मलिक काफूर मूलतः एक हिन्दू था, वह गुजरात का निवासी था। वह एक किन्नर था जो देखने में अत्यंत खूबसूरत था। 1297 ईस्वी में नुसरत खां ने उसे 1000 दीनार में खरीद लिया था। इसीलिए मलिक काफूर इतिहास में हज़ार दिनारी के नाम से भी जाना जाता है। मालिक काफूर के व्यक्तित्व से अलउद्दीन खिलज़ी बहुत प्रभावित हुआ हुए दस वर्ष से भी कम के सेवाकाल में उसे नायब का पद हासिल हो गया। इसी के साथ उसको ताज-उल-मुल्क काफूरी की उपाधि भी मिल गई।
मलिक काफूर का प्रारंभिक जीवन
मलिक काफूर 14वीं शताब्दी के दौरान दिल्ली सल्तनत के एक प्रमुख सेनापति और सलाहकार थे। उसके प्रारंभिक जीवन या पृष्ठभूमि के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि वह मूल रूप से मध्य एशिया की खिलजी जनजाति से था।
ऐसा माना जाता है कि दिल्ली सल्तनत द्वारा क्षेत्र में किए गए कई छापों में से एक के दौरान काफूर को गुलाम के रूप में बंदी बना लिया गया था। अंततः उन्हें दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी द्वारा खरीदा गया, जिन्होंने उनके सैन्य कौशल और बुद्धिमत्ता को पहचाना।
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के संरक्षण में, मलिक काफूर सल्तनत में सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों में से एक बन गया। उन्होंने पड़ोसी राज्यों के खिलाफ कई सफल सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया, साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया और इसकी संपत्ति को सुरक्षित किया।
काफूर सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के साथ अपने घनिष्ठ संबंधों के लिए भी जाना जाता था, जो सैन्य और राजनीतिक दोनों मामलों में उनकी सलाह और विशेषज्ञता को महत्व देते थे। काफूर के सुल्तान के प्रेमी होने की भी अफवाह थी, जिसे उस समय निंदनीय माना जाता था।
अपनी कई सफलताओं के बावजूद, मलिक काफूर का शासन बिना विवाद के नहीं रहा। विजित लोगों, विशेषकर दिल्ली के शासन का विरोध करने वालों के प्रति उनके क्रूर व्यवहार के लिए उनकी आलोचना की गई थी। इसके अतिरिक्त, सत्ता में उनके उदय को सल्तनत के कई रईसों ने नाराज किया, जिन्होंने उन्हें एक बाहरी और एक सामान्य व्यक्ति के रूप में देखा।
मलिक काफूर की दक्षिण विजय
अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण विजय में योगदान देने वाला प्रमुख व्यक्ति मलिक काफूर ही था। अलाउद्दीन खिलजी ने मिल्क काफूर की सैन्य प्रतिभा से प्रभावित होकर उसे दक्षिण के अभियानों का प्रबंधक नियुक्त कर दिया। खुदको सिद्ध करते हुए मिल्क काफूर ने सुल्तान को धन, विजय व यश प्रदान किया।
1306-7 में काफूर ने देवगिरि को अपनी अधीनता में ले लिया। इसी विजय क्रम को जारी रखते हुए मलिक काफूर ने 1309 ईस्वी में तेलिंगाना के विरुद्ध अभियान का नेतृत्व किया। वारंगल का घेरा डाल दिया गया और उसका शासक आत्मसमर्पण करने को बाध्य हो गया। काफूर लूट में प्राप्त ढेर सारा धन लेकर दिल्ली लौटा।
