सोलह महाजनपद: इतिहास और विस्तार | Sixteen Mahajanapadas: History and Expansion in Hindi

सोलह महाजनपद: इतिहास और विस्तार | Sixteen Mahajanapadas: History and Expansion in Hindi

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Last updated on April 28th, 2023 at 04:17 pm

भारत के सांस्कृतिक इतिहास का प्रारम्भ अति प्राचीन काल में हुआ किन्तु उसके राजनीतिक इतिहास का प्रारम्भ अपेक्षाकृत बहुत बाद  में हुआ। राजनैतिक इतिहास का प्रारम्भ तब से माना जाता है जहां से सुनिश्चित तिथिक्रम प्रारम्भ होता है, इस दृष्टि से भारत के राजनैतिक इतिहास का प्रारम्भ ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी के मध्य ( 650 ईसा पूर्व ) के बाद ही माना जा सकता है।
‘सोलह महाजनपदों का उदय The Rise Of Sixteen Mahajanapadas’ यह वह समय था जब छोटे-छोटे कबीले समुदाय राज्यों का रूप ले रहे थे। राजा नामक पद का सृजन हो चुका था। उत्तर वैदिक काल में विभिन्न जनपदों ( छोटे राज्यों ) का अस्तित्व दिखाई देता है। 

 

the mahajanpadas

सोलह महाजनपद

इस काल तक पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बिहार में लोहे का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाने लगा था। लोहे के व्यापक प्रयोग ने खेती को स्थाई रूप प्रदान किया। कृषि, उद्योग, व्यापर आदि के विकास ने प्राचीन कबीलाई संस्कृति को को तोड़कर छोटे-छोटे जनों का स्थान अब जनपदों ने ले लिया। छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक आते-आते जनपदों का स्थान महाजनपदों ने ले लिया। इन महाजनपदों का विस्तार उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब, झारखण्ड, मध्य प्रदेश और राजस्थान तक था। ये महाजनपद स्वतंत्र राज्य थे जो विभिन्न समूहों द्वारा प्रबंधित होते थे। इनमें से कुछ राज्यों की राजधानी काशी, पाटलिपुत्र (मॉडर्न पटना), राजगृह, श्रावस्ती और उज्जयिनी थी।

सोलह महाजनपदों का उदय

जनपद का शाब्दिक अर्थ है, वह स्थान जहाँ लोग अपना पैर रखते हैं या टिकाते हैं। यद्पि उत्तर-वैदिक-कालीन  युग में जनपद, कृषक समुदाय के स्थायी निवास स्थान हुआ करते थे। प्रारम्भ में संबंधित क्षेत्र के प्रभावशाली क्षत्रिय वंश के नाम पर इन वस्तियों का नाम रखा जाता था।
सोलह महाजनपद (Sixteen Mahajanapadas) भारतीय इतिहास में उन महत्वपूर्ण राज्यों को कहते हैं जो वैदिक काल से मौर्य साम्राज्य तक उत्तर भारत में विकसित हुए थे। ये समृद्ध और शक्तिशाली राज्य थे जो समाज के अनुसार विभाजित होते थे। इन सोलह महाजनपदों के उदय के पीछे अनेक कारण थे जैसे भूमि का महत्व, व्यापार, नदी समूह, शक्ति और संस्कृति का संगम आदि।
उदाहरण के लिए दिल्ली के पास के क्षेत्रों और पश्चिमी उत्तर-प्रदेश को कुरु तथा पांचाल जनपद के नाम से जाना जाता था। आपस में निरंतर युद्धरत इन क्षत्रिय जातियों के शक्तिशाली हो जाने के परिणामस्वरूप तथा कृषियोग्य क्षेत्रों के विस्तार होने से बौद्ध काल में महाजनपदों के रूप में ज्ञात अधिक विशाल प्रादेशिक इकाइयों का उदय हुआ।
महाजनपदों के बड़े और शक्तिशाली शासकों द्वारा जनपदों को अपने राज्यों में मिला लेने के परिणामस्वरूप शासकों में संघर्ष प्रारम्भ हो गए,जिनके कारण अंततः मगध साम्राज्य की स्थापना हुई। इस परिप्रेक्ष में गणराज्यों की शक्ति का धीरे-धीरे ह्रास होने लगा। 
बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय में बुद्ध के समय में समस्त उत्तरी-भारत में विद्यमान 16 महाजनपदों महाजनपदों की सूचि प्राप्त होती है—-
 
