मेरठ षड्यंत्र केस: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक मील का पत्थर परीक्षण | Meerut Conspiracy Case

Share This Post With Friends

मेरठ षड्यंत्र केस 1929 में ब्रिटिश भारत में आयोजित एक अत्यधिक प्रचारित मुकदमा था। इस मामले में भारतीय कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के एक समूह की गिरफ्तारी और मुकदमा शामिल था, जिन पर भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था।

मेरठ षड्यंत्र मुक़दमा

आरोपी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के सदस्य थे और उनमें मुजफ्फर अहमद, शौकत उस्मानी और नलिनी गुप्ता जैसे प्रमुख कम्युनिस्ट नेता शामिल थे। उन्हें 20 मार्च 1929 को मेरठ में गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर देशद्रोह और साजिश का आरोप लगाया गया।

मुकदमा चार साल तक चला और अभियोजन पक्ष के प्रति इसकी अनुचितता और पूर्वाग्रह के लिए व्यापक रूप से आलोचना की गई। बचाव पक्ष के वकीलों को उनके मुवक्किलों के खिलाफ साक्ष्य तक पहुंच नहीं दी गई और अभियोजन पक्ष को यातना के माध्यम से प्राप्त बयानों को साक्ष्य के रूप में उपयोग करने की अनुमति दी गई।

इन बाधाओं के बावजूद, अभियुक्तों ने एक मजबूत बचाव पेश किया और मुकदमे को अपनी साम्यवादी विचारधारा के प्रचार के लिए एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया। मुकदमे ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया और भारत में ब्रिटिश उत्पीड़न का प्रतीक बन गया।

अंत में, अभियुक्तों को दोषी पाया गया और लंबी जेल की सजा दी गई। परीक्षण का भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा और इसने कई युवा कार्यकर्ताओं को भारतीय स्वतंत्रता के कारण में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

मजदूर, किसान, छात्र व अन्य श्रमजीवी वर्गों में कम्युनिस्टों के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर ब्रिटिश शासकों व भारतीय पूंजीपति वर्ग में घरबराहट फ़ैल गई। यह बढ़ता हुआ प्रभाव न केवल ब्रिटिश शासकों के लिए खतरा था बल्कि भारत  के मिल मालिकों के लिए भी यह खतरे की घंटी था। 

अप्रैल 1928 से ही भारत के मिल मालिकों ने सरकार पर दबाव डाला कि वह कम्यूनिस्टों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करे। बंगाल व बम्बई की सरकारों ने भी केंद्रीय सरकार से कम्युनिस्टों के प्रभाव को रोकने के लिए कार्यवाही करने का अनुरोध किया। सरकार ने इनकी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए 1928 में पब्लिक सेफ्टी ( लोक सुरक्षा ) का अध्यादेश जारी कर दिया और इसका प्रयोग कम्युनिस्टों के खिलाफ किया गया। इसके अतिरिक्त ( 20 मार्च 1929 ) सरकार ने देश भर से 31 कम्युनिस्ट और मजदूर संघ के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और उन षड्यंत्रों का मुकदमा चलाने के लिए उन्हें मेरठ ले जाया गया।

मेरठ षड्यंत्र केस: भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक मील का पत्थर परीक्षण
IMAGE CREDIT-WIKIPEDIA

मेरठ षड़यंत्र मुकदमा 1928

वास्तव में कम्युनिस्टों पर मुकदमा चलाने की योजना  1928 में ही बना ली थी। 13 सितम्बर, 1928 को वाइसराय  सचिव को एक तार भेजा, जिसमें उन्होंने लिखा लिखा —-

“हम इस  समय के महत्वपूर्ण नेताओं पर व्यापक षड्यंत्र मुकदमें चलाने की सम्भावना पर विचार कर रहे हैं। ब्रिटिश अधकारियों ने इस मुकदमें के लिए मेरठ को चुना क्योंकि बम्बई व कलकत्ता कम्युनिस्टों के गढ़ थे। वहां पर मुकदमा चलाने से ब्रिटिश शासकों को कानून-व्यवस्था भंग होने का भय था। 

