Guru Nanak Dev Ji | गुरु नानक देव जी का जीवन परिचय और शिक्षाएं

भारतीय इतिहास में सिक्ख धर्म और गुरुनानक देव का महत्वपूर्ण स्थान है। Guru Nanak Dev Ji-गुरु नानक देव द्वारा स्थापित धार्मिक सम्प्रदाय को सिक्ख धर्म के नाम से जाना जाता है।  इस धर्म के अनुयायियों ने मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक से सफलतापूर्वक मुकाबला किया है। इस ब्लॉग में हम सिक्खों की शक्ति का किस प्रकार अभ्युदय हुआ और उसमें गुरुनानक देव जी के योगदान के विषय में जानेंगे।

 

 

Guru Nanak Dev Ji | गुरु नानक देव जी का जीवन परिचय और शिक्षाएं

गुरु नानक 1469 -1538 

सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी थे। गुरू नानक जी का जन्म 1469 ईस्वी में पश्चिमी पंजाब के तलवंडी ( वर्तमान पाकिस्तान ) ग्राम में हुआ था। इनकी माता का नाम तृप्ता और पिता का नाम कालू मेहता था। गुरु नानक जी की एक बहन भी थी जिसका नाम ननकी था। सात वर्ष की अवस्था में गुरु नानक जी को गांव के विद्यालय में शिक्षा ग्रहण  करने के लिए भेजा गया।

गुरु नानक जी का मन विद्याध्यन में नहीं लगता था और वे हमेशा चिंतनशील अवस्था में रहते थे जिसके कारण उनकी पढ़ाई अच्छे से नहीं हो सकी। यह सब देख कर उनके पिता ने उन्हें खेती और पशुओं की देखभाल  के काम में लगा दिया पर उनका वहां भी मन नहीं लगा। उनके पिता ने उन्हें कई अन्य व्यवसाय में लगाया पर उनका मन तो “सच्चा सौदा” अर्थात सत्य की खोज में लगा था और धनोपार्जन में उनकी कोई रूचि नहीं थी। वह व्यापार करने और धन कमाने के स्थान पर गरीबों में धन बाँट देते थे। 

अपने पुत्र के वैरागी स्वभाव से चिंतित गुरु नानक के पिता ने उनकी मनोवृत्ति को बदलने के उद्देश्य से सुलक्खनी नामक कन्या से उनका विवाह कर दिया।  इस विवाह से उनके दो पुत्र हुए, परन्तु उनका मन फिर भी परिवार में नहीं लगा। स्थान परिवर्तन के उद्देश्य  उन्हें उनके बहनोई के पास सुलतानपुर भेज दिया गया। वे ईमानदारी पूर्वक अपना कार्य करते रहे।  अंततः सन 1469 में सुलतानपुर के निकट बई नदी के किनारे उन्हें सच्चा ज्ञान ( ईश्वरीय ज्ञान ) की प्राप्ति हुई।  

लगभग तीस वर्ष तक गुरु नानक घूम-घूमकर देशभर में अपने उपदेशों का प्रचार करते रहे। उनकी प्रथम यात्रा की समाप्ति में लगभग 11 वर्ष का समय लगा। उन्होंने इस बीच ईमानाबाद, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, बनारस और असम की यात्रा की।

अपने दूसरे यात्रा काल में गुरुनानक जी ने दक्कन और श्रीलंका की यात्रा की, तीसरे यात्रा काल में कश्मीर और कैलाश पर्वत की यात्रा की। यह भी कहा जाता है कि गुरु नानक जी ने बगदाद, मक्का और मदीना की यात्रा भी की। उनकी अंतिम यात्रा पंजाब में ही केंद्रित रही। अपने यात्रा पड़ावों में उन्होंने पाकपट्टन, दीपालपुर, कसूर, पट्टी, वीरोवाल, पसरूर और डेरा बाबा नानक की भी यात्रा की। 

गुरु नानक की मृत्यु 

गुरु नानक की मृत्यु सन 1538 ईस्वी में हुई। यह भी कहा जाता है कि मुग़ल सम्राट बाबर ने गुरु नानक और उनके प्रिय शिष्य मरदाना को क़ैद करके बंदीगृह में डाल दिया था। जब बाबर को यह ज्ञात हुआ कि क़ैदी एक संत हैं तो उसने तुरंत उन्हें क़ैद से रिहा कर दिया। 

गुरु नानक के उपदेश और शिक्षाएं 

     गुरु नानक के उपदेश इस प्रकार थे —–

  • एक सच्चे प्रभु में विश्वास करो।
  • ईश्वर के नाम की भक्ति और गुरु के उपदेश की आवश्यकता पर बल दिया। 
  • प्रभु एक है, वह सत्य है, जगन्नियन्ता, अभय और शत्रुतारहित है अमर, अजन्मा और निराकार है। 
  • गुरु की कृपा से ईश्वर के नाम का जाप करो। 
  • सृष्टि के आदि में भी वह “एक” था, और अब भी वह “एक” है। 
  • हे नानक! सदा “वह” “एक” ही रहेगा। 
  • नानक ने प्रभु के “एकत्व” बल दिया और कहा कोई प्रभु के समान नहीं हो सकता। वह अनुपमेय है। 
  • ईश्वर विष्णु और ब्रहम्मा से भी ऊँचा और शिव से भी अधिक शक्तिशाली, राम और कृष्ण का रचयिता है। 
  • वह सर्वव्यापी और दयालु है। 
  • उसकी सीमा का कोई अंत नहीं है ईश्वर से कोई पार नहीं पा सकता, केवल प्रभु स्वयं ही अपनी सीमा जनता है। 
  • नानक ने प्रभु को “प्रेमिका” की संज्ञा दी है और वह सबके हृदय में विद्यमान है। 

