एक गुलाम जो बन गया बादशाह – बलबन , history of Balban In Hindi
Contents
- 1 एक गुलाम जो बन गया बादशाह : बलबन history of Balban In Hindi
- 2 एक गुलाम जो बन गया बादशाह : बलबन history of Balban In Hindi
- 2.1 बलबन का जन्म तुर्कों के किस सम्प्रदाय में हुआ
- 2.2 बलबन भारत कैसे आया
- 2.3 बलबन का उत्कर्ष
- 2.4 बलबन की पुत्री का विवाह किसके साथ हुआ
- 2.5 बलबन की शक्ति का ह्रास
- 2.6 बलबन शासक कैसे बना
- 2.7 बलबन के सामने चुनौतियाँ
- 2.8 बलबन के सामने चुनौतियाँ और उनका निवारण
- 2.9 बलबन के विरुद्ध बंगाल के किस शासक ने विद्रोह किया
- 2.10 मंगोल समस्या का समाधान और बलबन की मृत्यु
- 2.11 बलबन की उपलब्धियां
- 2.12 बलबन के राजपद का सिद्धांत
- 2.13 बलबन की लौह एवं रक्त की नीति
एक गुलाम जो बन गया बादशाह : बलबन history of Balban In Hindi
एक गुलाम जो बन गया बादशाह : बलबन history of Balban In Hindi
बलबन का जन्म तुर्कों के किस सम्प्रदाय में हुआ
बलबन भारत कैसे आया
बलबन का उत्कर्ष
बलबन की पुत्री का विवाह किसके साथ हुआ
बलबन की शक्ति का ह्रास
बलबन शासक कैसे बना
बलबन के सामने चुनौतियाँ
शासन सत्ता का खौफ, जो समस्त सुदृढ़ शासन का आधार है और जो राज्य के ऐश्वर्यपूर्ण वैभव का स्रोत है राज्य की समस्त प्रजा के दिल से निकल चुका था और देश निम्न दशा में पहुँच चुका था
इसके अतिरिक्त दुर्दांत मंगोलों के हमले भी शुरू हो गए थे। इन संकटकालीन परिस्थितियों में बलबन ने स्वयं को दास वंश के अन्य सुल्तानों से कहीं अधिक योग्य सिद्ध किया।
बलबन के सामने चुनौतियाँ और उनका निवारण
दोआब की चुनौती और उसका हल — एक शक्तिशाली सेना संगठित कर बलबन ने दिल्ली के निकट के क्षेत्रों की शासन व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त करने का प्रयास किया। दोआब के असुरक्षित माहौल को बलबन ने अतिशीघ्र डाकुओं और विद्रोहियों से मुक्त कर दिया। दोआब व अवध में विद्रोहियों से निपटने में बलबन ने स्वयं नेतृत्व किया।
कटेहर ( रुहेलखंड ) के विद्रोहियों का दमन – कटेहर में बलबन ने अपनी सेनाओं को हमले करने का आदेश दिया। वहां क्रूरतापूर्वक लोगों का कत्ल किया गया और उनके मकानों में आग लगा दी गई। वहां की स्त्रियों और बच्चों को दास बनाया गया। कटेहर के लोगों में इसका आतंक इतना बढ़ा कि उन्होंने फिर अपना सर उठाने की जुर्रत नहीं की।
बलबन के विरुद्ध बंगाल के किस शासक ने विद्रोह किया
बंगाल का शासक तुगरिल खां एक चुस्त, साहसी, व उदार स्वभाव वाला तुर्क शासक था। उसने बंगाल में एक अत्यंत कुशल शासन व्यवस्था की स्थापना की। मुगलों के आक्रमणों और बलबन की वृद्धावस्था को देखकर तुगरिल खां ने पूर्ण स्वतंत्र सत्ता की स्थापना का प्रयास किया। तुगरिल खां के आक्रमण का समाचार सुन बलबन ने अल्पतगीन (अमीर खां) के नेतृत्व में एक बड़ी सेना बंगाल भेजी। दोनों सेनाओं में संघर्ष हुआ जिसमें अल्पतगीन को पराजय का सामना करना पड़ा।
1280 ईस्वी में एक अन्य सेना मलिक तरगी के नेतृत्व में बंगाल भेजी गई। परन्तु यह भी असफल रहा। अब बलबन ने स्वयं तुगरिल खान से निपटने का प्रण किया अपने पुत्र बुगरा खां को साथ लेकर एक बड़ी सेना के साथ बंगाल पहुंचा। तुगरिल खां डरकर जाजनगर के जंगलों में छुप गया, लेकिन उसके साथी शेर अंदाज ने उसका पता बलबन को दे दिया। बलबन ने क्रूरतापूर्वक खां और उसके परिवार का कत्ल कर दिया। बुगरा खां को बंगाल राजयपाल नियुक्त कर बलबन दिल्ली लौट आया।
