे-छोटे ये शासक आपस में ही लड़ते रहते और खुदको कमजोर करते चले गए।
अंग्रेज जिन्होंने 1600 ईस्वी में एक व्यापारिक कंपनी के रूप में भारत आये और कुछ ही दिन में प्रमुख व्यापारिक शक्ति बन गए। यह भी सत्य है कि अंग्रेज भारत को गुलाम या जितने के इरादे से भारत नहीं आये थे। भारत आकर उन्होंने देखा कि यहाँ तो लोग आपस में ही जाति, धर्म और क्षेत्र के नाम पर लड़ते हैं।
इससे पहले आये अरब, तुर्क, अफगानी, तुरानी और मुग़ल यहाँ की उपजाऊ भूमि और सम्पदा से प्रभावित होकर यहीं बस गए और इस देश को अपना बना लिया लेकिन अंग्रेज जो एक प्रगतिशील जाति थी और रूढ़िवाद को पीछे छोड़ विज्ञान का महत्व समझ चुके थे उन्होंने कभी भारत को अपना देश नहीं माना और इसे एक कॉलोनी यानी उपनिवेश बना लिया।
1757 में बंगाल के नबाव सिराजुदौला और अंग्रेजों के बीच प्लासी का युद्ध हुआ जिसमें बंगाल का नबाव इसलिए नहीं हारा की वो कमजोर था बल्कि इसलिए हारा की उसका सेनापति मीरजाफर, जगत सेठ, राय दुर्लभ और सेठ अमीचंद पहले ही लार्ड क्लाइव से नवाब का सौदा कर चुके थे। प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल में अंग्रेजों के पैर जम गए।
1764 बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों ने मुग़ल सम्राट शाहआलम, बंगाल के तत्कालीन नवाब मीर कासिम और अवध के नवाव शुजाउद्दौला की संयुक्त सेना जिसकी संख्या 50 हज़ार थी को अंग्रेजों की 10 हज़ार की सेना जिसमें लगभग 2000 अंगेज और बाकि भारतीय सैनिक थे। मतलब स्पष्ट है कि अंग्रेजों ने भारतीयों के बल पर ही भारत को जीता।
आज़ादी की प्रथम लड़ाई
1757 के 100 वर्षों के बाद 1857 में भारतीयों ने आज़ादी की पहली लड़ाई लड़ी। यहाँ यह नहीं भूलना चाहिए कि 1857 का स्वतंत्रता संग्राम धार्मिक प्रतिक्रिया से प्रेरित था और भारत के अधिकांश शासक अंग्रेजों के साथ थे जिसके कारण यह विद्रोह असफल हो गया। क्योंकि इस विद्रोह में शामिल भारतियों के अलग-अलग उद्देश्य थे और आज़ादी जैसा कोई प्रयास इसमें नहीं दिखा।
अंग्रेजों द्वारा राजनितिक एकता की स्थापना और भारत में राष्ट्रवाद का उदय
1857 के विद्रोह ने अंग्रेजों को अपनी नीतियां बदलने के लिए मजबूर कर दिया। अब अंग्रेजों ने भारत के शेष राजाओं को अपना सहायक बना लिया। अंग्रेजी भाषा का प्रचल किया, रेलवे, डाक, तार, सड़कें, विश्विद्यालय, और अन्य नागरिक सुविधाओं को शुरू किया। ये वो कारण थे जिन्होंने भारत में राजनीतिक एकता और राष्ट्रवाद को जन्म दिया।
अब अंग्रेजी पढ़ें लिखे भारतीय स्वतंत्रता जैसे शब्दों का महत्व समझ चुके थे। महात्मा गाँधी, सरदार बल्ल्भभाई पटेल, बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय, सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, और बहुत से शहीदों ने आज़ादी में योगदान दिया और अंततः 15 अगस्त 1947 को देश को आज़ादी मिली।
- 15 अगस्त 1947 को, भारत की आज़ादी के बाद पहली बार, जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले के लाहौरी गेट पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया।
- हमारे राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग हैं नारंगी साहस और बलिदान के लिए, सफेद शांति के लिए और हरा आस्था के लिए।
भारत का राष्ट्रगान जन गण मन रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखा गया था
आज़ादी को खतरा है
हम आज़ाद हुए और भारत में विकास ने गति पकड़ी पंचवर्षीय योजनाओ ने देश के विकास नीतियों की आधारशिला रखी। आज हम चंद्रयान 3 के माध्यम से चाँद पर पहुँचने वाले हैं। लेकिन इतना होते हुए भी भारत में बढ़ती साम्प्रदायिकता और क्षेत्रवाद ने हाल ही में देश विदेश में आज़ादी के इस अमृत महोत्सव को चोट पहुंचाई है। जिस प्रकार मणिपुर में भीड़ द्वारा महिलाओं को नग्न घुमाया गया वह भारत के माथे पर कलंक की तरह है। हरियाणा के नूंह में हुई साम्प्रदायिक हिंसा ने दर्शा दिया कि भारत में बेरोजगार भीड़ का इस्तेमाल किस उद्देश्य के लिए हो रहा है।
जातिवाद भले ही शहरों में छुपे तौर पर प्रचलित है मगर गांव दिहात में यह पहले की भांति प्रचलित है। महिलाऐं आज भी असुरक्षित हैं उन्हें आज़ादी मिली मगर पुरुष की इच्छानुसार। आज देश की आज़ादी को खतरा है साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद और जातिवाद से। आज बढ़ती बेरोजगारी और शिक्षा के गिरते स्तर ने ऐसे नागरिक तैयार कर दिए हैं जिन्हें स्वतंत्रता, समानता, भ्रातत्त्व और लोकतंत्र से कोई मतलब नहीं है। मिडिया की पक्षपातपूर्ण और सम्प्रदायिक नीतियों ने देश में माहौल ख़राब करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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नेताओं ने संविधान के स्थान पर अपने निजी विचारों और नीतियों को थोपना शुरू कर दिया है।
