अलाउद्दीन खिलजी की प्रशासनिक वयवस्था /alauddin khilji ke prashasnik sudhar

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Last updated on April 14th, 2023 at 11:33 am

alauddin khilji

अलाउद्दीन खिलजी का  प्रारम्भिक जीवन

पिता – शाहबुद्दीन मसूद
धर्म  – सुन्नी इस्लाम
शासनावधि         1296-1316
राज्याभिषेक           1296
जन्म                     1266
मृत्यु                        1316 दिल्ली
अमीर-ए-तुजुक         1290-1291
कड़ा का राज्यपाल  1291-1296
पत्नियां मलिका-ए-जहाँ   (जलालुद्दीन  की       बेटी ) 
महरू ( अलपखान की बहन)
कमला देवी ( राजा कर्ण की विधवा )
संतान-  खिज्र खान,
शादी खान,
कुतुबुद्दीन मुबारक शाह, 
शाहबुद्दीन उमर,

अलाउद्दीन खिलजी

अलाउद्दीन खिलजी, जिसे जूना खान के नाम से भी जाना जाता है, भारत में दिल्ली सल्तनत का एक प्रमुख शासक था। वह 1296 ईस्वी में सिंहासन पर बैठा और 1316 ईस्वी में अपनी मृत्यु तक शासन किया। अलाउद्दीन खिलजी का प्रारंभिक जीवन अच्छी तरह से ज्ञात नहीं है, और उसके प्रारंभिक वर्षों के आसपास कई खाते और किंवदंतियाँ हैं। हालाँकि, ऐतिहासिक अभिलेखों के आधार पर, यह माना जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी का जन्म 1266 ईस्वी में बंगाल के बीरभूम शहर में हुआ था, जो उस समय दिल्ली सल्तनत का हिस्सा था।

अलाउद्दीन खिलजी का परिवार तुर्की जातीय समूह से संबंधित था, जो मध्य एशियाई मूल का था। उनके पिता, शिहाबुद्दीन मसूद, सुल्तान शम्सुद्दीन इल्तुतमिश की सेना में एक सेनापति थे, जो दिल्ली सल्तनत के शासक थे। अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली में पले-बढ़े और पारंपरिक इस्लामी शिक्षा प्राप्त की।

एक युवा के रूप में, अलाउद्दीन खिलजी ने सैन्य कौशल और प्रशासनिक कौशल का परिचय दिया। उन्होंने अपने चाचा, जलालुद्दीन फ़िरोज़ ख़लजी, जो दिल्ली के सुल्तान थे, के अधीन एक सैन्य कमांडर के रूप में सेवा की। अलाउद्दीन खिलजी ने विभिन्न विद्रोहों और बाहरी आक्रमणों के खिलाफ अभियानों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया, एक सक्षम और निर्दयी योद्धा के रूप में ख्याति अर्जित की।

कुछ स्रोतों के अनुसार, अलाउद्दीन खिलजी महत्वाकांक्षी था और उसने अपने लिए सत्ता मांगी थी। उसने कथित तौर पर 1296 ईस्वी में अपने चाचा जलालुद्दीन फिरोज खलजी की हत्या कर दी ताकि सिंहासन पर कब्जा कर सके और अपना राजवंश स्थापित किया जा सके, जिसे खिलजी वंश के रूप में जाना जाता है। अलाउद्दीन खिलजी के सिंहासन पर बैठने से दिल्ली सल्तनत में मजबूत और केंद्रीकृत शासन की अवधि की शुरुआत हुई, जिसमें उनकी सैन्य विजय, प्रशासनिक सुधार और आर्थिक नीतियां शामिल थीं।