1310 ईस्वी में मलिक काफूर को द्वारसमुद्र की विजय के लिए भेजा गया। द्वारसमुद्र की विजय से काफूर के हाथ बहुत साड़ी धन सम्पदा हाथ आई। इसके बाद काफूर मदुरा के पाण्ड्य राज्य की विजय के लिए आगे बढ़ा। उसने मदुरा को लूटकर उस पर अपना अधिकार कर लिया और वहां एक मस्जिद का निर्माण कराया।
उसके बाद काफूर ने रामेश्वरम में एक मस्जिद बनवाई। मालिक काफूर को मदुरा की विजय से इतना धन प्राप्त हुआ कि उसने महमूद गजनवी को कब्र में उत्सुक आँखों के साथ लोट-पोट कर दिया होगा। देवगिरि की लूट भी मदुरा की लूट का मुकाबला नहीं कर सकती थी।
दक्षिण की विजय और मलिक काफूर की शक्ति का उदय
दक्षिण की विजयों ने मलिक काफूर को इतना शक्तिशाली बना दिया कि अलाउद्दीन उसके हाथों की कठपुतली बन गया। – “सुल्तान के इस बुरे मतिप्रकर्ष” ने अलाउद्दीन को बताया कि उसकी पत्नी व उसके पुत्र उसके विरुद्ध एक षड्यंत्र रच रहे हैं और इसके फलस्वरूप मलिका-ए-जहां, खिज्र खां व शादीखां को बंदीगृह में डाल दिया गया। जिस समय राजकुमार ग्वालियर दुर्ग में कैद थे, उस समय मलिका-ऐ-जहाँ को दिल्ली के पुराने दुर्ग में बंद रखा गया। अलप खां की हत्या कर दी गई।
एल्फिंस्टन का विचार वह है कि मलिक काफूर ने अलाउद्दीन को विष तक दिया और इसी के कारन सुल्तान की मृत्यु हुई।
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद मलिक काफूर की भूमिका
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद मलिक काफूर ने शिहाबुद्दीन उमर को सिंहासन पर बिठाया और स्वयं उसका संरक्षक बन गया। एक संरक्षक होने के नाते राजसिंहासन से संबंधित राजसी वंश के समस्त राजकुमारों की हत्या का उत्तरदायित्व उसी पर है।
उसने यह आदेश दिया कि खिज्र खां व शादी खां की “ऑंखें इस तरह गड्ढे में से निकल ली जाएँ जिस तरह चाकू से खरबूजे की खोंपे निकली जाती हैं।” खिज्र खां व शादी खां के समस्त सहायकों को निकाल दिया गया। यद्यपि राजकुमार मुबारक की हत्या का का प्रयत्न किया गया, किन्तु वह अपनी चतुराई से बच गया, और वहां से भाग निकला।
मलिक काफूर का अतिमहत्वकांक्षी होना उसके अंत का कारण बना
इस बात से कोई इंकार नहीं नहीं कर सकता कि मलिक काफूर एक महान सेनानी था। उसने वह चीज प्राप्त की जो उससे पहले कोई मुस्लमान प्राप्त न कर सका। वही ऐसा वयक्ति था जिसने मुसलमानों द्वारा दक्षिण विजय के मार्ग भविष्य में सदा के लिए खोल दिए। दुर्भाग्य से बात यह है कि वह अत्यंत महत्वकांक्षी बन गया और स्वयं सुल्तान बनने के स्वप्न देखने लगा। ऐसा करने में वह उस वंश के हितों को भूल गया जिसके आश्रय पर उसका उत्कर्ष हुआ था। अपने विरोधियों का निष्कासन करने में उसे स्वयं अपने प्राणों का त्याग करना पड़ा।
निष्कर्ष
इस प्रकार कहा जा सकता है कि मलिक काफूर ने अपने जीवन में अपनी योग्यता को सिद्ध किया मगर अति महत्वकांशा ने उसके जीवन का अंत कर दिया। हम यह भी कह सकते हैं कि अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा ( जलालुद्दीन खिलजी ) की हत्या कर गद्दी पाई थी, और कुदरत ने उसके जीवन में मलिक काफूर को भेज दिया जिसने उसके पुरे वंश का अंत कर दिया।
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