अगर देश को वास्तव में विश्व गुरु बनना है या एक विकसित देश बनना है तो हमें आपसी भाईचारा, देश प्रेम को बढाकर सम्प्रदायिकता, जातिवाद और क्षेत्रवाद को समाप्त करना होगा। रूढ़िवाद के स्थान पर विज्ञानं को आगे करना होगा। जाति, धर्म और पार्टी से पहले देश को रखना होगा। जय हिन्द, जय भारत।
भारतीय स्वतंत्रता के बारे में कुछ रोचक तथ्य:
अहिंसक प्रतिरोध: महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता के लिए भारत का संघर्ष, अहिंसक प्रतिरोध के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए प्रसिद्ध है। इस अनूठे दृष्टिकोण ने दुनिया भर में अन्य आंदोलनों को प्रेरित किया।
दांडी मार्च: 1930 में, गांधीजी ने प्रसिद्ध दांडी मार्च का नेतृत्व किया, जो ब्रिटिश नमक कर के खिलाफ 240 मील का विरोध था। इस प्रतीकात्मक आंदोलन से पूरे देश में सविनय अवज्ञा आंदोलन की लहर फैल गई।
सबसे बड़ा सविनय अवज्ञा आंदोलन: 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन, जिसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है, में लाखों भारतीयों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था। इसे दुनिया के सबसे बड़े सविनय अवज्ञा आंदोलनों में से एक माना जाता है।
नियति के साथ प्रयास: भारत के पहले प्रधान मंत्री, जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर प्रतिष्ठित भाषण “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” दिया, जिसमें ऐतिहासिक क्षण और लोकतंत्र और विकास के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर जोर दिया गया।
आजाद हिंद फौज: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ धुरी शक्तियों के साथ लड़ने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज (भारतीय राष्ट्रीय सेना) का गठन किया। इसका आदर्श वाक्य था “दिल्ली चलो” (मार्च टू दिल्ली)।
महिलाओं की भूमिका: महिलाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, आंदोलनों का नेतृत्व करने से लेकर अहिंसक विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने तक। सरोजिनी नायडू और एनी बेसेंट जैसी प्रमुख शख्सियतों ने समर्थन जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विभाजन का दंश: 1947 में भारत के विभाजन के कारण दो स्वतंत्र राष्ट्रों, भारत और पाकिस्तान का निर्माण हुआ। यह घटना मानव इतिहास में सबसे बड़े सामूहिक प्रवासन में से एक थी और इसके महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक परिणाम हुए।
भारत का संविधान: भारत ने 26 जनवरी 1950 को अपना संविधान अपनाया, जो एक गणतंत्र में आधिकारिक परिवर्तन का प्रतीक था। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने संविधान का मसौदा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पहला आम चुनाव: 1951-52 में, भारत ने अपना पहला आम चुनाव कराया और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बन गया। 85% से अधिक पात्र मतदाताओं ने भाग लिया।
अंतर्राष्ट्रीय समर्थन: स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष को वैश्विक ध्यान और समर्थन मिला। मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे नेताओं ने भारत के अहिंसक आंदोलन से प्रेरणा ली।
शहीदों को श्रद्धांजलि: नई दिल्ली में इंडिया गेट प्रथम विश्व युद्ध और अफगान युद्धों में शहीद हुए सैनिकों के लिए एक स्मारक के रूप में खड़ा है। उनके सम्मान में एक शाश्वत लौ, अमर जवान ज्योति जलती है।
राष्ट्रीय प्रतीक: भारतीय तिरंगा झंडा, राष्ट्रीय प्रतीक (अशोक स्तम्भ), और राष्ट्रीय गान (“जन गण मन”) को स्वतंत्रता के बाद आधिकारिक तौर पर अपनाया गया था।
अविश्वसनीय विविधता: भारत की स्वतंत्रता ने न केवल औपनिवेशिक शासन से मुक्ति का प्रतीक है, बल्कि इसकी सांस्कृतिक, भाषाई और धार्मिक विविधता का भी जश्न मनाया।
नेहरू-गांधी विरासत: नेहरू-गांधी परिवार भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्रता के बाद के शासन से गहराई से जुड़ा रहा है, इस परिवार से तीन प्रधान मंत्री उभरे हैं।
आर्थिक सुधार: भारत ने 1991 में आर्थिक उदारीकरण और सुधारों की शुरुआत की, जिससे महत्वपूर्ण आर्थिक विकास और वैश्विक एकीकरण हुआ।
ये तथ्य स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष की बहुमुखी और प्रेरक यात्रा और उसके बाद के विकासों की एक झलक प्रदान करते हैं जिन्होंने राष्ट्र को आकार दिया है।
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