राजपद का सिधान्त

 जलालुद्दीन की हत्या कर अलाउद्दीन ने दिल्ली की गद्दी पर अधिकार किया था। ऐसी स्थिति में उसकी प्रथम समस्या थी हड़पे हुए राजत्व को जनता की दृष्टि में उचित सिद्ध करना। जिससे वह उस वास्तविक राजत्व के समकक्ष हो जाए जिसके लिए जनता के हृदय में प्रेम लगाव व भक्ति थी। यद्यपि अलाउद्दीन खिलजी को अपने कार्यों के लिए धार्मिक स्वीकृति प्राप्त करने की आकांक्षा नहीं थी। वह किसी दैवी शक्ति पर आधारित राजपथ में नहीं वरन ऐसे राजत्व में विश्वास करता था जो स्वयं अपने अस्तित्व द्वारा अपना औचित्य सिद्ध कर सके।

अलाउद्दीन खिलजी के दरबार के प्रमुख बुद्धिजीवी हजरत अमीर खुसरो ने अलाउद्दीन के लिए राज तत्व के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था उसमें अलाउद्दीन के राजत्व को न्याय संगत बनाने और ऊंचा उठाने का प्रयत्न किया गया। अमीर खुसरो ने शासक की सर्वोच्च उपलब्धि उसकी विजयों को मानते हुए लिखा कि ” सूर्य पूर्व से पश्चिम तक धरती को अपनी तलवार की किरणों से आलोकित करता है।

उसी प्रकार शासक को भी विजय हासिल करनी चाहिए और उन विजयों को सुरक्षित रखना चाहिए।” राजपद के सिद्धांत में अलाउद्दीन खिलजी अपने पूर्ववर्तीयों से भिन्न था। उसे यह कहने का साहस प्राप्त था कि वह उलेमा लोगों के निर्देशों का पालन करने को तैयार नहीं। 

अलाउद्दीन खिलजी ने राजपद के विषय में बलबन के विचार को पुनर्जीवित किया। वह राजा की दैवी शक्ति में विश्वास रखता था। जो पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधित्व मात्र है। उसका विचार यह था कि ईश्वर ने राजा को अधिक बुद्धि दी है जितनी अन्य किसी मनुष्य में नहीं है और उसकी इच्छा ही देश का कानून होना चाहिए उसका यह भी विश्वास था कि “राजा अन्य किसी राजा को नहीं मानता।”

अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी शक्ति की वृद्धि के विषय में खलीफा की अनुमति लेना आवश्यक नहीं समझा और इसलिए उसने खलीफा से अपने पद की मान्यता प्राप्त करने के संबंध में कोई याचना नहीं की। उसने अपने आप को –यामीन-उस-खिलाफत-नासिरी अमीर-उल-मुमानिन जताया ।

अलाउद्दीन खिलजी का सैनिक शासन-तन्त्र 

अलाउद्दीन खिलजी की प्रत्येक सफलता का श्रेय उसकी विशाल सेना को है। वह यह अच्छी तरह जानता था कि उसने अपनी शक्ति के बल पर सिंहासन का अपहरण किया है और इसलिए केवल शक्ति के ही आधार पर उसकी रक्षा की जा सकती है। उसने शक्ति के आधार पर मुस्लिम धर्म की रक्षा की, उसने अपनी विशाल सेना से अमीरों व सरदारों को भयभीत कर दिया। उसने सरदारों को अपनी सेना रखने की अनुमति नहीं दी।

 