मंगोल समस्या का समाधान और बलबन की मृत्यु
मंगोल समस्या से निपटने के लिए बलबन ने सभी सीमावर्ती दुर्गों की मरम्मत कराई। कुछ नए दुर्गों का भी निर्माण कराया और उन पर शख्त पहरा बैठाया। बलबन ने मंगोलो को पराजित करने में सफलता प्राप्त कर ली , लेकिन उसको अपने पुत्र राजकुमार मुहम्मद की जान से हाथ धोना पड़ा। अपने पुत्र की मौत का सदमा बलबन को ऐसा लगा कि 1286 ईस्वी में उसकी भी मृत्यु हो गई।
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बलबन का मकबरा महरौली दिल्ली |
बलबन की उपलब्धियां
बलबन की उपलब्धियां
तुर्क-ए-चलगानी का अंत –
बलबन भलीभांतिजानता था की चालीस तुर्कों का दल कभी भी उसे शांति से शासन नहीं करने देगा, क्योंकि इल्तुतमिश से लेकर नासिरुद्दीन के शासनकाल तक उसने इन चालीस अमीरों के शासन में दखल को देखा था। इसलिए सबसे पहले बलबन ने इन चालीस तुर्कों के दल को नष्ट करने का प्रण किया।बलबन ने चालिसियों के दल सदस्यों मलिक बकबक, हैबत खां, अमीन खां आदि को कठोर दंड दिए जिसके कारण अन्य सदस्य भी शांत हो गए।
जासूस व्यवस्था का संगठन
बलबन ने शासन संचालन के लिए जासूस व्यवस्था के महत्व को समझा और एक कुशल व संगठित जासूस व्यवस्था की स्थापना की। जासूसों को अच्छा वेतन दिया सुर उन्हें प्रांतों के अध्यक्षों के नियंत्रण से मुक्त रखा।
भूमि अनुदानों का उन्मूलन
इल्तुतमिश के समय सैनिकों को उनकी सेवाओं के बदले दी गयी भूमि को पुनः वितरण कर पुराने अनुदानों को रद्द कर दिया। बलबन ने इमाद-उल-मुल्क को सेना का प्रबंधक नियुक्त किया। उसे सुरक्षा मंत्री या दीवान-ए-आरिज का पद दिया गया। उसने सेना को संगठित कर कुशल बना दिया।
बलबन के राजपद का सिद्धांत
बलबन दैवी सिद्धांत में विश्वास करता था। उसने ‘ज़िल्ली इलाह’ या ईश्वर का प्रतिबिम्ब’ की उपाधि ग्रहण की। वह खलीफा के प्रति विशेष सम्मान रखता था और खलीफा की मृत्युपरांत भी सिक्कों पर उसका नाम खुदवाता रहा।
बलबन एक निरंकुश शासक था उसे दरबार में हंसना और संगीत बिलकुल पसंद नहीं था। बलबन अपना वंश एक प्राचीन तुर्की नायक, चरण के अफरासियाब से संबंधित मानता था।
बलबन ने दरवार में सुल्तान के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने हेतु—
सिजदा ( लेट कर नमस्कार करना )
पायबोस (पाँव का चुम्मन लेना)
जैसी प्रथाओं का प्रचलन किया। बलबन ने अपने दरबार का सम्मान बढ़ने के लिए नौरोज प्रथा प्रचलित की।
बलबन की लौह एवं रक्त की नीति
बलबन एक कठोर एवं निष्ठुर शासक था उसने अपने विरोधियों का अंत करने के लिए लौह एवं रक्त की नीति को अपनाया। इस नीति का अर्थ कि उसने अपने विरोधियों को तलवार से क़त्ल किया और उनका रक्त बहाया। बलबन ने चालिसियों का दमन इसी नीति से किया।
निष्कर्ष
इस प्रकार बलबन एक शक्तिशाली शासक सिद्ध हुआ जिसने एक गुलाम की हैसियत से अपना जीवन प्रारम्भ किया लेकिन वह बादशाह बना। उसने दिल्ली सल्तनत के खोये गौरव की पुनः स्थापना की। यद्यपि वह एक कठोर शासक था उसने अपने विरोधियों का बड़ी कठोरता से दमन किया सम्भवता यह समय की मांग हो। उसने अपने दरबार में ईरानी पद्धति को लागु किया और एक वैभवशाली दरबार का गठन किया।