 महाजनपद राजधानी
(1) कशी वाराणसी
(2) कौशल श्रावस्ती
(3) अंग चम्पा
(4) मगध गिरिब्रज
(5) वज्जि वैशाली
(6) मल्ल कुशीनारा, पावा
(7) चेदि शुक्तिमती
(8) वत्स कौशाम्बी
(9) कुरु  इद्रप्रस्थ
(10)पांचाल पांचाल,अहिच्छत्र
(11)मत्स्य विराटनगर
(12)शूरसेन मथुरा
(13)अस्मक पोतन
(14)अवन्ति उज्जैन
(15) गंधार तक्षशिला
(16)कम्बोज हाटक
एक अन्य बौद्ध ग्रन्थ महावस्तु में भी 16 महाजनपदों की सूची प्राप्त होती है। किन्तु इसमें गंधार और कम्बोज का नाम नहीं मिलता और उनकी जगह क्रमशः पंजाब और मध्यभारत में सिबि और दशार्ण नामक महाजनपदों का उल्लेख प्राप्त होता है।  भगवती सूत्र नामक जैनग्रंथ में उपलब्ध सूची में वंग और मलय महाजनपदों के नाम प्राप्त होते हैं। अंगुत्तर निकाय की सूची जिन 16 महाजनपदों की सूची प्राप्त होती है उसमें दो प्रकार के राज्य थे – राजतंत्र और गणतंत्र। 

बौद्धकालीन प्रमुख  सोलह महाजनपदों का वर्णन 

 
(1) काशी- वर्तमान वाराणसी तथा उसका समीपर्ती क्षेत्र ही प्राचीन काल में कशी महाजनपद था। वाराणसी नाम वरुणा और असी नामक दो छोटी नदियों से व्युत्पन्न है, जिनके मध्य में यह नगर अवस्थित था। काशी अपने सूती वस्त्रों और अश्वों के के बाजार के लिए सुप्रसिद्ध था। वाराणसी इस महाजनपद की राजधानी थी। सोननंद जातक से ज्ञात होता है कि मगध कौशल तथा अंग ऊपर कशी का अधिकार था।  जातक ग्रंथों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस राज्य का विस्तार तीन सौ लीग था और यह महान समृद्धशाली तथा साधन संपन्न राज्य था। 
 
(2)  कौशल- वर्तमान अवध का क्षेत्र ( फैजाबाद मंडल ) प्राचीन काल में कौशल महाजनपद का निर्माण करता था। रामायणकालीन कौशल की राजधानी अयोध्या थी। बुद्धकाल में कौशल राज्य के दो भाग हो गए।  उत्तरी भाग की राजधानी ‘साकेत’ तथा दक्षिणी भाग की राजधानी श्रावस्ती में स्थापित हुई। साकेत का ही दूसरा नाम अयोध्या था। 
 
(3) अंग – उत्तरी बिहार के वर्तमान भागलपुर  तथा मुंगेर जिले अंग महाजनपद के अंतर्गत थे।  इसकी राजधानी चम्पा थी। महाभारत तथा पुराणों में चम्पा का प्राचीन नाम ‘मालिनी’ प्राप्त होता है। बुद्ध के समय तक चम्पा की गणना भारत के छः महानगरियों में की जाती थी। 
दीघनिकाय के अनुसार इस नगर के निर्माण की योजना सुप्रसिद्ध वास्तुकार महागोविंद ने प्रस्तुत की थी। प्राचीन काल में चम्पा नगरी वैभव तथा वाणिज्य-व्यापर के लिए प्रसिद्ध थी। अंग मगध का पडोसी राज्य था। जिस प्रकार  कशी तथा कौशल में प्रभुसत्ता के लिए संघर्ष चला। अंग के शासक ब्रह्मदत्त ने मगध  के राजा भट्टीय को पहले पराजित कर मगध राज्य के कुछ भाग जीत लिया था, किन्तु बाद में अंग का राज्य मगध में मिला लिया गया।
(4) मगध- यह दक्षणी बिहार में स्थित था। वर्तमान पटना और गया जिले इसमें सम्मिलित थे। आगे चलकर यही उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया। मगध तथा अंग एक दूसरे के पड़ोसी राज्य थे तथा दोनों को पृथक करती हुई चम्पा नदी बहती थी। इस महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में विन्ध्यपर्वत तक तथा पूर्व में चम्पा से पश्चिम में सोन नदी तक विस्तृत थी।
मगध की प्राचीन राजधानी, राजगृह अथवा गिरिब्रज थी। यह नगर पाँच पहाड़ियों के बीच में स्थित था। नगर के चारों ओर पत्थर की सुदृढ़ प्राचीर बनवाई गयी थी। कालान्तर में पाटलीपुत्र मगध की राजधानी बनी।
 