  •  फरिश्ता का विचार है कि अलाउद्दीन के पास 475000 अश्वारोही थे।
  •  अलाउद्दीन खिलजी सैनिकों को वेतन नाग रूप में देता था .
  •   एक साधारण सैनिक (मुरत्ताब) को प्रति वर्ष 234 टंका वेतन मिलता था।
  • सवार का वेतन 156 टन के था।
  • दो अस्पाह'(दो घोड़े रखने वाला सैनिक) को वर्ष में 78 टंका अतिरिक्त मिलता था। इस प्रकार उसे 234+78=312 टनका पेंशन मिलता था।
  • घोड़े वाले सैनिक को ‘याक अस्पा’ कहा जाता था। (एक एएसपीए)
  •  सैनिकों को नियमित वेतन दिया जाता था और उनके काम की निगरानी भी की जाती थी।
  • अलाउद्दीन ने घोड़े को दागने की प्रथा भी जारी रखी जिससे किसी भी घोड़े को दोबारा पेश न किया जा सके या उसके स्थान पर निम्न श्रेणी का घोड़ा न रखा जा सके।
  • सैनिक व्यवस्था का अध्यक्ष दीवान-ए-अर्ज होता था।
  • ‘फतवा-ए-जहाँदारी’ में जियाउद्दीन बरनी लिखते हैं कि “राजत्व दो प्रवण पर आधारित है पहला स्तंभ प्रशासन और दूसरा है विजय। दोनों स्तंभों का आधार सेना है, यदि शासक सेना के प्रति उदासीन है, तो वह अपने हाथों से राज्य को नष्ट कर देता है।”
  • दस हज़ार की टुकड़ियों को ‘तुमन’ कहा जाता था।
  • अलाउद्दीन खिलजी की भू-राजस्व व्यवस्था
  • एक विशेष अधिकारी ‘मुस्तखराज’ नियुक्त किया गया था और उसका कार्य किसानों से अवैतनिक कर वसूल करना था।
  • अलाउद्दीन ने किसानों को भूमि कर नकद में देने के लिए बाध्य नहीं किया, बल्कि वास्तव में उसने इसे वस्तु के रूप में लेना बेहतर समझा।
  • अलाउद्दीन ने 50% तक का भूमि कर लगाया। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसे धन की बहुत आवश्यकता थी, उसके पास एक बड़ी सेना थी जिसे संभालना एक चुनौती थी।

अलाउद्दीन काहिंदुओं के साथ व्यवहार 

🔴 अलाउद्दीन खिलजी हिंदुओं के प्रति बहुत निर्दई था वह प्रत्येक संभव प्रकार से उन्हें पीड़ित करने में, कठोर नीतियों का प्रयोग करता था। बयाना का काजी हिंदुओं के प्रति नीति की व्याख्या करता था और अलाउद्दीन अपने राज्य में उसी का अनुसरण करता था।

🔴 काजी के अनुसार उनको (हिन्दुओं) खिराज गुजार (भेंट देने) वाला कहा गया है”

🔴 काजी ने कहा मुहास्सिल‘ (राज-कर वसूल करने वाला) किसी हिंदू के मुंह में थूकना चाहे तो उसको निर्विरोध भाव से मुंह खोल देना चाहिए।ऐसा करने का अर्थ यह है कि इस प्रकार आचरण करने से वह अपनी नम्रता एवं शालीनता तथा आज्ञापालन और सम्मान प्रदर्शित करता है।

🔴 अबू हनीफा सरीखे महान धर्माचार्य ने हिंदुओं पर जजिया लगाने का आदेश दिया है।

🔴 अलाउद्दीन गर्व के साथ यह विचार व्यक्त करता था कि ” मेरा आदेश पाते ही वे (हिन्दू ) ऐसे भाग जाते हैं जैसे चूहे अपने बिलों में।”

 सरदारों व अमीरों के विरुद्ध उपाय

🔴 अलाउद्दीन ने प्रथम आदेश में धार्मिक अनुदानों तथा भूमि के निशुल्क उपहारों का अंत कर दिया। जियाउद्दीन बरनी बताता है कि सुल्तान ने आदेश दिया कि जहां कहीं स्वामित्व अधिकार सहित भूमि ( मिल्क ) हो या नि:शुल्क उपहार ( इनाम ) में दी गई भूमि या धार्मिक अनुदान में दी गई भूमि ( वक्फ)  हो तो एक कलम को फेर कर उसे सरकारी भूमि में मिला दिया जाए।

🔴 अपने दूसरे आदेश में अलाउद्दीन ने जासूसी व्यवस्था का संगठन किया जासूस लोग अपनी सूचना भेजने में 24 घंटे से अधिक का विलंब नहीं कर सकते थे।