भारत के गृह विभाग के सचिव ने एक पत्र लिखा

“आज जैसा खतरनाक वातावरण बम्बई और कलकत्ते में पाया जाता है उसे देखते हुए, वहां कम्युनिस्टों पर मुकदमा चलाना उचित नहीं है।”

मुकदमा चलाने के लिए मेरठ को ही क्यों चुना गया

मुकदमा  चलाने के लिए मेरठ इसलिए भी चुना गया क्योंकि वहाँ पर मामले को दृष्टि द्वारा विचार करने का नियम नहीं था। सरकार को आशंका थी कि कम्युनिस्टों की  गिरफ्तारियों पर भी जनता शांत नहीं बैठेगी। सरकार को जन-आंदोलन का भय था।

लार्ड इरविन ने बंगाल व बम्बई के गवर्नरों को 18 जनवरी, 1929 को लिखे पत्र में निर्देश दिया कि कम्युनिस्टों की गिरफ़्तारी  के समय बड़ी संख्या में पुलिस बल का उन स्थानों पर मौजूद होना आवश्यक था। इतना ही नहीं, बम्बई  को कम्युनिस्टों की गिरफ़्तारी से मजदूरों की संभावित गड़बड़ी से इतना भय था कि उसने उस समय के लिए सेना की मदद माँगी और उस दिन बम्बई में सुबह 6 बजे से ही सेना  की टुकड़ियों को तैनात कर दिया गया।

इन कम्युनिस्टों को गिरफ्तार करके सरकार ने उन पर मेरठ में मुकदमा दायर  कर दिया। यह मुकदमा साढ़े तीन साल तक चला। 300 गवाहों से जिरह हुई।  3000 के करीब शहादतें अदालत में पेश की गयीं और मुकदमें  पर कुल मिलाकर १५००००० रूपये खर्च हुए। मुकदमें  दौरान कम्युनिस्टों ने इस बात की घोषणा की कि वे क्रन्तिकारी हैं और ब्रिटिश साम्राज्यवाद को भारत में खत्म करना चाहते हैं।


मुकदमें के दौरान मुज़फ्फर अहमद ने जोरदार शब्दों में कहा –

 “मैं एक क्रन्तिकारी कम्युनिस्ट हूँ। हमारी पार्टी कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के कार्यक्रम, सिद्धांत और नीति को मानती है और जहां तक हालात अनुमति दें उनका भरसक प्रचार करती है।

श्रीपाद डांगे ने कहा,  “कम्युनिस्टों का प्रथम उद्देश्य भारत से साम्राज्यवाद को उखाड़ देना है।”

घाटे ने घोषणा की,  “कम्युनिस्ट मौजूदा राज्य मशीनरी को तोड़ देना चाहते हैं और इसके स्थान पर साम्यवाद के आने तक एक  नई मशीनरी स्थापित करना चाहते हैं।”

 जोगलेकर  ने कहा, “कम्युनिस्ट होने के नाते मैं मार्क्सवाद-लेनिनवाद में विश्वास करता हूँ।”
मिराजकर  ने कहा , “मैं यह बात खुलकर कहता हूँ कि मैं पूंजी की प्रभुता का विनाश करना चाहता हूँ।”
सोहन सिंह जोश ने ऐलान किया, “हम साम्राज्यवाद के साथ साम्राज्य को भी ख़त्म करना चाहते हैं।”
अब्दुल मजीद ने कहा, “मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक दिन भारत में सर्वहारा क्रांति सफल होगी हम कम्युनिस्ट इस क्रांति को लाने की कोशिश में लगे हैं।”

मेरठ मुकदमें पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया

जिस समय ये लोग निडर होकर अदालत में बयान  दे रहे थे उस समय कांग्रेस की तरफ से जवाहर लाल नेहरू इनके लिए एक प्रस्ताव लेकर आये। इस प्रस्ताव  के द्वारा कांग्रेसी नेताओं ने कम्युनिस्टों को यह कहला भेजा कि कांग्रेस भावी सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण इनके मुकदमें पर ध्यान नहीं दे सकेगी। इसलिए इन लोगों को अदालत के सामने अपना अपराध कबूल कर लेना चाहिए।

