भारतीय संविधान के भाग XVI में समाज के विशेष वर्गों के लिए विशेष प्रावधानों का उल्लेख है। अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा एंग्लों- इंडियनों के लिए लोक सभाओं, विधान सभाओं, शिक्षा अनुदानों में प्रतिनिधित्व के लिए विशेष संरक्षण है। इसके अतिरिक्त धरा 340 में यह भी प्रावधान है कि समस्त देश में सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों ( जिन्हें हम पिछड़ा वर्ग अथवा OBC भी कहते हैं ) की अवस्था के निर्धारण तथा पहचान करने के लिए एक आयोग की नियुक्ति की जाये।
मंडल आयोग
काका कालेकर आयोग- 1953
भारत के राष्ट्रपति ने 1953 में काका साहिब कालेकर की अध्यक्षता में एक आयोग की नियुक्ति की जिसके विचारार्थ विषय ये थे :-
(क) उन मापदण्डों का निर्धारण करना जिनके अनुसार किसी विशेष वर्ग को पिछड़ा वर्ग कहा जा सके।
(ख) भारत के समस्त पिछड़े वर्गों की सूची प्रस्तुत करना।
(ग) पिछड़े वर्ग की कठिनाईयों की जाँच करना और उन कठिनाईयों को दूर करने के लिए तथा उस वर्ग स्थिति को सुधारने के लिए सुझाब देना।
1955 में कालेकर रिपोर्ट सरकार के समक्ष विचार हेतु प्रस्तुत की गयी। सरकार ने रिपोर्ट के अध्ययन के पश्चात् आयोग के सुझावों को व्यावहारिक रूप से अत्यंत अस्पष्ट (vague) तथा विस्तृत बतलाया। अतः उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई।
मंडल आयोग 1979
कालेकर आयोग की असफलता के बाद सरकार ने एक 1979 में एक और पिछड़ा आयोग (मंडल आयोग)का गठन किया जिसके अध्यक्ष श्री बी. पी. मंडल थे।
मंडल आयोग ने अगस्त 1980 में सरकार के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। आयोग ने सुझाब दिया कि पिछड़े वर्गों की जातियों को संरक्षण दिए जाएँ और 450 पिछड़ी जातियों की पहचान की गई जो कि देश की कुल जनसँख्या का 52 प्रतिशत थी। आयोग ने यह सुझाब दिया कि अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों को दिए 22.5 प्रतिशत संरक्षण के अतिरिक्त इस पिछड़े वर्ग के लिए अतिरिक्त 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाये।
लगभग दस वर्षों तक मंडल आयोग की सिफारिशों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। अगस्त 1990 में राष्ट्रीय मोर्चे के प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के विरुद्ध कुछ असंतोष उभरने लगा तो एक दिन अचानक उन्होंने यह घोषणा कर दी कि सरकार ने मंडल सुझाब स्वीकार कर लिए हैं और उन्हें सरकार के लिए अनिवार्य बना दिया है। उन्होंने यह घोषणा भी कर दी कि केंद्रीय नियुक्तियों में तथा सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों में 27 प्रतिशत नियुक्तियां इस सामाजिक तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए सुरक्षित रखी जाएँगी।
नरसिंह राव की सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को सर्वोच्च न्यायालय में विचार हेतु भेज दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने इस आयोग की सिफारिशों में कोई संवैधानिक विसंगति नहीं पायी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक सुझाब दिया “कि पिछड़े वर्गों में संपन्न यानि ऊपरी परत (क्रीमय लेयर) को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाये।
अंततः नरसिंह राव सरकार ने यह सुझाब मान लिया कि भारत सरकार के असैनिक पदों की नियुक्तियों में ऊपरी परत (क्रीमी लेयर) को छोड़कर ही obc के लिए 27 प्रतिशत कोटा आरक्षित रखा जायेगा।
कौन आएगा क्रीमी लयेर में ?
- वे वयक्ति जो संवैधानिक पद प्राप्त कर लेते हैं।
- यदि माता-पिता में से एक भी प्रथम श्रेणीं राजपत्रित अधिकारी बन गया हो।
- यदि माता-पिता दोनों ही द्वितीय श्रेणीं के राजपत्रित अधिकारी हों। लोगों की सकल
- यदि माता अथवा पिता में एक भी व्यक्ति थल सेना, नौ सेना अथवा वायु सेना या परा मिलिट्री दलों में कर्नल अथवा उसके बराबर की पदवी प्राप्त कर चुके हों।
- उन परिवारों की संतान जिनके पास राज्य सरकार द्वारा नियत भूमि की अधिकतम सीमा का 85 प्रतिशत भाग सिंचाई वाला हो।
- अथवा जिन लोगों की सकल वार्षिक आय तीन वर्ष तक एक लाख रूपये से अधिक रही हो। परन्तु इसमें माता या पिता तथा भूमि की आय तीनों को नहीं जोड़ा जायेगा।
अथवा
जो लोग तीन वर्ष तक आयकर द्वारा निर्धारित धन-कर देते रहे हों।
पिछड़े वर्ग को आरक्षण का लाभ प्रारम्भिक दौर में केवल उन्हीं जातियों और वर्गों को दिया गया है जो मंडल आयोग तथा राज्य सरकार दोनों की सूची में सम्मिलित हों। 14 राज्यों अर्थात असम, आंध्र प्रदेश , बिहार, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश,पंजाब, तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश, ओड़िसा, राजस्थान, त्रिपुरा तथा पश्चिमी बंगाल की पिछड़े वर्ग की सूची भारत सरकार के राजपत्र में मुद्रित कर दी गई। 1994 में पांडिचेरी, दादरा नागरहवेली और दमन तथा दिऊ की सूची भी प्रकाशित कर दी गई।