🔴 अपने तीसरे आदेश में अलाउद्दीन ने मदिरापान पूर्णत: वर्जित कर दिया।

🔴 अलाउद्दीन ने अपने चतुर्थ अध्यादेश में घोषित किया कि सरदार लोगों को सामाजिक सभाएं करना वर्जित है, और उसकी स्वीकृति के बिना वे अंतरजातीय विवाह न करें।

 अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार

🔴 फरिश्ता के अनुसार अलाउद्दीन के पास पचास हजार दास थे।

🔴 अलाउद्दीन ने सभी वस्तुओं के मूल्य निर्धारित कर दिए।

🔴 दोआब में उपज को गोदामों में भरना या उसके आसपास 100 कोस तक के क्षेत्रों में ऐसा करना निषिद्ध कर दिया गया।

🔴 राजकीय गोदामों में अनाज का भंडारण किया जाता था।

🔴 शहनाओं ( निरीक्षकों ) व कारकुन ( एजेंट लोगों ) को इस बात की गारंटी देनी पड़ती थी कि वे अनाज को किसानों से लेकर सराय या व्यापारियों की मंडियों तक निश्चित मूल्य पर पहुंचाएंगे।

🔴 दिल्ली के निकट प्रदेश के भूमि कर की ऐसी व्यवस्था की गई थी कि न तो किसान कोई शेष मात्रा बचा सकते थे और न वे व्यापारियों या अनाज विक्रेताओं के हाथ गुप्त रूप से उस अनाज को बेच सकते थे

🔴 शहना- बाजार निरीक्षक।

🔴बाजार में कम तौलने बाले दुकानदार को दण्डस्वरूप कम भार के तुल्य उसका मांस काट लिया जाता था। शहना-ए-मण्डी लात मारकर उसे दुकान  से हटा देता था।

🔴अलाद्दीन ने एक नया सरकारी बाजार ( सराय-ए-आदल ) बदायूँ द्वार के पास बनवाया।

🔴दीवान-ए-रियासत सब व्यापारियों का पंजीकरण करता था।

🔴 अलाउद्दीन ने याकूब को दीवान ए रियासत नियुक्त किया उसके अधीन एक शहना-ए-मंडी नियुक्त किया गया।

 डॉ० पी० सरन ने अलाउद्दीन खिलजी की बाजार नियंत्रण नीति के संबंध में यह विचार व्यक्त किया है कि राज्य के सीमित साधनों की सहायता से एक विशाल सेना की व्यवस्था रखना ही वह मुख्य कारण था जिसने सुल्तान का ध्यान जीवन की अनिवार्य वस्तुओं का मूल्य नीचा करने की ओर आकर्षित किया जिससे कम वेतन पाने वाले सैनिक सस्ती वस्तुएं प्राप्त करके अपने आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें। गरीबों की दशा सुधारना ऐसी वस्तु थी जो अलाउद्दीन की कल्पना से बहुत दूर थी।

पी० सरन ने यह भी बताने का प्रयत्न किया है कि अलाउद्दीन की व्यवस्था केवल दिल्ली व उसके आस-पास तक सीमित भी। उसके राज्य के शेष भागों में ऐसा कोई प्रबंध नहीं था। दिल्ली के आस-पास के जिलों पर ऐसे नियंत्रण का कुछ प्रभाव पड़ता रहा होगा। आसपास के क्षेत्रों के आर्थिक जीवन की व्यवसाय सम्बधी दशाओं में अस्तव्यस्ता आ गई।

 मंत्रीगण-

अलाउद्दीन  ने अनेक मंत्रियों की नियुक्ति की जिनमें मुख्य रूप से चार महत्वपूर्ण थे-

1-दीवान-ए-वजारत- यह सबसे महत्वपूर्ण पद था। इसे वजीरया मुख्यमंत्री कहा जाता था।

2-दीवान-ए-आरिज- यह सैन्यमंत्री था,जो सेना की भर्ती,वेतन बांटना, सेना की साज-सज्जा और देख-रेख करना,युद्ध के समय सेनापति के साथ जाना इसका प्रमुख कार्य था।