नानक के शब्दों में “जो ज्योति सृष्टि में है वह तेरी है। हे प्रकाश के देवता ! तेरी ज्योति से ही सब कुछ जगमगाता है। जग सत का घर है और सत का इसमें निवास है। कुछ लोगों को वह अपनी  आज्ञा से अपने में मिला लेता है हुए अन्य को अपनी आज्ञा से नष्ट कर देता है।”

गुरु नानक का दयालु ईश्वर में विश्वास था। सच्ची भक्ति और सादा जीवन से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। प्रभु विपत्ति में अपने भक्तों की मदद करते हैं। प्रभु सबके हृदय में निवास करते हैं और यदि सबकुछ प्रभु पर छोड़ दिया जाये तो प्रभु स्वयं देख-भाल करते हैं। 

गुरु नानक मूर्ति पूजा में विश्वाश नहीं करते थे उनके अनुसार प्रभु सर्वव्यापक है इसलिए उसकी मूर्ति पूजा की कोई आवश्यकता नहीं है। नानक के अनुसार ईश्वर की प्राप्ति के लिए खुदको मिटा दो।  काम, क्रोध मोह, लोभ और अभिमान मनुष्य के पांच शत्रु हैं। 

नानक “सत नाम” की पूजा पर बल देते थे “सात नाम” का जाप सच्ची श्रद्धा से करना चाहिए। नानक के अनुसार जो इस नाम का जाप नहीं करता उसे मुक्ति नहीं मिलती। 

नानक प्रभु-प्राप्ति के मार्ग में गुरु के स्थान को महत्वपूर्ण मानते थे। उनके अनुसार गुरु के बिना ईश्वर की प्राप्ति असम्भव है चाहे कोई कितना ही तर्क करे। गुरु से ही ज्ञान और ईश्वर के ज्ञान की प्राप्ति होती है। गुरु की सहायता से ही मनुष्य परमानंद प्राप्त करता है और उसके सब दुःख समाप्त हो जाते हैं।  उनका मानना था कि प्रभु की कृपा से ही गुरु की प्राप्ति होती है। 

नानक कर्म में विश्वास करते थे और ब्रह्मणों द्वारा पहने जाने वाले यज्ञोपवीत इत्यादि पहनने की हंसी उड़ाया करते थे। वह धर्मिक कर्मकांड और पाखंड का विरोध करते थे। 

 खुशवंत सिंह के अनुसार “गुरु ने सन्यास, वैराग्य, अखंड ब्रह्मचर्य और तपस्या के विरुद्ध सपष्ट रूप से मना किया है।  सरे गुरुओं ने साधारण पारिवारिक जीवन व्यतीत किया। वे गृहस्थ के सभी कार्य सम्पन्न करते थे, और अपने धर्म का भी प्रचार करते रहे। उनके विचार से पवित्र जीवन सामाजिक जीवन के बिना निरर्थक है। उनके उपदेशों में सांसारिक जीवन में रहते हुए सांसारिक मोह-माया में न फंसने का आदेश हुआ है। उनका आदर्श सामाजिक जीवन व्यतीत करते हुए संत का जीवन व्यतीत करना तथा सांसारिक वस्तुओं का उपभोग करते हुए भी आध्यात्मिक जीवन बिताना था।”

गुरु नानक जात-पाँत और ऊंच नीच के विरोधी थे। उनके अनुसार जाति एक मूर्खता है और नाम भी मूर्खता है “न कोई हिन्दू है न कोई मुसलमान है।”

गुरुनानक के अन्य उपदेश 

  • नम्र बनो, घमंड का त्याग करो, मन पर संयम रखो, प्रभु का गुणगान करो। 
  • सत्य बोलो, जागरूक रहो, पंच प्रमादों से बचो, संतोष रखो।

गुरु नानक के विचारों और वाणी में इस्लाम की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। वह सूफी दार्शनिक विचारों से प्रभावित थे। ऐसा प्रतीत होता है कि नानक ने वेद और पुराणों के विषय मने बहुत काम ज्ञान प्राप्त किया था। उनका आदेश क्रियात्मक जीवन पर अधिक था, गहन अध्ययन और ज्ञान प्राप्ति पर नहीं। 

गुरुनानक देव के उत्तराधिकारी और सिक्ख धर्म के गुरु 

  1. गुरु अंगद- 1538-1552 
  2. गुरु अमरदास- 1552-1574 
  3. गुरु रामदास- 1575-1581 
  4. गुरु अर्जुन- 1581-1606 
  5. गुरु हरगोविंद- 1606-1645 
  6. गुरु हरराय – 1645-1661 
  7. गुरु हरकिशन- 1661-1664 
  8. गुरु तेग बहादुर- 1664-1675 
  9. गुरु गोविन्द सिंह- 1675-1708 

Conclusion | निष्कर्ष

 इस प्रकार गुरुनानक ने अपने समुदाय को जो हज़ारों वर्षों से अंधकार और अज्ञान तथा पाखंड में डूबा था को एक ज्ञान रुपी मार्ग दिखाया और उनके जीवन के अंधकार को दूर का ज्ञान का प्रकाश प्रज्वलित किया। उनकी भक्तिमार्ग से पाखंड और अज्ञानता का अँधेरा हट गया। वह धार्मिक के साथ समाज सुधारक भी थे।

उन्होंने ढोंग की बजाय वास्तविक जीवन जीने पर बल दिया साथ ही सांसारिक जीवन जीते हुए प्रभु की भक्ति का मार्ग दिखाया। नानक के उत्तराधिकारियों ने सिक्ख धर्म और अधिक प्रभवशाली बनाया और भारत में एक प्रमुख सम्प्रदाय के रूप में स्थापित किया और भारत में एक रियासत के रूप में पहचान बनाई।

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