मेरठ मुकदमें के परिणाम

मेरठ मुकदमें का फैसला 16 जनवरी 1933 को सुनाया गया। 27 अभियुक्तों को कठोर सजा दी गई।  मुज़फ्फर अहमद को सबसे बड़ी सबसे कड़ी सजा देने का फैसला किया गया। उनकों आजीवन काले पानी की सजा दी गई। 

कम्युनिस्ट  नेताओं के जेल में बंद कर दिए जाने के कारण पार्टी का संगठन काफी कमजोर हो गया। मजदूर-किसान पार्टियां बिखर गयीं। लेकिन यह मुकदमा कम्युनिस्टों को भारत से बाहर नहीं कर पाया। मुकदमें  अभियुक्तों के वक्तव्यों से भारत के लोगों में क्रांतिकारी भावनाएं उभरीं और उनके दिलों में इनके प्रति मान बढ़ गया।

सरकार ने लोगों के दिलों में भय पैदा करने के लिए इस मुकदमें का जोर-शोर से प्रचार किया परन्तु उसका विपरीत असर हुआ। इस प्रचार ने कम्युनिस्ट नेताओं के विचारों को लोगों तक पहुंचा दिया।

मुज़फ्फर अहमद के शब्दों में “मेरठ षड्यंत्र मुकदमें ने भारत में कम्युनिज़्म की जड़ें मजबूत कर दीं।” वास्तव में इस मुकदमें ने “कम्युनिस्टों के लक्ष्य को दूरगामी लाभ पहुंचाए।” साम्यवाद को एक मजबूत आधार प्रदान किया।

पार्टी के प्रमुख नेता जब जेल में बंद कर दिए गए तब पार्टी के नेतृत्व की जिम्मेदारी पार्टी के युवा सदस्यों अब्दुल मजीद बी० टी० रणदिवे, मिसेज नांबियार, सोमनाथ लाहिड़ी और आर० डी० भरद्वाज के कन्धों पर आ गई। इन्होंने पार्टी को फिरसे संगठित किया करने के प्रयास किये। उनके इस प्रयास में जेल में बंद नेताओं ने सहयोग दिया। वे पार्टी से सम्पर्क बनाये रहे और आंदोलन को दिशा प्रदान करते रहे।  उन्होंने जेल से कई दस्तावेज भी गुप्त रूप से बाहर भिजवाए और कम्युनिस्ट इंटरनेशनल से पार्टी को बचाने की अपील की।

मेरठ षडयंत्र कांड का महत्व

मेरठ षड्यंत्र केस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। यहाँ इसके कुछ प्रमुख महत्व हैं:

भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन को आकार देना: परीक्षण ने भारतीय कम्युनिस्ट नेताओं को व्यापक दर्शकों के लिए अपनी विचारधारा और विचारों का प्रचार करने के लिए एक मंच प्रदान किया। इस मामले ने भारत में एक मजबूत कम्युनिस्ट आंदोलन बनाने में मदद की और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के गठन की नींव रखी।

ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों को उजागर करना: परीक्षण ने भारतीय लोगों के प्रति ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार की दमनकारी नीतियों को उजागर किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्थन जुटाने में मदद की। इसने राजनीतिक असंतोष को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा यातना और अनुचित परीक्षणों के उपयोग पर भी ध्यान आकर्षित किया।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर प्रभाव: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए कई युवा कार्यकर्ताओं को प्रेरित करके इस मामले का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। मुकदमे ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनमत जुटाने में मदद की और 1947 में भारतीय स्वतंत्रता की अंतिम उपलब्धि में योगदान दिया।

अंतर्राष्ट्रीय ध्यान: परीक्षण ने अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया और भारत में ब्रिटिश उत्पीड़न का प्रतीक बन गया। इसने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्थन बनाने में मदद की और भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघन की ओर ध्यान आकर्षित किया।

संक्षेप में, मेरठ षडयंत्र केस भारत के स्वतंत्रता संग्राम और भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन के विकास के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसका प्रभाव आज भी भारत के राजनीतिक परिदृश्य में महसूस किया जा सकता है।


Share This Post With Friends

Leave a Comment