3-दीवान-ए-इंशा- इसका कार्य शाही आदेशों को तैयार करना था। इसके आधीन सचिव ( दबीर) होते थे।

4-दीवान-ए-रसालतपड़ोसी देशों के राज दरबारों को भेजे जाने वाले पत्रों को तैयार करता था। अलाउद्दीन ने राजधानी के आर्थिक मामलों की देखभाल के लिए दीवान-ए-रियासत नाम का नया मंत्रालय बनाया।

न्याय व्यवस्था

सुल्तान न्याय का प्रमुख स्रोत था।

🔴सद्र-ए-जहाँ क़ाजीउल कुजात– सुल्तान के बाद न्याय का प्रमुख आधिकारी।

🔴नायब क़ाजी या अद्ल- यह सद्र-ए-जहाँ के अधीन होता था। इसके अधीन मुफ्ती होते थे।

🔴अमीर-ए-दाद- यह प्रभावशाली अपराधियों को गिरफ्तार करके लाता था।

पुलिस एवं गुप्तचर-

कोतवाल इसका प्रमुख होता था।

🔴शहना-दंडाधिकारी

🔴मुहतसिब-जनसाधारण के आचार का रक्षक।

🔴बरीद-ए-मुमालिक- गुप्तचर विभाग का अध्यक्ष। इसके अधीन बरीद (संदेशवाहक/हरकारे) होते थे।

🔴मुनहियन-गुप्तचर

 डाक पद्धति– 

अलाउद्दीन ने  घुड़सवारों व लिपिकों को डाक चौकियों पर नियुक्त किया जो सुल्तान को समाचार पहुंचाते थे।

 कर प्रणाली Tax System

  Alauddin Khilji was the first Muslim ruler of India who fixed the revenue on the real income of the land.

🔴 खराज- यह भूमि कर था जो उपज का 50% तक बसूला जाता था।

🔴 जजिया- गैर मुस्लिमें से लिया जाता था।

🔴 जकात- सिर्फ मुस्लिमों से लिया जाने वाला धार्मिक कर। यह सम्पात्ति का 40 वां भाग लिया जाता था।

🔴खम्स- युद्ध में लूट से प्राप्त धन। 4/5 भाग सैनिकों में बंटता था तथा 1/5 भाग केन्द्रीय कोष में जाता था।

  इन करों के अतिरिक्त चराई कर, करी या करही कर भी लिया जाता था।

अमीर खुसरो कौन था?

 अमीर खुसरो- अमीर खुसरो ने तारीख-ए-अलाई या खजाइन-उल-फतूहकी रचना। आशिका‘  उसकी एक अन्य रचना है जिसमें देवल देवी व खिज्रखां की प्रेम गाथा है। नूह सिपेहरमें खुसरो ने सुल्तान मुबारक शाह की कहानी का वर्णन किया है। गयासुद्दीन के दरबार में रहकर तुगलक नामाकी रचना की। खुसरो को हिन्दी का लेखक भी माना जाता है। उसे तूती-ए-हिन्द या भारत का तोता भी कहा जाता है। क्योंकि वह एक उत्तम गायक भी था।

 

अमीर हसन ‘  को भारत का सादी माना जाता है। अमीर अरसालान कोही और कबीरउद्दीन दो बड़े इतिहासकार भी अलाद्दीन के दरबार में थे।शेख निजामुद्दीन,शेखरूक्नुद्दीन और काजी मुगीसुद्दीन उस समय के धर्मविद्या व दर्शन विद्या के महान विद्वान थे।

  •  अलाउद्दीन ने अलाई दुर्ग या कोशक-ए-सीरी का निर्माण कराया।
  • हजार सितूनहजार स्तम्भों वाला महल का निर्माण भी अलाउद्दीन ने कराया।


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