(5) वज्जि— यह आठ राज्यों का एक संघ था। इसमें वज्जि के अतिरिक्त वैशाली के लिच्छवि, मिथिला के विदेह तथा कुंडग्राम के ज्ञातृक विशेष रूप से उल्लेखनीय थे। वैशाली उत्तरी बिहार के मुज्जफरपुर जिले में  स्थित आधुनिक बसाढ़ है। मिथिला की पहचान नेपाल  की सीमा में स्थित जनकपुर नामक नगर से की जाती है।
यहाँ पहले राजतन्त्र था परन्तु बाद में गणतंत्र स्थापित हो गया। कुंडग्राम वैशाली के समीप ही स्थित था। बुद्ध के समय में यह एक शक्तिशाली संघ था और वैशाली इसकी राजधानी थी।
 
(6) मल्ल – पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में मल्ल महाजनपद था। वज्जि संघ के समान यह भी एक संघ ( गण ) राज्य था जिसमें पावा ( पडरौना ) तथा कुशीनारा ( कसया ) के मल्लों की शाखाएं सम्मिलित थी। ऐसा प्रतीत होता है कि विदेह राज्य की तरह मल्ल राज्य भी प्रारम्भ में एक राजतन्त्र के रूप में संगठित था। कुस जातक में अक्काक को वहां का राजा बताया गया है 
 
(7) चेदि – आधुनिक बुन्देलखण्ड के पूर्वी तथा समीपवर्ती भागों में प्राचीन काल का चेदि महाजनपद स्थित था। इसकी राजधानी  ‘सोत्थिवती’ या शुक्तिमती थी। महाभारत में यहाँ का प्रसिद्द शासक शिशुपाल था। जिसका वध कृष्ण द्वारा किया गया। चेतीय जातक में यहाँ के एक राजा का ‘उपचर’ मिलता है। 
 
(8) वत्स – इलाहबाद तथा बाँदा के जिले प्राचीन  काल में वत्स महाजनपद था। इसकी राजधानी कौशाम्बी थी, जो इलाहबाद के दक्षिण-पश्चिम में 33 मील की दूरी पर यमुना नदी के किनारे स्थित है। विष्णु-पुराण से ज्ञात होता है कि हस्तिनापुर के राजा निचक्षु ने  हस्तिनापुर के गंगा के प्रवाह में बह जाने  बाद कौशाम्बी को अपनी राजधानी बनाया था। बुद्धकाल में यहाँ का शासक उद्यन था जो पौरवंश से संबंधित था। 
 
(9) कुरु – मेरठ, दिल्ली तथा थानेश्वर के भू-भागों में कुरु महाजनपद स्थित था। इसकी राजधानी इंद्रप्रस्थ थी। महाभारतकालीन हस्तिनापुर का नगर भी इसी राज्य में स्थित था। बुद्ध के समय यहां का रजा कोरव्य था और इस राज्य की परिधि दो हज़ार मील के लगभग थी।
 
(10) पञ्चाल –  आधुनिक रुहेलखंड  बरेली, बदायूं तथा फर्रुखबाद के जिलों से मिलकर प्राचीन पञ्चाल महाजनपद बनता था। प्रारम्भ में इसके दो भाग थे (1) उतरी पञ्चाल जिसकी राजधानी अहिच्छत्र ( बरेली स्थित वर्तमान रामनगर ) थी तथा (2) दक्षिणी पञ्चाल जिसकी राजधानी काम्पिल्य ( फर्रुखाबाद स्थित काम्पिल्य ) थी। कान्यकुब्ज का प्रसिद्ध नगर इसी राज्य में स्थित था। 
 
