कुषाणों के पतन के पश्चात् और गुप्तों के उदय से पूर्व तक का प्राचीन भारतीय इतिहास राजनैतिक दृष्टि से विकेन्द्रीकरण तथा विभाजन का काल माना गया है। इस समय देश में कोई शक्तिशाली सार्वभौम शक्ति नहीं थी। रामपूर्ण देश टूटकर छोटे-बड़े राज्यों में विभाजित हो गया था। चारों तरफ आरजकता व्याप्त थी। अव्यवस्था का बोलबाला था। भारत में इस समय दो प्रकार के राज्य थे —राजतन्त्र तथा गणतंत्र। इनके अतिरिक्त कुछ विदेशी शक्तियां भी थीं। आज इस ब्लॉग में हम दक्षिण भारत में राज्य करने वाले ‘नागवंश का इतिहास’ जानेंगे।
नागवंश –
गुप्तों के उदय से पूर्व उत्तर तथा दक्षिण में अनेक शक्तिशाली राजतंत्रों का उदय हुआ था। इन्हीं राजतंत्रों में एक राज्य था ‘नागवंश’
नागवंश का इतिहास —
शक्तिशाली कुषाणों के पतन के पश्चात् मध्यभारत तथा उत्तर प्रदेश के भूक्षेत्र पर शक्तिशाली नागवंशों का उदय हुआ। यह नागवंशी ही थे जिन्होंने गंगाघाटी से कुषाणों के साम्राज्य का विनाश किया था। पुराणों के विवरणों से ज्ञात होता है कि पद्मावती, मथुरा तथा कांतिपुर में नागवंशी कुलों का शासन था। पुराणों से जानकारी मिलती है कि मथुरा में सात तथा पद्मावती तथा मथुरा के नागवंशी शासक काफी शक्तिशाली थे। इनमें भी पद्मावती का नाग कुल सबसे अधिक महत्वपूर्ण था।
पद्मावती की पहचान मध्यप्रदेश के ग्वालियर के समीप स्थित आधुनिक ‘पद्मपवैया’ नामक स्थान से की जाती है। पद्मावती के के नाग लोग ‘भारशिव’ कहलाते थे। वे अपने कंधों पर शिवलिंग वहन करते थे, अतः भारशिव कहलाये। भारशिवों का वाकाटकों के साथ वैवाहिक संबंध था। भारशिव कुल के शासक भवनाग ( 305-40 ) की पुत्री का विवाह वाकाटक नरेश प्रवरसेन प्रथम के पुत्र के साथ हुआ था। समुद्रगुप्त के समय पद्मावती के भारशिव नागवंश का शासक नागसेन था। प्रयाग प्रशस्ति में उसका उल्लेख मिलता है।
मथुरा में समुद्रगुप्त के समय गणपतिनाग का शासन था। तीसरी शताब्दी के अंत में पद्मावती तथा मथुरा के नाग लोग मथुरा, धौलपुर, आगरा, ग्वालियर, कानपुर, झाँसी तथा बाँदा के भूभागों तक फ़ैल गए।
नागवंश का शासनकाल 150 से 250 विक्रम संवत के मध्य तक माना गया है।
नागवंश की प्रामाणिकता
प्राचीन काल में नागवंशियों का राज्य भारत के कई स्थानों में तथा सिंहल में भी था। पुराणों में उल्लेख आया है कि सात नागवंशी राजा मथुरा भोग करेंगे, उसके पीछे गुप्त राजाओं का राज्य होगा।
नौ नागवंशी राजाओं के जो पुराने सिक्के मिले हैं, उन पर ‘बृहस्पति नाग’, ‘देवनाग’, ‘गणपति नाग’ इत्यादि नाम खुदे मिलते हैं। ये नागगण विक्रम संवत 150 और 250 के बीच राज्य करते थे।
इन नव नागों की राजधानी कहाँ थी, इसका ठीक पता नहीं है, पर अधिकांश विद्वानों का मत यही है कि उनकी राजधानी ‘नरवर’ थी। मथुरा और भरतपुर से लेकर ग्वालियर और उज्जैन तक का भू-भाग नागवंशियों के अधिकार में था।