(11) मत्स्य ( मच्छ ) – राजस्थान के जयपुर क्षेत्र में मत्स्य महाजनपद अवस्थित था। इस महाजनपद के अंतर्गत वर्तमान अलवर का सम्पूर्ण तथा भरतपुर का कुछ भाग सम्मिलित था। विराटनगर इस राज्य की राजधानी थी, जिसकी स्थापना विराट  नामक राजा ने की थी। 
 
(12) शूरसेन – वर्तमान ब्रजमंडल में यह महाजनपद में स्थित था। इसकी राजधानी मथुरा थी। प्राचीन यूनानी लेखक इस राज्य को शूरसेनोई तथा इसकी राजधानी को ‘मेथोरा’ कहते हैं। महाभारत तथा पुराणों  अनुसार यहाँ यदु ( यादव ) वंश का शासन था। बुद्धकाल में यहाँ का शासक अवन्तिपुत्र था जो बुद्ध का सर्वप्रिय शिष्य था। उसी की सहायता से मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार संभव हुआ। मज्झिम निकाय के अनुसार अवन्तिपुत्र का जन्म अवंति नरेश प्रद्योत की कन्या से हुआ था। 
 
(13) अश्मक – गोदावरी नदी ( आंध्र प्रदेश ) के तट पर अश्मक महाजनपद स्थित था।  पोतन अथवा पोटिल इसकी राजधानी थी। महात्मा बुद्ध  समय अवन्ति ने इसे जीत कर अपनी सीमा में मिला लिया था। 
 
(14) – अवन्ति – पश्चिमी तथा मध्य मालवा के क्षेत्र में अवन्ति महाजनपद बसा हुआ था। इसके दो भाग थे – उत्तरी अवन्ति जिसकी राजधानी उज्जयिनी थी तथा (2) दक्षिणी अवन्ति जिसकी राजधानी माहिष्मती थी। दोनों के बीच में वेत्रवती नदी बहती थी। बुद्ध काल में यहाँ का राजा प्रद्योत था और उज्जयिनी इसकी राजधानी थी। यह बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था जहाँ कुछ प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु निवास करते थे। 
 
(15) गन्धार – वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर तथा रावलपिण्डी जिलों की भूमि पर गन्धार महाजनपद स्थित था। तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इस नगर की स्थापना भरत के पुत्र तक्ष ने की थी। इस जनपद का दूसरा प्रमुख नगर पुष्कलावती था। तक्षशिला वाणिज्य और शिक्षा का महान केंद्र था। 
 
(16) कम्बोज – दक्षिणी-पश्चिमी कश्मीर तथा काफिरिस्तान के भाग को मिलाकर प्राचीन काल में कम्बोज महाजनपद बना था। इसकी राजधानी राजपुर अथवा हाटक थी। कौटिल्य ने कम्बोजों को’वार्ताशस्त्रोपजीवी संघ’ अर्थात ‘कृषि, पशुपालन तथा शस्त्र द्वारा जीविका चलाने वाला’ कहा है। 
 
निष्कर्ष 
इस प्रकार छठी शताब्दी ईसा पूर्व के प्रारम्भ में उत्तर भारत विकेन्द्रीकरण एवं विभाजन के दृश्य उपस्थित कर रहा था। जिन सोलह महाजनपदों के नाम ऊपर गिनाये गए हैं उनमें पारस्परिक संघर्ष, विद्वेष  एवं घृणा का वातावरण व्याप्त था। प्रत्येक महाजनपद अपने राज्य की सीमा बढ़ाना चाहता था। कशी और कोशल के राज्य एक दूसरे के शत्रु थे। प्रारम्भ में कशी विजयी रहा। 
इसी प्रकार अंग, मगध तथा अवन्ति और अश्मक भी परस्पर संघर्षरत रहते थे। गणराज्यों का अस्तित्व राजतंत्रों के लिए असहनीय हो रहा था। प्रत्येक राज्य अपने पड़ोसी की स्वतंत्र सत्ता को समाप्त करने पर तुला हुआ था। अन्य जनपदों की स्थिति भी इससे भिन्न नहीं थी। इस विस्तारवादी निति का अच्छा निकला। निर्बल महाजनपद शक्तिशाली राज्यों में मिला लिये गए, जिसके परिणामस्वरूप देश में एकता की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिला।

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